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क्या कोई सरकारी कर्मचारी से आठ साल से बिना वेतन के काम लिया जा सकता है ? कदापि नहीं | लेकिन सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर में यह भी हो रहा है | प्रभाग के बनकटवा परिक्षेत्र में वाचर पद पर सात जुलाई 1991 से कार्यरत सिया राम को पिछले आठ सालों से वेतन नहीं मिला है | इस सिलसिले में वे वन विभाग के उच्च अधिकारियों से बार – बार गुहार लगाई है और कई बार पत्र भेजा है और मुलाकातें भी की हैं , मगर नतीजा शून्य है | ऊपर से वे उस मुक़दमे की भी अपने पैसे से पैरवी कर रहे हैं , जो वनकर्मी होने की हैसियत से एक शख्स द्वारा उन पर थोपा गया है | सिया राम ने बताया कि उन्हें 2010 से वेतन मिलना बंद हो गया | शुरू में उन्हें ढाई सौ रुपए प्रति माह मिलते थे | फिर पांच सौ , एक हज़ार , तीन हज़ार और जब उन्हें चार ह्जार रुपए प्रति माह मिल रहे थे , तभी से उन्हें वेतन देना बंद कर दिया गया | लेकिन उनसे काम लेना बंद नहीं किया गया | वाचर सिया राम बताते हैं कि आज भी अधिकारी उन्हें बुलाते हैं और काम सौंपते हैं , लेकिन वेतन नहीं देते | यह कहा जाता है कि आगे से रुका हुआ है | काम करते रहो , मिल जाएगा |

 

वास्तव में अंग्रेजों की भांति मुफ्त में काम करवाना वन विभाग की आदत बनी हुई है | कहते हैं कि यह सब फर्ज़ी ढंग से धन हड़पने के लिए किया जाता है | बताया जाता है कि वाचर सिया राम को अपनी ईमानदारी का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है | उन्होंने तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा खां के कहने पर कई सप्ताह और महीनों तक आस – पास के गाँव के दर्जनों मजदूरों से झाड़ी की सफ़ाई और अन्य कार्य लिया , लेकिन नूरुल हुदा ने मजदूरी देने से इन्कार कर दिया और डराया – धमकाया इस मामले के आगे बढने पर सिया राम ने मजदूरों से काम लेने की तहरीर मजदूरों को दे दी | इसके बाद ही सिया राम वन अधिकारियों की आखों में बुरी तरह खटकने लगे |

यह कहना अनुचित न होगा कि ‘ मस्टर रोल ‘ और ‘ फीडिंग सिस्टम ‘ ने भ्रष्टाचार को बहुत आसान बना दिया है | इससे भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों से भी कुछ बचे रहते हैं , मगर उनकी आमदनी अधिक होती है , क्योंकि पारदर्शिता बनी रहती है , वह भी ऑनलाइन ! अब हर सरकारी विभाग में यही हो रहा है कि ग्राम प्रधान , ग्राम विकास अधिकारी से लेकर अन्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे नामवाले मज़दूरों का मस्टर रोल तैयार होता है , बल्कि तैयार रहता है , जिनसे फीड कराई गई रक़म बहुत आसानी से हासिल की जा सके |

लेकिन सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर का भ्रष्टाचार में कोई सानी नहीं है | यहाँ भ्रष्टाचार का खुला रूप देखने को मिलता है | यहाँ के अधिकारी और कर्मचारी अपने को गुलाम भारत के अंग्रेजों से कम नहीं समझते ! यहाँ के बनकटवा रेंज में दो – दो , ढाई – ढाई महीनों तक काम लेने के तीन वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद लगभग दर्जन भर मजदूरों को अभी तक मज़दूरी नहीं दी गई है | मज़दूर उच्चधिकारियों से बार – बार गुहार लगा चुके हैं , जिसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका है | लेकिन अपने जवाबों से अधिकारी ज़रूर अपने ही बुने भ्रष्टाचार के जाल में फंसते नज़र आ रहे हैं |

