एक भाषा में रचे गए खूबसूरत और पठनीय साहित्य को दूसरी भाषा में अनुवाद करके पाठकों तक पहुंचाना दोनों भाषाओं के पाठकों को एक कीमती उपहार देने जैसा होता है। इस दृष्टि से देखें तो मशहूर लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री रामपाल श्रीवास्तब ‘ अनथक’ की सद्यः प्रकाशित उर्दू, अरबी की मशहूर कहानियों की अनूदित पुस्तक ‘ कहानियों का कारवाँ”एक दिलचस्प  पुस्तक है। अब प्रकाशित होने के साथ ही यह कारवां चल पड़ा है पाठकों के दिलों पर दस्तक देने  और कहानियों के सफर को अंजाम तक पहुंचाने। श्री रामपाल जी की इस उम्र में प्रेरक ऊर्जावान व्यक्तित्व और रचानात्मक सक्रियता देखकर मुझे एक मशहूर शायर का एक शेर सहसा याद आ जाता है –
 शेर – ‘ काफिला आज के किस मोड़ पर आ पहुंचा है, अब कदम और भी बेताब नजर आते हैं।’
                                               – जांनिसार अख्तर
  श्री रामपाल जी की यह नौवीं पुस्तक है जिसमें कुल 15 कहानियाँ एक लड़ी में खूबसूरती के साथ पिरोई गईं हैं।आपने उर्दू , अरबी की 15 कहानियों का सुन्दर अनुवाद करते हुए  इसमें शमिल किया है। समदर्शी प्रकाशन गाजियाबाद ने  इसे एक खूबसूरत किन्तु रहस्यमय से लगते उत्सुकता जगाते गेट अप में प्रकाशित किया है वह किताब को हाथ में लेने और पन्ने पलटकर देखने को मजबूर सा कर देता है। इस संकलन की सबसे खास बात यह है  कि पहली कहानी ‘ कब्र’ से लेकर आखिर में अरबी से अनूदित 14 वीं, 15 वीं कहानी ‘प्रतिरोध’ और ‘ जलजला’ तक आते – आते पाठक इस संग्रह की चयनित कहानियों के पात्रों से जुड़ते हुए अपने को इस पूरी यात्रा का अंग महसूस करने लगता है । यद्यपि 128 पृष्ठों वाले इस संग्रह की कीमत 200 रुपए आज की मंहगाई के लिहाज से ज्यादा नहीं है किन्तु अधिकतम लोगों के हाथों तक पुस्तक को पहुंचने में कहीं – कहीं कीमत थोड़ी बाधा जैसी भी लग सकती है।
          आशा है कि साहित्य और संस्कृति की राजधानी कहे जाने वाले बलरामपुर में जन्मे और देश के कोने  – कोने में पत्रकरिता की अलख जगाने वाले  संवेदनशील  साहित्यकार श्री रामपाल जी की इस कृति को भी पहले की तरह  सहृदय पाठक वर्ग का प्यार और सराहना  अवश्य मिलेगी। लेखक भाई रामपाल जी का यह प्रयास अभिनंदनीय है।
– अशोक मिश्र
देहरादून

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