आज विजय दशमी का पावन अवसर है और आज ही देर सबेर नारी शक्ति को अपमानित कर अधर्म अन्याय की डगर पर चलकर राक्षसराज लंकापति रावण संत महात्माओं का खून जजिया टैक्स के रूप में वसूलता था।आज हम सबसे पहले अपने सभी शुभचिंतकों पाठकों अग्रजों को असत्य पर सत्य एवं अन्याय पर न्याय की विजय के प्रतीक दशहरे की दिल की गहराई से शुभकामनाएं देते हुए आप सभी के उज्जवल भविष्य की मंगल कामना करते हैं।कल शारदीय नवरात्रि का समापन हुआ है उसके समापन होते ही महीनों से अजेय बने रावण का अंत हो जाता है और जगतजननी सीता माता उसके बंधन से मुक्त हो जाती हैं।रावण इतना ताकतवर था कि उसे मारने के लिए भगवान विष्णु को रामचन्द्र जी के रूप में श्री अयोध्या नगरी में मनु सतरूपा के वंशज चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ के यहाँ जन्म लेना पड़ा इसके बावजूद भी वह मर नहीं पा रहा था। नवरात्रि की व्यस्तता से छुट्टी मिलते ही आदि शक्ति के विभिन्न स्वरूप रावध वध में सहयोग देने आने के कारण ही विभीषण से भेद पाकर भगवान राम उसका अमृत कोष सुखाकर मारने में सफल हो सके।आज का दिन बहुत ही पावन है क्योंकि आज ही राक्षसराज का अंत हुआ है और लंका में भी रामराज्य की परिकल्पना साकार हुयी है।हम आज उस अत्याचारी अन्यायी जुल्मी दशानन का अंत होगा जिसने सीताजी का अपहरण तो जरुर कर लिया था लेकिन किसी तरह की छेड़छाड़ जोरजबरदस्ती न कर वह उन्हें लेकर सीधे अपने राजमहल नहीं बल्कि राजमहल से दूर अपनी उस अशोक वाटिका में ले गया था, जहाँ शोक नाम की कोई चींज नहीं थी और रातदिन महिला रक्षक उनकी रखवाली करते थे। आज हम उस रावण के मरने पर खुशी मना रहे हैं जो कभी सीताजी से मिलने अकेले नहीं गया और जब भी उनके पास गया अपनी पत्नी के साथ गया। इतना ही हम उस रावण की चरित्रहीनता पर आक्रोश व्यक्त करते हैं जिसने सीताजी को विवाह करने के लिए सोचने का एक माह का समय दिया था और मात्र धमकी दी थी कि अगर एक महीने बाद शादी से इंकार किया तो तलवार से मार डालूँगा। आज हम उस रावण का पुतला फूंकने जा रहे हैं जिसने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीताजी का अपहरण तो किया किन्तु उनको अपमानित प्रताड़ित नहीं किया।सभी जानते हैं कि राम रावण युद्ध त्रेतायुग में हुआ था और भगवान को खुद अवतरित होकर रावण जैसे महापापी राक्षस को मारना पड़ा था। रावण व्यक्ति नहीं बल्कि एक प्रवृत्ति है और वह हर युग में रही है लेकिन उसके कलेवर बदलते रहे हैं।आजकल के कलियुगी रावण उस रावण से काफी अलग नीति सिद्धांत वाले हैं और वह जब कहीं बेवश बेसहारा नारी शक्ति स्वरूपा को पा जाते हैं तो वह उसके अस्तित्व को लूटने मेंं देर नहीं लगाते हैं। उस समय एक सीता का अपहरण मात्र हुआ था लेकिन आजकल रोजाना कहीं न कहीं सीताओं का अपहरण ही नहीं बल्कि उनके साथ जबरिया दुष्कर्म भी किया जाता है तथा कुछ की नृशंस हत्या तक कर दी जाती है।इस समय सोशल मीडिया के माध्यम से मीट टू अभियान चलाकर तमाम कलियुगी सीताओं के चीरहरण के मामले देश दुनिया में चर्चा का विषय बने हुये है और राजनैतिक छौंके लगाकर आगामी लोकसभा चुनावों को मजबूती देने की कोशिश हो रही है। इसके चलते करीब दो दर्जन महिला पत्रकारों के आरोपों से घिरे केन्द्रीय मंत्री जाने माने वरिष्ठ पत्रकार रह चुके एमजे अकबर को कल अंततः अपने पद से इस्तीफा दे ही देना पड़ा क्योंकि विपक्षी सरकार की घेराबंदी करने लगे थे। मीट टू के अलावा तमाम ऐसी ही घिनौनी घटनाएं अब तक देश दुनिया को झकझोड़ चुकी हैं और कानून में बदलाव भी किया जा चुका है लेकिन अपहरण बलात्कार हत्या की आये दिन घटनाएं हो रही हैं।असली सूफी संतों महात्माओं को इन कलियुगी रावणों के समक्ष अपने अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है क्योंकि दो चार दस बीस मछली ही पूरे तालाब को गंदा कर देती हैं।कहने का मतलब है कि जिस रावण के मरने का हम सभी जश्न मना रहे हैं उससे कई गुना अधिक व्यभिचारी अत्याचारी पापाचारी रावण एक की जगह गली मुहल्लों शहरों नहीं बल्कि धरती पर टहल रहे हैं। इस समय कुछ देशों में नारी शक्ति का शारीरक शोषण ही नहीं बल्कि रस चूसने के बाद उन्हें गुलाम बनाकर बेचा जा रहा तथा उनका अपहरण करके उनके साथ जबरिया कुकर्म किया जाता है। आज एक बार भी सीता का अस्तित्व खतरे में हैं और कलियुग में रावण की हवस शैतानी हो गई है जो दुनिया भर में चिंता का विषय बनी हुई है। आज फिर एक बार धरती इन कलयुगी रावणों से कराहने लगी है और उनके विनाश के लिये भगवान राम को पुकार रही हैं।इन रावणों से नारी शक्ति की इज्ज़त आबरु बचाकर धर्म की स्थापना के लिये भगवान के अवतरण की जरूरत आ गयीं है।
-भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी
अतिथि लेखक/पत्रकार
नए क्षितिज की तलाश करता “कहानियों का कारवां”
उर्दू अदब में अफसानानिगारी का चलन जितना पुराना है, उतना ही विदेशी कहानियों का देवनागरी लिपि में लिप्यंतरण एवं अनुवाद भी बहुत दिलचस्पी से किए व पढ़े जाते रहे हैं। तर्जमा के माध्यम से ही Read more…