रोजी रोटी की तलाश में अपना घर जिला प्रदेश देश छोड़कर परदेश जाने की परम्परा आज से नहीं बल्कि आदिकाल  से चली आ रही है। लोग मजबूरी में धंधा करने अपना घर परिवार जिला देश छोड़कर जाते हैं और वहाँ की संस्कृति में रचबस ही नहीं जाते हैं बल्कि वहाँ के मतदाता बनकर राजनीति में हस्तक्षेप करने लगते हैं।देश की राजधानी दिल्ली से लेकर मुख्य आद्यौगिक राज्यों के विभिन्न शहरों में पूरे देश की विभिन्न संस्कृतियों के दर्शन किये जा सकते हैं क्योंकि यहाँ पर देश के कोने कोने से लोग जीविकोपार्जन करने आते हैं।देश के गुजरात एवं महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोग मेहनत मजदूरी करने देश के हर राज्य से आते हैं और चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।महाराष्ट्र में शिवसेना इन उत्तर भारतीयों का विरोध बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद से ही करके इन्हें यहाँ से भगाने के लिए इन्हें तरह तरह से प्रताड़ित कर रही है। इधर कुछ सालों से महाराष्ट्र की हवा गुजरात में आ गयीं है क्योंकि महाराष्ट्र के बाद सबसे ज्यादा उत्तर भारतीय गुजरात के अहमदाबाद बडोदरा एवं सूरत में रहकर अपना जीविकोपार्जन करते हैं।स्थिति यहाँ तक पहुंच गई है कि इन शहरों में उत्तर भारतीयों की तादाद वहां के मूल निवासियों से ज्यादा हो गई है और उनका वर्चस्व एवं राजनैतिक दखल दिनदूनी रातचौगुनी गति से बढ़ता जा रहा है। अबतक गुजरात में महाराष्ट्र की तरह उत्तर भारतीयों को मारपीटकर खदेड़ा नहीं जाता था लेकिन अब यहाँ पर भी इन्हें भगाने के लिए उन पर जानलेवा हमले और भेदभावपूर्ण व्यवहार होने लगे हैं।हम अक्सर कहते रहते हैं कि कभी पूरा समुदाय एक जैसी विचारधारा एवं प्रवृति के नहीं बल्कि अच्छे एवं बुरे दोनों तरह के लोग रहते हैं लेकिन कभी व्यक्ति विशेष की गलती की सजा पूरे समुदाय को नहीं दी जाती है। अभी एक सप्ताह पहले गुजरात में 28 सितंबर को स़ाबरकांठा जिले में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म की हुयी घटना में एक बिहारी युवक का नाम आने के बाद उत्तर भारतीयों पर अचानक हमले होने लगे है। सत्य अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जन्म एवं कर्मस्थली में हिंसा की वारादातें इस कदर बढ़ गई है कि उन्हें रोकने के लिये वहां की राज्य सरकार को विशेष सुरक्षा की कम्पनियां भेजनी पड़ी है। पूरे गुजरात राज्य में जगह जगह उत्तर भारतीयों पर हमले होने से भय दहशत एवं असुरक्षा का वातावरण बन गया है तथा लोग अपनी जान बचाकर भागने पर विवश हो गये हैं और अबतक करीब एक लाख से अधिक लोग वहां से भाग चुके हैं।इन उत्तर भारतीय मजदूरों के पलायन होने से तमाम फैक्ट्रियों के बंद होने की नौबत आ गयीं है जिसका विपरीत प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। एक व्यक्ति की गलती की सजा उसके पूरे परिवार गांव प्रदेश ही नहीं बल्कि कई राज्यों में फैले सभी उत्तर भारतीयों को देना उचित नहीं है। व्यक्ति विशेष की गलतियों की सजा समुदाय विशेष को देने की छूट हमारा संविधान नहीं देता है और उसके लिए न्यायालय बना हुआ है। गुजरात में बढ़ती हिंसक घटनाओं को लेकर जहाँ केन्द्र सरकार ने हस्तक्षेप करके रिपोर्ट तलब की है वहीं विपक्षी दलों ने उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त करते हुए तत्काल रोक लगाने की मांग की है तो बिहार एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने गुजरात के मुख्यमंत्री को फोन करके हिंसा पर रोक लगाकर उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों से बचाने के लिए कहा है। हांलाकि गुजरात पुलिस इस वीभत्स शर्मनाक घटना के बाद आरोपी बिहारी को गिरफ्तार करके जेल भेज चुकी है इसके बावजूद जिस तरह से गुजरात के आधा दर्जन जिलों में उत्तर भारतीयों को चिन्हित करके उन पर हमले किये जा रहे हैं उससे लगता है कि यह तवरित आक्रोश नहीं बल्कि एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत हो रहा है और इसकी आड़ में आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी हो रही है।गुजरात पुलिस का कहना है कि बाहरी राज्यों के लोग त्यौहारों के चलते अपने अपने घरों को जा रहे हैं उचित प्रतीत नहीं होता है क्योंकि गुजरात चेम्बर आफ कामर्स एंड इण्डस्ट्रीज ने मजदूरों के पलायन पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से इस पलायन को रोकने का आग्रह किया है।गुजरात पुलिस की भूमिका इन हमलों में संदिग्ध प्रतीत होती है और मिलीभगत की बू आ रही है क्योंकि अगर पुलिस गुजराती एवं उत्तर भारतीय देखकर नहीं बल्कि कानून के अनुरूप कार्य करती तो हमलावरों के इतने हौसले बुलंद न हो पाते।असलियत तो यह है कि इन उत्तर भारतीयों को गुजराती एवं महाराष्ट्री अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानने लगे हैं क्योंकि इनमें कुछ नौकर नहीं मालिक बनकर इन्हें नौकर रखने लगे हैं। केन्द्र सरकार की ढुलमुल नीति उत्तर भारतीयों पर भारी पड़ रही है और बेगुनाहों को मारपीटकर राज्य से खदेड़ा जा रहा है।

 – भोलानाथ मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

रामसनेहीघाट, बाराबंकी [ उत्तर प्रदेश ]

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