न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ है ,
जो गुल हूँ तो गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में।
– बेधड़क बनारसी

bedhadak ji
मेरे गुरुवर श्री बेधड़क बनारसी जी [ श्री काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर जी ] वह हस्ती रहे हैं,जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में युगान्तरकारी कार्य किया। द्वितीय महायुद्ध के समय हिन्दी के दैनिक अखबार रविवार विशेषांक प्रकाशित नहीं करते थे। उन्होंने इस दिशा में सर्वप्रथम प्रयास किया और दैनिक ‘आज ‘ और ‘संसार’ [ हिंदी दैनिक ] के विशेष परिशिष्ट निकाले। उन्होंने अन्यों को एक तरह से विवश कर दिया कि परिशिष्ट – प्रकाशन करें | आज भी सभी दैनिक / साप्ताहिक पत्र अपने विशेषांक/ परिशिष्ट निकालते हैं। रविवारीय परिशिष्टों का तो बड़ा रिवाज रहा है। बेधड़क जी संपादकाचार्य पंडित बाबू राव विष्णु पराड़कर की पत्रकार – मंडली में थे। इसी मंडली में डॉ. संपूर्णानंद और पंडित कमलापति त्रिपाठी भी थे। जब पंडित कमलापति त्रिपाठी [ कार्यकाल 4 अप्रैल 1971 – 12 जून 1973 ] उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, गुरुजी, जिन्हें पंडितजी ‘ कविराज ‘ कहते थे , उत्तर प्रदेश सरकार की हिंदी समिति के सचिव थे | उस समय पंडित जी ने गुरुजी की तंत्र – साहित्य पर रचित पुस्तक की प्रस्तावना लिखी थी | वास्तव में बेधड़क जी कमाल की हस्ती थे , हरफनमौला थे |
उखड़ते हुए कवि-सम्मेलनों को जमाना आपके बायें हाथ का खेल था। आप मुझे ग्रामीण पत्रकारिता पढ़ाते थे , जो मेरे एम . जे . एम . सी . पाठ्यक्रम का एक विषय था | ऐसा नहीं था कि आप किसी एक विधा को ही पकड़े बैठे हों | एक ओर जहाँ हास्य कवि के रूप में बड़ी प्रसिद्धि थी, गंभीर लेखन [ काव्य भी ] उच्च कोटि का था और पत्रकारिता थी लाजवाब ! गज़ब का अध्यापन – कार्य भी ….. हर विधा को अपनाने की आपकी अपनी निराली शैली थी | उनके अध्यापन का मैं प्रत्यक्षदर्शी ही नहीं अनुभावी था | मेरे सहज स्मरणीय वृतांतों में एक यह है कि गुरुवर ने हम विद्यार्थियों को खाने पर बुलाया | मैं सबसे पहले पहुंचा , पूर्वाह्न लगभग 11 बजे | अन्य चार व्यतिक्रम में एक बजे तक आते रहे | खाने के विविध प्रकार के आइटमों से हम सभी दंग थे | न कोई विशेष आयोजन और न ही कोई त्योहार | गुरु जी औपचारिक खुलेपन और उदारमना का बार – बार सबूत देते | उनके परिधान भी उनका साथ देते !
कुर्ता – धोती और जैकेट … क्या गज़ब का कांबिनेशन …. छोटे सांवले क़द पर फबता ही जा रहा था | बोलचाल की नफ़ासत से कोसों दूर …बिलकुल अपना ही माहौल …. गुरुजी को शायद लगता नहीं था कि हम सब उनके स्टूडेंट हैं , अपितु उनके लिए हम सब उनके घर के सदस्य थे | हम लोगों ने छक कर खाया …… सैर हो गए ! फिर भी गुरु जी खाने को कहते रहे |
हम सबके खाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण किया | जब हम लोग जाने को उद्यत हुए और स्व. भागीरथ शास्त्री ने उनके चरण स्पर्श कर लिए , तत्क्षण गुरुजी का गांभीर्य छलका …हास्य के आलंबन वाले चेहरे का यह तास्सुर भी कमाल का था | बोले ,’ क्या कोई बता सकता है कि हमने तुम लोगों को किसलिए बुलाया ?’ मैं समझ गया कि कुछ ‘बुरा’ होनेवाला है | मैं कुछ कहता , इससे पहले ही गुरुजी का काव्येतर कलाम सामने आया , ” अरे भाई , खाना खाने के लिए नहीं बुलाया |” विद्यार्थियों में एक मैडम भी थीं | वे जाना चाहती थीं और इस बात को उन्होंने स्थिति की गंभीरता को देखकर कह दिया | हम लोग भी जाने की बात कहने लगे |
फिर गुरुजी ‘गुरुजी’ बन गए | ज़ोर से और कुछ डांटने की मुद्रा में कहा , ‘कोई नहीं जाएगा सायं छह बजे तक | मैं पढ़ाऊँगा |’ हम सब अवाक थे | [ अफ़सोस की बात यह है कि गुरुवर बेधडक बनारसी जी का कोई चित्र मुझे नहीं उपलब्ध हो सका | गूगल बाबा के पास भी नहीं है | अति प्रसन्नता की बात है कि अर्णव मिश्रा जी [ नई दिल्ली ] ने आज एक सितंबर 2021 को अपने परनाना का फोटो उपलब्ध कराया है , उनका मैं आत्मिक रूप से आभारी और अनुग्रहीत हूँ  ….. धन्यवाद ]

– Dr RP Srivastava , Editor – in – Chief, ” Bharatiya Sanvad ”

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