हमारा देश एक समय में विश्व गुरु माना जाता था और हमारी संस्कृति, हमारा पहनावा, हमारे रीति रिवाज दुनिया से भिन्न हमारे देश की पहचान थे, जिसके सभी कायल थे। हमारी भारतीय संस्कृति में अपनी नारी को शक्ति एवं बालिकाओं को देवीस्वरूपा तथा धर्म पत्नी गृहलक्ष्मी माना जाता था। अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर बाकी नारी जगत को मां बहन बेटी की दृष्टि से देखने की परंपरा रही है। हमारी संस्कृति में जवान लड़की को भी पिता के साथ एकांत में रहने की इजाजत नहीं दी गई है, क्योंकि कामवासना का भूत जब मनुष्य के सिर पर सवार होता है तब वह सारे नाते रिश्तो को भुला कर अच्छे भले को भी पागल बन देता है। यही कारण था कि हमारे यहां पर जब तक लड़की की शादी विवाह नहीं हो जाता था, तब तक उसे श्रृंगार करने एवं उत्तेजक वस्त्र पहनने की अनुमति नहीं दी जाती थी और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने का रिवाज था। इतना ही नहीं घर पर आने वाले अतिथियों मेहमानों, बाहरी लोगों एवं घर में काम करने वाले नौकरों आदि को महिलाओं से दूर घर के अंदर न बिठाकर घर के बाहर बिठाया जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि कामवासना का भूत कभी भी सवार होकर दिमाग को गलत रास्ते पर अग्रसर कर सकता है।नारी की सुंदरता को देखकर कोई मोहित न हो इसके लिए हमारे यहां पर पर्दे की व्यवस्था की गई थी और लड़कियों को सादगी के साथ रहने की परम्परा थी।
हमारे यहां माता पिता को अवयस्क लड़का या लड़की का पालक संरक्षक पोषक मार्गदर्शक नियंत्रक एवं रक्षक माना जाता है तथा वयस्क होने पर दोनों की शादी विवाह करने की जिम्मेदारी भी माता पिता की ही होती है। एक समय था जबकि लड़की की शादी के मामले में कहा जाता था कि-” ब्याहा मिलै भाग्य से उड़हरा मिलै आँख से देखिकै”। कहने का मतलब कि लड़की की शादी की जिम्मेदारी का निर्वहन उसके माता पिता अथवा संरक्षक करते थे और जहां वह रिश्ता तय कर देते थे लड़की उसी को अपनी भाग्य मानकर अपना पति परमेश्वर मान लेती थी। कहते हैं कि लड़की मायके से डोली में बैठ कर जाती है और ससुराल से अर्थी पर बैठकर निकलती है। लड़की को कुल खानदान की मान मर्यादा एवं इज्जत माना जाता था और उससे मर्यादित जीवन जीने की सलाह दी जाती थी।
जब तक हम भारतीय संस्कृति के पोषक थे तब तक इतनी अमर्यादित घटनाएं इतनी नहीं होती थी लेकिन जब से हम पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर अपने को पढ़ा-लिखा योग्य आधुनिक मानने लगे हैं तब से समाज में कुल की मान मर्यादा हमारी संस्कृति रीति रिवाज एवं मान्यताएं कलंकित होने लगी है। यह सही है कि समाज में पुरुष की तरह नारी को भी स्वच्छंद रहने पढ़ने लिखने नौकरी करने एवं घूमने टहलने आदि का समान अधिकार है, लेकिन यह भी सही है कि लड़की की स्वच्छंदता की एक सीमा भी निर्धारित है। हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उसकी लाडली बेटी को अच्छा वर, अच्छा घर, अच्छा खानदान एवं अच्छा भविष्य मिले। इसीलिए बेटी के सयानी होते ही उसकी शादी की चिंता मां-बाप को सताने लगती है और वह बेटी की शादी के लिए अपना घर दुकान खेत तक दांव पर लगा देता है।