लगभग तीन वर्षों से लंबित दर्जन भर से अधिक मनरेगा मजदूरों की मजदूरी के बाबत सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग , बलरामपुर के प्रभागीय वनाधिकारी डॉ . राजीव मिश्रा ने केशव राम एवं अन्य मजदूरों को साक्ष्यों के साथ विगत 20 नवंबर 2017 को बलरामपुर स्थित प्रभागीय कार्यालय में बुलाया था , लेकिन इस पत्र को 23 नवंबर 17 की रात लगभग नौ बजे को मजदूरों को दिया गया | वन विभाग के बनकटवा रेंज के तिर्री नामक वाचर ने इस पत्र को केशव राम को सौंपा और बिना उनका दस्तखत कराए चला गया | केशव राम ने बताया कि इस स्थिति में हम लोग कैसे हाज़िर हो सकते थे , अतः हम लोगों ने डी एफ ओ महोदय को रजिस्टर्ड पत्र लिखकर नई तिथि व समय मांग की है , मगर सात माह बीत जाने पर भी अब तक कोई जवाब नहीं आया |

मिश्रा जी ने यह क़वायद बलरामपुर के तत्कालीन उप श्रमायुक्त बाल गोविन्द के इस मामले में हस्तक्षेप के बाद शुरू की | उप श्रमायुक्त महोदय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मजदूरों द्वारा इस मामले में रजिस्टर्ड पत्र भेजे जाने के बाद थोड़ा ‘ सक्रिय ‘ हुए थे | श्री गोविन्द ने सभी मजदूरों को बुलाया और मामले को समझा | वाचर सिया राम को भी तलब किया , जिन्होंने दर्जन भर से अधिक मजदूरों से दो – ढाई महीने तक काम लेने की पुष्टि की और इस बाबत अदालती शपथपत्र पेश किया | सभी मजदूरों ने भी तहरीर पेश की |

उप श्रमायुक्त ने मजदूरों को मजदूरी दिलाने का आश्वासन दिया , लेकिन हुआ कुछ नहीं !!! श्री गोविन्द ने वन विभाग के रेंजर तिलक राम आर्य को भी तलब किया था , जो अपने कुछ कर्मचारियों के साथ आए थे | जब उनसे उन्होंने एक आर टी आई उत्तर के हवाले से चार मजदूरों – राम फल , कृपा राम , राम बहादुर और बड़कऊ को भुगतान करने की बात पूछी , तो श्री आर्य ने इसकी पुष्टि की , मगर जब यह कहा कि इनके बैंक पास बुकों की ‘ इंट्री ‘ में मजदूरी की रक़म का भुगतान दिखाइए , तो रेंजर समेत सभी वन कर्मचारियों के पसीने छूट गए | वे नहीं दिखा सके | सामने बैठे इन मजदूरों ने भी कहा कि उन्हें कोई भुगतान नहीं प्राप्त हुआ है | फिर बड़ी मशक्कत के बाद वन कर्मचारियों ने कहा कि इन्हीं नामों के दूर के अन्य गाँवों के लोगों को भुगतान किया गया है | इस पर उप श्रमायुक्त महोदय ने तीन टिप्पणियाँ कीं – पहली यह कि जिन मजदूरों ने काम किया , उनको सिरे से मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया , दूसरी बात यह कि जिन चार को भुगतान करने की बात वन विभाग कह रहा , वे दूरस्थ गाँव के हैं | उनसे मनरेगा नियमों के तहत दूरस्थ होने के नाते काम लेना नियम विरुद्ध है , और तीसरी बात यह कि जिन मजदूरों ने काम किया , उन्हें मजदूरी नहीं मिली | अतः इन्हें मजदूरी दिलाई जाएगी | तत्कालीन उप श्रमायुक्त महोदय ने रेंजर को हिदायत की कि उस समय के फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के केस पुलिस में दर्ज कराएं , अन्यथा श्रम विभाग आगे बढकर दंडात्मक कार्रवाई करेगा | लेकिन इस चेतावनी और इन टिप्पणियों का अमलन कोई परिणाम नहीं निकला !!! अब तो मजदूरों ने अपनी गाढ़ी कमाई की मजदूरी पाने की उम्मीद ही छोड़ दी है |

