उर्दू अदब में अफसानानिगारी का चलन जितना पुराना है, उतना ही विदेशी कहानियों का देवनागरी लिपि में लिप्यंतरण एवं अनुवाद भी बहुत दिलचस्पी से किए व पढ़े जाते रहे हैं। तर्जमा के माध्यम से ही हम दुनिया भर की जुबानों में रचे गए साहित्य के रूबरू हुए हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रयास सुप्रसिद्ध कथाकार एवं अनुवादक राम पाल श्रीवास्तव द्वारा किया गया है। उन्होंने उर्दू, अरबी की चयनित 15 कहानियों का अनुवाद देवनागरी लिपि में करके “कहानियों का कारवां” पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है। इनमें तेरह उर्दू से और दो अरबी से अनूदित हैं।
संग्रह की पहली कहानी “क़ब्र” ( रामलाल ) नई पीढ़ी द्वारा छूटते गांव तथा पुरानी पीढ़ी की अपने जन्मस्थानों के प्रति आत्मिक जुड़ाव को पेश करती है तथा एक कुत्ते की क़ब्र के माध्यम से छोटती-टूटती इस धरोहर का वक्त की तहों में दफ़न होना दिखाया गया है।
“गृहस्वामिनी” ( इक़बाल महदी ) कहानी में स्त्री पात्र अल्ताफी के द्वारा समूची विवाहिता औरतों की उस मानसिक पीड़ा को प्रभावशाली ढंग से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसमे औरत अपने मां- बाप, भाई-बहन, मायका सब त्याग करके भी ससुराल में पति-सास आदि के लिए परायों का सा जीवन गुजारती है। कहानीकार ने अल्ताफी और उसकी सास के ज़रिए इस संताप व पीड़ा की यथार्थमयी अभिव्यक्ति की है। कहानी इस बात को शिद्दत से महसूस कराने में सफल हुई है।
तीसरी कहानी “नेटवर्क प्रॉब्लम” ( एम. सद्दाम ) एक पागल सरीखे व्यक्ति द्वारा बार-बार बोला गया संवाद “सब नेटवर्क प्रॉब्लम है” द्वारा न सिर्फ़ इसे नेटयुग में मोबाइल उपभोग पर नेटवर्किंग की समस्या से दो चार हो रही नई पीढ़ी को दिखाया गया है, बल्कि लेखक इससे आज आदमी से आदमी के बीच संबंधों व आत्मीयता की असंवेदनशीलता की हद तक टूट रही नेटवर्किग की ओर इशारा भी किया गया है।
बलवंत सिंह की “चांद और फंदा” थानेदार नवाब सिंह, प्रसन्नी व उसके प्रेमी सूरत सिंह के तिकोने प्रेम को कलात्मक ढंग से उभारती है। प्रसन्नी द्वारा प्रेमी सूरत सिंह को छोड़ना बिना कहे बहुत कुछ कह जाता है।
पांचवीं कहानी “ये इश्क़ नहीं आसां” ( महमूद फारूकी ) में अरशद तथा प्रेमी नाम के दो कथाकारों के अलग अलग दृष्टिकोण का पाठकों पर पड़ रहे प्रभाव को दर्शाया गया है तथा स्वच्छंद लेखन, सामाजिक मर्यादाओं को तार तार करने वाले अरशद तथा जीवन आदर्शों पर पहरा देने वाले प्रेमी की स्वीकार्यता को उकेरा गया है।
रतन सिंह की कहानी “हज़ारों साल लंबी रात” उर्दू किस्सागोई की बेहतरीन मिसाल है। कथाकार ने हज़ारों सालों दाने दाने को तरसते गरीबों की व्यथा कथा को उभारा है।
“त्याग” ( रशीद फारूकी ) युवती का नापसंद लड़के के साथ विवाह कर दिए जाने पर उपजी मानसिक व्याधि के सूक्ष्म ताने बाने को प्रस्तुत करती है। जब तक पति पत्नी की सारी मनोदशा समझकर चिकित्सक की सलाह पर उसे तलाक़ देकर उसकी पसंदीदा लड़के से शादी कराने का निश्चय करता है। तब तक बढ़ चुके रोग के कारण युवती अपनी जान, जान पैदा करने वाले के हवाले कर देती है। कहानी लड़कियों के इस मानसिक द्वंद्व तथा पीड़ा को उकेरने में सफल हुई है।
बानो सरताज की “गुमराह रहनुमा” भी गैर अख्लाकी किरदार वाले फ़ज़ल दीन को सही राह पर लाने की कोशिश है तथा मुल्ला जैसे मार्गदर्शक की भांति सही रास्ते पर लाना दरकार है।
मंज़र हुसैन की कहानी “जब्र और इख्तियार” कहानी खुद्दार व्यक्ति द्वारा हाजी की बार-बार की धमकियों के समक्ष अपनी शेरवानी बेचकर मकान का किराया लौटाना मुनासिब समझता है, न कि किसी अजनबी के गिरे सोने के बुंदे को बेचना। यह कहानी विकलांगों के अधूरे होकर भी पूर्ण होने का एहसास कराती है।
