मुझे कई नामचीन संपादकों के साथ काम करने का मौक़ा मिला | इन यशस्वी संपादकों में गुरुवर पंडित लक्ष्मी शंकर व्यास जी, गुरुवर चंद्र कुमार जी, बड़े भाई सत्य प्रकाश ‘असीम’ जी आदि के नाम हैं ही | बच्चन सिंह जी का नाम मैं इनमें क़तई नहीं जोड़ना चाहता हूँ, क्योंकि मैंने ‘ स्वतंत्र भारत ‘ [ वाराणसी ] में स्टाफ़ रिपोर्टर की हैसियत से जितने महीने काम किया, उनको कभी आम संपादक के रूप में पाया ही नहीं | वे सदा सक्रिय और हर परिस्थिति के लिए तैयार रहते | डेस्क रिपोर्टिंग के सिरे से ख़िलाफ़, यहां तक कि बड़ी घटना पर ख़ुद वहां जाना पसंद करते थे | अकेले हैं तो क्या हुआ, एक – दो दिन तो पूरा अख़बार निकाल लेना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी | शायद इसी दक्षता के चलते प्रबंधन के प्रिय बन जाते थे | वे कहते थे बस काम करते जाओ सलीक़े से, जीवकोपार्जन यही है | कभी कहते , ” पत्रकारिता जीवकोपार्जन का साधन होने के बावजूद मिशन है |”
वाराणसी में ” The Pioneer ” का प्रकाशन जब शुरू हुआ, तो सरस्वती शरण ”कैफ़” जी इसके रेजिडेंट एडीटर बने | मैं पहले से ही कैफ़ जी के साथ स्ट्रिंगर के तौर पर काम करता था | कैफ़ जी के साथ मैं भी ” The Pioneer ” जुड़ गया और लोकल ख़बरें देने लगा | इसके कुछ समय बाद लहरतारा [ वाराणसी ] से ही इसका हिंदी प्रकाशन भी मंज़रेआम पर आ गया, तो उससे भी जुड़ा | बच्चन सिंह जी इसके स्थानीय संपादक थे | जब ” स्वतंत्र भारत ” की डमी निकाली जा रही थी, संपादक जी ने संपादकीय विभाग से जुड़े सभी लोगों की मीटिंग की और तय किया कि इसका प्रवेशांक वाराणसी पर केंद्रित होगा, जिसके सिलसिले में विज्ञापन एकत्र किए जा चुके हैं | यह भी तय हुआ कि कौन क्या लिखेगा ? मेरे ज़िम्मे बनारस की गलियां आईं | बच्चन जी ने कहा कि ” साइकिल से सारा बनारस छान चुके हो | अब इसकी गलियों पर लिखो, लेकिन फिर गलियों में जाकर | ” मैंने काफ़ी मेहनत और मनोयोग से लंबा फ़ीचर तैयार किया , जो लगभग बिना किसी काट – छांट के अख़बार के पूरे एक पेज पर छपा, जिसका शीर्षक था – ” गलियों का शहर बनारस ” | यह मेरा दुर्भाग्य था कि बच्चन जी के साथ कम समय तक ही काम कर सका, क्योंकि ” स्वतंत्र भारत ” का प्रकाशन बंद हो गया | इसके बाद मयूर विहार , दिल्ली में उनसे एक बार भेंट हुई, जब वे बीमार थे और बेटे विनय के साथ रहते थे | उन दिनों मैं मयूर विहार अक्सर जाया करता था डॉ. देवेश चंद्र के आवास पर, जो उन दिनों गृह मंत्रालय में राजभाषा अधिकारी थे | वे मेरे घनिष्ठ मित्रों में थे |
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, ”Bharatiya Sanvad”