अगर प्रौराणिक ग्रन्थों एवं इतिहास को साक्षी मानकर देखा जाय तो यह सही है कि त्रेतायुग में अवध क्षेत्र में विष्णु भगवान ने अपने वायदे के मुताबिक अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट प्रथम आदिपुरुष एवं आदिनारी मनु सतरूपा के वंशज महाराजा दशरथ के यहाँ अपने चार भाइयों के साथ अवतरण लिया था। यह भी सही है कि अयोध्या जी का अब तक तीन बार विनाश हो चुका है और वर्तमान अयोध्या को भगवान राम के वंशज विक्रमादित्य ने बसाया था। यह भी कटु सत्य है कि मुगल शासक काल में धार्मिक कट्टरता के चलते भारत के इतिहास भूगोल ही नहीं बल्कि धर्म संस्कृति को बदलने का प्रयास किया गया था और उसी दौर में अयोध्या में जबरदस्ती बाबरी मस्जिद का निर्माण भी कराया गया था। यह भी सही है कि आजादी के बाद इस पर हिन्दुओं ने भगवान का प्राकट्य बताकर पूजा अर्चना शुरु कर दी थी। आजादी से लेकर अस्सी के दशक तक वहाँ पर हिन्दू पूजा पाठ दर्शन आदि करते थे और मुस्लिमों से कोई मतलब नहीं था सिर्फ दोनों पक्षों में मुकदमा चल रहा था। यह मुद्दा आज भी मुकदमा सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है और आजतक कोई फैसला नहीं हो सका।यह मामला उस समय जीवंत हो गया था जबकि पहली बार विश्व हिन्दू परिषद की अगुआई में बिना किसी आदेश बंद ताले को खोलने की मांग को लेकर ऐतिहासिक यात्रा निकाली गई और इसके बाद बंद ताले को खोल दिया गया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस स्थान पर मंदिर का शिलान्यास करवा दिया था।इसके पश्चात सन् नब्बे में यह मामला एक बार उस समय सुर्खियों में तब आया जबकि विश्वहिन्दू परिषद की अगुवाई में रामभक्तों के अयोध्या के प्रतिबंध के बावजूद सरकार को ठेंगा दिखाते हुये मंदिर बनाने पहुंचे कारसेवकों पर गोली चला दी गई और कई कारसेवक मंदिर के नाम पर बलिदान हो गये।इसके बाद यह मामला 1992 में उस समय सारी सीमाओं को लाँघ गया जब कल्याण सरकार के जमाने में राजनैतिक नेताओं की मौजूदगी में इस विवादित मंदिर मस्जिद के भवन को तोड़ डाला गया। इसके बाद से यह स्थल कड़े सुरक्षा के घेरे में है और सरकारी पुजारी यहाँ पर धार्मिक गतिविधियों को संचालित करता है और सारा इसकी देखभाल से लेकर अन्य सभी खर्चों को भारत सरकार वहन करती है। भाजपा शुरू से ही राम मंदिर की हिमायती रही है लेकिन जब अटल जी की अगुवाई में धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बना तो यह कहा गया कि काश्मीर में 35 और धारा 370 तबतक समाप्त नहीं किया जा सकता है जब तक भाजपा को स्पष्ट जनादेश नहीं मिलता है।इस बार स्पष्ट जनादेश भी मिल गया है लेकिन मामला कोर्ट में अटका भारतीय न्यायिक व्यवस्था के नाम पर आंसू बहा रहा है जबकि सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के कगार पर है। मंदिर का मामला उतना सुर्खियों में नहीं था जितना कि इस समय हो गया है और एक बार फिर अयोध्या में जनसैलाब नहीं उमड़ने वाला है, बल्कि 6 दिसंबर 1992 जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही हैं।  सरकार का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करेगी और इस धर्मसभा में नहीं शामिल होगी। विश्व हिन्दू परिषद एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सफल धर्मसभा के लिये सारे व्यापक प्रयास कर रहे हैं और स्पष्ट कह रहे हैं कि इसके बाद कोई धर्म सभा धरना प्रदर्शन आदि नहीं बल्कि सीधे मंदिर निर्माण होगा। जो दबाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्वहिंदू परिषद इस समय चुनाव के ऐन मौके पर कर रहे हैं अगर यही दबाव साल दो साल पहले बना लेते तो शायद सरकार दबाव में ऐनकेन प्रकारेण इस दिशा में अब तक कोई फैसला लेकर मंदिर बनवा चुकी होती। यह सही है कि इस तरह के आयोजनों से नगरवासियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और उनके दिलों में पुरानी घटनाओं को याद करके दहशत पैदा हो जाती है। यह कहना गलत होगा कि इस आयोजन से अयोध्या में एक अजीबोगरीब भय दहशत का माहौल बन गया है और किसी अनहोनी की डर लोगों को सताने लगी है। 

     – भोलानाथ मिश्र

 वरिष्ठ पत्रकार/ समाजसेवी

रामसनेहीघाट, बाराबंकी, यूपी

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