इसके लिए भले ही वह दाने-दाने का मोहताज या कर्जदार हो जाए लेकिन अपनी लाडली बेटी के लिए गृहस्थी के सारे सामान विदाई के समय दहेज के रूप में यथाशक्ति जरूर देता है ताकि उसकी बेटी की गृहस्थी में कोई कमी न होने पाए और वह सुख में जीवन व्यतीत कर सके। स्वच्छंदता एवं अधिकार का मतलब यह नहीं होता है कि अपरिपक्व अवस्था में लड़की को मनमानी करने और दूसरों के साथ घूमने टहलने एवं मनमानी करने की छूट दे दी जाए। लड़की की शादी कोई बच्चों का खेल नहीं होती है क्योंकि शादी जीवन भविष्य से जुड़ी हुई होती है। यही कारण है की लड़की की शादी के समय माता पिता भाई नाते रिश्तेदार सभी मिलकर सुयोग्य कुल परम्परा के तहत उसके लिए सुयोग्य वर की तलाश करते हैं एवं चयन करने से पहले उसके बारे में गहन छानबीन करने के बाद ही उसका हाथ देने का फैसला करते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर सभी माता पिता बेटी के हाथ पीले करने का फैसला करने से पहले बेटी की सहमति जरूर ले लेते हैं और जिस चयनित वर को लड़की नापसंद कर देती है उसके साथ शादी नहीं करते हैं।
कहा जाता है कि कुछ कार्य अपने सामान कुल खानदान में ही होते हैं उसमें शादी भी आती है। इसीलिये शादी हमेशा अपनी जाति बिरादरी एवं कुल में करने की परम्परा रही है। आधुनिकता के दौर में भले ही हम अपनी संस्कृति एवं कुल परंपरा को आडंबर कह रहे हो लेकिन यह सत्य है कि जिन शादियों में माता पिता भाई एवं कुल परम्परा को नजरअंदाज करके प्रेम विवाह कर लिया जाता है वह अधिकांश रिश्ते लंबे समय तक चल नहीं पाते हैं क्योंकि भावना में लिया गया फैसला भावना बदलने के साथ ही बदल जाया करता है। इस समय आधुनिकता के दौर में माता पिता की इच्छा के विपरीत कुछ लड़कियों को अपने वर की तलाश करके उनके साथ घर से भाग कर शादी रचाने की परंपरा शुरू हो गई और अपने को विकसित दिखाने के लिए अंतर्जातीय विवाह होने लगे हैं। लड़कियां घर से भागकर माता पिता भाई की इच्छा के विपरीत अदालत में शादियां करने लगी है और लड़कियों के इस मनमाने फैसले से आक्रोशित कुछ परिजन कानून भी अपने हाथ में लेने लगे हैं। जन्म से लेकर 16 से लेकर 20-25 साल तक माता पिता की सेवाओं को कुछ लड़कियां नजरअंदाज कर क्षणिक शादी के जुनून में उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी हैं और घर से अपने तथाकथित प्रेमी के साथ भागने के बाद माता पिता को दुश्मन मानने लगी हैं।स्थिति तो यहां तक बिगड़ गई है कि इस समय हमारे यहां पर दुश्मनों ने प्यार मोहब्बत की आड़ में लव जिहाद शुरू कर दिया गया है और भोली भाली लड़कियों को प्यार मोहब्बत में फंसाकर शादी का झांसा देकर उनका धर्म परिवर्तन तक कराने लगे है।
जिन महिलाओं ने अंतर्जातीय शादी कर ली है वह भी लड़कियों को अंतर्जातीय शादी करने के लिए प्रोत्साहित करने लगी हैं और समाज को दिशा प्रदान करने वाली हमारी मीडिया के कुछ लोग भारतीय संस्कृत के पोषक न बनकर जैसे भारतीय संस्कृत एवं कुल परंपरा को नष्ट भ्रष्ट करने में जुट गये हैं।माता पिता की इच्छा के विपरीत अबतक तमाम अन्तर्जातीय विवाह हो चुके हैं लेकिन अभी पिछले दिनों एक राजनेता की लड़की का एक अंतर्जातीय युवक से शादी करना मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है और इस मामले को सुर्खी बनाकर कुछ न्यूज चैनल टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में घर से भागने वाली लड़कियों के पक्षधर बन गये हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की एक चर्चित वरिष्ठ महिला एंकर इस विवाद में घिर गयी हैं और इस समय उनकी निंदा सोशल मीडिया पर हो रही है।इतना ही नहीं संबंधित लड़की के निर्णय के पक्ष एवं विपक्ष में जोरदार बहसें छिड़ी हुई है।
– भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट,बाराबंकी, यूपी