राजनीति उस शतरंज की उस चाल की बिसात की तरह मानी जाती है जिसमें जरा सी चूक होने पर खिलाड़ी चारोखाने चित्त हो जाता है और बना बनाया काम बिगड़ जाता है। आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इधर राजनैतिक गोट बिछाकर एक दूसरे को कमजोर कर चुनावी महा संग्राम फतह करने का प्रयास करने की मुहिम जैसे शुरू हो गई है।केन्द्र की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपने तरीक़े से जीन जान लगाकर विपक्ष की भूमिका निभा कर विपक्षी एकता के एक लम्बे अरसे से महागठबंधन बनाने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इतना ही नहीं बल्कि विभिन्न अवसरों पर कांग्रेस भावी महागठबंधन का प्रदर्शन भी कर चुकी है। केन्द्र सरकार की दशा एवं दिशा तय करने में देश के सबसे राज्य माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने सपा बसपा ऐसे सशक्त दल माने जाते हैं जो प्रदेश के लोकसभा चुनाव परिणामों को प्रभावित करने में सक्षम माने जाते हैं। सपा कांग्रेस की दोस्ती की शुरुआत तो पिछले विधानसभा चुनाव में ही हो गई थी और चुनाव बाद भी साथ जीने मरने की कसमें खाई जा रही थी। अभी महीने दो महीने पहले तक सपा बसपा कांग्रेस तीनों महा गठबंधन का गुणगान कर रहे थे लेकिन बसपा के बदलते तेवर को देख अब सपा भी गठबंधन से बिचककर कांग्रेस की दोस्ती को लात मारकर बसपा के साथ आ गई है।इसी के साथ ही महागठबंधन का भविष्य अंधकार में डूबता नजर आने लगा है क्योंकि सपा बसपा ही महागठबंधन की रीढ़ माने जा रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनावों में बसपा सम्मान जनक भागीदारी पर अड़ी हुयी है और कांग्रेस के समुद्र में अपने अस्तित्व को खतरे में डालकर अपना भविष्य खराब नहीं करना चाहती है। बसपा अपने जनाधार को दूसरे के जनाधार में विलय करना नहीं चाहती है क्योंकि बसपा बनने से पहले उसका जनाधार कांग्रेस से जुड़ा था और बाबू जगजीवनराम उसके सर्वमान्य नेता माने जाते थे।लगता है कि शायद यहीं कारण है कि बसपा कांग्रेस को भाजपा की तरह फूटी आँखों भी देखना नहीं चाहती है और शायद इसीलिए लोग कहने भी लगे हैं कि विपक्षी गठबन्धन की सारी उम्मीदें टूट गयी हैं।बसपा का सम्मानजनक सीटें माँगना इस बात का प्रतीक माना जाता है कि उन्हें कम सीट बँटवारे में मिलने की आशंका है और यह सही भी है क्योंकि महागठबंधन में सीटों का निर्धारण सहयोगी दल के पिछले प्रदर्शन एवं औकात को देखकर होता है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश में राजनैतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं और समाजवादी पार्टी में पिछले तीन वर्षों से चल रहे महाभारत का अंत सेकुलर समाजवादी मोर्चे के गठन के साथ हो गया है।मोर्चे के गठन के ऐलान के साथ ही पूरे प्रदेश में नवागत राजनैतिक दल के रूप में उसका विस्तार करके सक्रिय कर दिया गया है और हर जिले में सगंठन खड़ा हो गया है।सपा संस्थापक नेताजी मुलायम सिंह यादव के कभी विश्वासपात्र रहे सगे भाई शिवपाल सिंह को स्वप्न में भी विश्वास नहीं था कि एक ऐसा समय भी आयेगा जबकि उन्हें अपने दम पर अपने नाम और अपनी अगुवाई में अलग राजनैतिक दल का गठन करना पड़ेगा। फिलहाल कुछ लोग इसे मोदी अमित मैजिक का प्रतिफल तो कुछ लोग इसे समाजवादी पार्टी में बंटवारा मान रहे हैं और उनका विश्वास है कि मोर्चा चुनाव में समाजवादी मतों मेंं बँटवारा कर सकता है। सपा बसपा की बेरुखी देख कांग्रेस ने भी अपने दमखम पर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है और उसके अगुवा राहुल गांधी कमर कसकर चुनावी मैदान में कूद गये हैं। इतना ही नहीं भाजपा के हिन्दुत्व का मुकाबला करने के लिये अमरनाथ चित्रकूट धाम आदि जगहों पर हिन्दुत्व का प्रदर्शन भी कर चुके हैं और उनका राफेल सौदों में घपले का मामला अन्तर्राष्ट्रीय बन गया है और सुप्रीम कोर्ट को दो दिन पहले दखल देकर अगले हफ्ते खरीद फरोख्त आदि की जानकारी का बंद लिफाफा अदालत में पेश करने के लिये कहा है। आगामी लोकसभा चुनाव ही है जिसके लिए पुरानी घटनाओं को ताजा करके एक दूसरे को बदनाम करने का दौर चल रहा है और मोदी सरकार के एक मंत्री भी इसकी चपेट में आ गये हैं। इसी भावी चुनावी दौर में एक तरफ मोदी योगी अमित बाबा खड़े हैं तो दूसरी बार उनके विरोधियों की फौज खड़ी है और महागठबंधन की पहल से लगता है कि भाजपा को सभी महाशक्तिशाली मानते हैं। सपा बसपा का गठबंधन और सेकुलर समाजवादी मोर्चा आगामी लोकसभा चुनाव में कितनी भूमिका निभा पायेगा यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। प्रदेश में निर्जीव मानी जाने वाली कांग्रेस की सजगता एवं सक्रियता का भी प्रतिफल चुनाव परिणाम आने के बाद ही ज्ञात होगा।

  – भोलानाथ मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

रामसनेहीघाट, बाराबंकी [ उत्तर प्रदेश ]

कृपया टिप्पणी करें