“गैंडे का सींग” ( इक़बाल अंसारी ) कहानी चीन जैसे मुल्क में गैंडे के सींग की बहुउपयोगिता का वर्णन करती है। रफेल तथा पेकर गैंडे के सींग को हासिल करने हेतु एक दूसरे की लाशें बिछा देते हैं।
“इकलौता पुत्र” ( इफ्तिखार अहमद ) पोलियोग्रस्त विकलांग पुत्र को पढ़ा-लिखाकर प्रोबेशनरी आफिसर बनाना तथा तीनों बहनों की शादी करके अपने पैरों पर मज़बूती से खड़े होने की प्रेरणादायक कहानी है।
“एक ज़ख़्म और सही” ( महेंद्रनाथ ) में छोटी उम्र की वीणा का बड़े उम्र के व्यक्ति से प्यार तथा किसी और कल्पित प्रेमी के नाम से ख़ुद लिखे खतों के ज़रिए अपने प्रेम को प्रकट करने तथा अप्रत्यक्ष रूप से मिली चाहत को ही सब कुछ समझ लेने वाले कहानी प्रेम के गहरे अर्थों को विस्तार देती है।
“विचारयात्रा” ( राम पाल श्रीवास्तव ) द्वारा मुस्लिम समाज के तलाक़ की रस्म से प्रेरणा लेकर सोहन द्वारा अपनी पत्नी से अलग होने का दृष्टांत सृजन है। कथाकार ने यहां मुस्लिम समाज की तलाक़ प्रथा प्रक्रिया को श्रेष्ठता प्रदान करने का प्रयास किया है तथा तीन तलाक़ की भयावहता तथा “हलाला” की यंत्रणा को नेपथ्य में रहने दिया गया है।
प्रस्तुत संग्रह की अंतिम दो कहानियां अरबी भाषा से अनूदित चर्चित कहानियां हैं। “प्रतिरोध” ( नेमतुल हज्जी ) फिलिस्तीनी समस्या पर आधारित है, जिसमें जिहादी लीना व सेना द्वारा काबू किए गए उसके भाई ईसा की तलाश का रोंगटे खड़े करने वाला वर्णन है। कहानी सेना और जिहादियों के बीच चल रहे संघर्ष के माहौल को चित्रित करने में सक्षम है तथा इस जंग की विभीषिका को आसानी से समझा जा सकता है। बगावती लीना का अपनी सरजमीं के लिए कुर्बान हो जाना देशभक्ति का जज़्बा भी पैदा करता है, वहीं कहानी का अंत उदास भी कर जाता है।
इस संग्रह की आखिरी कहानी “जलजला” ( अरबी कहानीकार अहमद महमूद मुबारक ) में कहानीकार पश्चिमी तर्ज़ पर जीनेवाले, नशेड़ी बेटे तथा बदचलन पत्नी के चलते खुदकुशी करना तथा उसके दोस्त अब्दुल कादिर का अपने मज़हब की रिवायतों, नैतिकता, मर्यादा का अनुकरण करना सही ठहराया गया है। प्रगतिशीलता के नाम पर स्वच्छंदता को नकारना कहानी का उद्देश्य है।
पुस्तक के प्रारंभ में अनुवादक, संपादक राम पाल श्रीवास्तव द्वारा “अफसानानामा” उर्दू अफसानानिगारी के इतिहास, उसकी प्रगति यात्रा की विस्तृत जानकारी प्रदान करता महत्वपूर्ण आलेख है, जो खित्ते में की जा रही कथा यात्रा को विश्व परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करता है।
संग्रह की सभी कहानियां रोचक तो हैं ही, पर कहीं न कहीं विश्व स्तर की सामाजिक, आर्थिक, मानसिक मूल्यों के इर्द गिर्द घूमती हैं। इन कहानियों का ताना बाना हमारे ही पास पड़ोस में विचरते पात्रों/ घटनाओं/ विसंगतियों/ विद्रूपताओं/ विडंबनाओं और विकृतियों को लेकर बुना गया है। राम पाल श्रीवास्तव का अलग-अलग भाषाओं तथा तहज़ीब व मज़हब की तासीर वाली कहानियों का यह कारवां निश्चित तौर पर कहानी कला के नए बिंदुओं और आयामों को प्रस्तुत करता है। इन कहानियों को पढ़ते हुए कहीं भी अर्थ संचार की समस्या पैदा नहीं होती। पाठक जिज्ञासावश आगे से आगे पढ़ता-बढ़ता जाता है। अलग अलग कहानीकार अलग अलग पृष्ठभूमि, भिन्न भिन्न विषयों तथा अपने अपने अंदाजेबयां से पाठक को बोध देने में सक्षम है। बड़ी मेहनत तथा जोखिम भरे साहित्यिक उद्यम हेतु संपादक – अनुवादक राम पाल श्रीवास्तव बधाई के हकदार हैं। ऐसे प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए।
– धर्मपाल साहिल
होशियारपुर ( पंजाब )
9876156964
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नए क्षितिज की तलाश करता “कहानियों का कारवां”
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