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 के अक्टूबर में बनकटवा वन क्षेत्र के तत्कालीन रेंजर पी डी राय ने भी इसी तरह जाँच की थी और समय निकल जाने के बाद नोटिस भेजा था | फिर मीडिया में मामला उछला , तो उन्होंने मजदूरों को बुलाया , उनसे दस्तखत अथवा अंगूठे की छाप ली और आश्वासन दिया कि ‘मैंने लिख दिया है | आप सभी को मजदूरी अवश्य मिलेगी | ‘ लेकिन मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिल पाई| | इस मामले में सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी एस . एस . श्रीवास्तव ने भ्रष्टाचार को परवान पर चढाते हुए आर . टी . आई . के जवाब में जो लिखित तथ्य पेश किये हैं , वे एक – दूसरे के बिलकुल प्रतिकूल और ख़िलाफ़ हैं | ऐसे में सच उनकी कौन – सी बात है , यह तो वही बता सकते हैं या फिर वे बता सकते हैं , जो भुक्तभोगी हैं और भ्रष्टाचारियों के बुरी तरह शिकार हैं और जिन्हें तीन वर्ष बीत जाने पर भी हज़ारों रुपयों की मज़दूरी नहीं मिल सकी है | अब आइए जानें , इस मामले के चंद काले कारनामों को – तत्कालीन प्रभागीय अधिकारी श्री श्रीवास्तव ने आर . टी . आई . के प्रत्युत्तर में 23 जुलाई 15 को लिखे पत्र में सूचित किया था कि मज़दूरों – केशव राम , राम वृक्ष , मझिले यादव , राम बहादुर , बड़कऊ यादव , कृपा राम , खेदू यादव , राम प्यारे , शिव वचन , शंभू यादव , संतोष कुमार यादव और रामफल – में से सिर्फ़ चार ने काम किये और उनका भुगतान किया गया | आर .टी .आई . में यह पूछा गया था कि बनकटवा रेंज में मनरेगा के तहत जनवरी 2014 से मार्च 14 के बीच किन मज़दूरों से काम कराए गए ? जवाब में यह विवरण दिया गया –

राम फल ने 21 जनवरी से 1 फरवरी 14 और 1 मार्च 14 से 11 मार्च 14 के बीच कुल 23 दिनों तक काम किया , जिन्हें 25 मार्च और 31 मार्च 14 को क्रमशः 1704 रुपए व 1562 रुपए भुगतान किए गए | इस प्रकार उनके खाते में कुल 3266 रूपये डाले गए | रामफल ने बताया कि उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला | उनके बैंक खाते में जनवरी – मार्च 14 के बीच के काम का कोई भुगतान नहीं आया ! यह पैसा कहाँ गया , इसका जवाब वन विभाग के अधिकारी ही दे सकते हैं | प्रभागीय वनाधिकारी ने लिखित रूप में बताया है कि कृपा राम ने उक्त अवधि में 35 दिन काम किया , जिसके उन्हें 4970 रूपये भुगतान किये गए | कृपा राम ने बताया कि उन्हें कोई भुगतान नहीं प्राप्त हुआ है | उनके अनुसार , पासबुक में इस रक़म की कोई इंट्री नहीं है | कृपा राम कहते हैं कि ” तत्कालीन फारेस्ट गार्ड , वाचर सिया राम और राम किशुन के कहने पर 40 दिन काम किया , लेकिन एक भी दिन की मज़दूरी नहीं मिली |

तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी ने यह भी विवरण दिया कि बडकऊ ने 35 दिन काम किया , जबकि राम बहादुर ने 23 दिन जिन्हें क्रमशः 4970 और 3266 रुपए भुगतान किये गए | इन दोनों ने भी यही बात कही कि उन्हें कोई भुगतान नहीं मिला है | फिर यह झूठी जानकारी क्यों दी गई ?

