राम पाल श्रीवास्तव जी का “शब्द-शब्द” काव्य संग्रह जैसे ही खोला तो पाया कवि ने सबसे पहले तो देश के विभिन्न प्रांतों के कवियों की खूबसूरत कविताओं के साथ और उनकी भरपूर जानकारी के साथ एक कोलाज बना दिया है। पहला शब्द आपको अपने मोहपाश में बांध लेता है। फिर आप किताब को पढ़े बिना नहीं छोड़ते हैं। कविताओं में समाज बड़े अच्छे ढंग से आता है और शब्द की महिमा का गुणगान जिस तरीके से कवि ने किया है, वह अपने आप में लाजवाब है। सिख धर्म की बात करूं तो शब्द को ही गुरु की संज्ञा दी गई है। गुरु मान्यों ग्रन्थ कहा गया है। इस कथन को सिद्ध भी करते हुए दिखते हैं, अपनी सभी कविताओं में। कवि ने शब्द के विभिन्न रूपों को लेकर कई कविताएं संग्रह का हिस्सा बनाई हैं। एक–एक शब्द ब्रह्म वाक्य की तरह लगता है। देखिए उनकी पहली ही कविता “शब्द-शब्द’ में –

शब्द क्या है
अंदर का बंध
अनहद नाद
दिलों तक पहुंचने का तार
रूह के तर-बतर का औजार
झंकृत करना शब्दकार
हकीकत की परछाई बनाकर
एक बहाना बनाकर
कोई कितना भी ऊपर चढ़ जाए
शब्द नहीं तो
काठी नहीं
जिस पर टिके
शब्द को भगवान की संज्ञा भी दी गई है। इसीलिए तो कहा जाता है शब्द शाश्वत है, शब्द ब्रह्म है। शब्द एक ऐसी सत्ता है जिसे कभी खत्म नहीं होना है। आज भी माना जाता है जो शब्द एक बार जुबान से निकलता है, वह कहीं न कहीं आकाश में गूंजता रहता है। अब तो यह बात साइंटिफिकली भी सामने आई है कि महाभारत के काल में जो शब्द कुरुक्षेत्र की धरती पर भगवान कृष्ण द्वारा उपदेश के रूप में दिए गए थे, वह शब्द आज भी फिजाओं में गूंज रहे हैं। खैर शब्दों की परिभाषा जिस तरह से कविताओं मे गढ़ी गई है वह अपने आप में बेमिसाल है। शब्दों की बानगी देखिए
शब्द बम बम से उच्चारित होकर रूप धारता है
अणु से होकर
हाइड्रोजन के आगे का सफर तय करता है
शब्द मुश्किल कुशा है
जय जय से
अजकार बनकर
ओम् से अकबर बनकर
नमः से सलात बनकर
ईसा का चमत्कार बनकर
यह शब्द ही तो है
जो ओँकार से
वाहेगुरु
गॉड रूहुलकुदुस रब से अस्माउलाहुस्ना के
99 तक पहुंच जाता है
सहस्रनाम से आगे बढ़ 33 कोटि तक जाता है
फिर भी परमात्मा के गौरव का बखान पूर्ण नहीं
इतना लंबा सफर
फिर भी आगे बढ़ता जाता है
सततगामी है
अमर है
शाश्वत है
जीवन का उपवन है
ज्योति है
जिंदगी का परवाज है
जिस पर किसी का अधिकार नहीं
कोई हस्तक्षेप स्वीकार नहीं।
शब्द की इतनी गहन व्याख्या मैंने तो किसी कविता में नहीं देखी शायद आप लोगों ने भी न देखी सुनी हो। शब्द का रेशा-रेशा भेदने में सफल हुए हैं राम पाल श्रीवास्तव जी। मुझे तो हैरानी हो रही है, कोई व्यक्ति इस तरह से भी कविता को शब्द का जामा पहना सकता है। लेकिन कवि ने पहनाया है, उस पर हमें सभी को गर्व होना चाहिए। जब वह “शब्द भर जीवन” कविता की बात करते हैं तो बताते हैं कैसे शब्द उठते- बैठते सोते- जागते उनके सफऱ के कैसे भागी बनते हैं। और जीवन के सच को उसमें समेटते हुए अपनी यात्रा पर चलते हैं। शब्द भी इंसान की जिंदगी तरह यात्रा करते दिखाई देते हैं। कोई मंजिल तक पहुंच जाता है कोई मंजिल पर पहुंचकर भी प्यासा रह जाता है। देखिए उनकी कविता की पंक्तियां
 ये शब्द चलते हैं
मेरे जीवन के साथ-साथ
जीवन भर निरंतर
इक आशा लिए
रोतने की प्रक्रिया में
स्थानापन्न बनते हुए
ये शब्द
खो जाते
किसी अदृश्य जगत में
अपने जोम में
नैमित्तिक
वास स्थान की ओर
अपनी दुनिया में
तरह-तरह के शब्द
शब्द पूरे काव्य संग्रह में बातें करते हुए जब “पिताश्री का गुलाब” तक पहुंचते हैं तो कवि के शब्दों का एक नया रूप सामने आता है और वह रूप शब्दों का गुलदस्ता बन जाता है। वह लिखते हैं
फूलों को देखना अच्छा लगता है
ईश्वर की याद दिलाता है यह
लोक ही नहीं
परलोक भी महकाते हैं ये
लाल गुलाब में कुछ खास जीवन है
इससे मेरा प्रेम भी खास है
लेकिन पंडित नेहरू जैसा नहीं
जो अपनी पत्नी की याद में निमग्न थे
शेरवानी पर लाल गुलाब लगाते थे
मेरा प्रेम नैसर्गिक है, रूहानी है
दुनियावी मायावी नहीं
विक्टोरियाई कवि अल्फ्रेड टेनिसन की फूलों की तरह
जहां से वह रूहानियत की खोज में निकलते थे
कवि ने रूहानियत की खोज भी बहुत सुंदर ढंग से की है और अपने पाठकों को भी रूहानियत के सफर तक जाने के लिए प्रेरित किया है। मैं इस सुंदर संग्रह के लिए उन्हें दिल से शुभकामनाएं देता हूं।
– डॉ.अजय शर्मा
[ वरिष्ठ उपन्यासकार ]

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