मालूम हुआ कि उक्त 12 मजदूरों में से जिन चार मजदूरों को मज़दूरी देने की बात वनाधिकारी महोदय कर रहे हैं , वह झूठी और भ्रामक बात है | इसकी पुष्टि इन्हीं अधिकारी [ एस .एस .श्रीवास्तव द्वारा प्रदान की गई एक अन्य आर .टी .आई . सूचना [ मस्टर रोल ] से होती है | यह मस्टर रोल जनवरी – मार्च 2014 के बीच कराए गए मनरेगा कार्यों का है | उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें कहीं भी उक्त चार मज़दूरों – रामफल , कृपा राम , बड़कऊ और राम बहादुर ] के नाम नहीं हैं , जिनसे काम लेने और उन्हें मज़दूरी भुगतान की बात की गई है !! यही नहीं मस्टर रोल में 28 जनवरी 14 से 8 फरवरी 14 तक ही मनरेगा मजदूरों से काम लेने की बात कही गई है , जबकि प्रभागीय अधिकारी 21 जनवरी 14 से 11 मार्च 2014 के बीच काम लेना बताते हैं | इस प्रकार एक ही अधिकारी के उत्तरों में घोर विरोधाभास और अन्तर्विरोध मौजूद है , जो बहुत भ्रमकारी और गुमराहकुन है |

पूरे मस्टर रोल में शिकायतकर्ता 12 मजदूरों में से किसी का भी नहीं है , फिर कैसे कहा जा रहा है कि चार मज़दूरों ने काम किया और उनको भुगतान भी किया गया ? इसकी विभागीय जाँच न कराकर अन्य शासकीय जाँच होनी चाहिए | जब मस्टर रोल लिस्ट में नाम ही नहीं तो चार मज़दूरों के काम और उनकी मजदूरी के भुगतान का कैसे दावा किया जा रहा है ? मस्टर रोल में अन्य मजदूरों के काम करने की तारीखें दर्ज हैं , वे प्रभागीय वनाधिकारी , बलरामपुर के 23 जुलाई 15 के जवाब में बताई उन तारीखों से भिन्न हैं , जो उन्होंने चार मजदूरों के सिलसिले में लिखी हैं | यह साफ तौर पर मजदूरी हड़पने और आर . टी . आई . का झूठा उत्तर देने का मामला है | जिन्हें अमलन मज़दूरी भुगतान की गई है , उन्होंने काम ही नहीं किये ! और जिन्होंने काम किए , उन्हें तीन वर्ष बाद भी मज़दूरी नहीं भुगतान की गई | मस्टररोल की कापी आर टी आई कार्रवाई में राज्य सूचना आयुक्त की सेवा में पहुंचने के बाद वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई थी |

इस मामले की गहराई में जाने पर पता चला कि तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा खां ने , जो बकरियों की ख़रीद – बिर्की का धंधा भी करते थे , बकरी चरवाहों समेत अपने लोगों के नाम उक्त अवधि के मस्टर रोल में डलवाकर उन्हें फर्ज़ी तौर पर मज़दूर बनाकर मनरेगा की हज़ारों रूपये मज़दूरी हड़प ली | हजरत ,बाबू अली , मुहम्मद अली , इन्साफ अली , छोटकऊ , शमसुद्दीन , किस्मत अली , अहमद अली , रोज़ अली , कमरुद्दीन , लंगड़ , जाबिद , गोसुल और बाबा दीन के मुताबिक़ उक्त अवधि में इन्होंने कोई मनरेगा काम ही नहीं किया | इनमें से कुछ ने बताया कि ‘ साहब ने हमारे खाते में हज़ारों रूपये डलवाए थे , जिसे वाचर राम किशुन हमसे निकलवाकर ले गया | ‘

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