[ एक पूर्व मंत्री जी की भार्या और मेरी आदरणीया बहन सुनीता शर्मा जी के आलेख , जो जीवन से उदासी और निराशा के वातावरण को दूर भगाने पर केन्द्रित था , पर मेरी एक फेसबुकी प्रतिक्रिया | यह बात 2011 की है | मेरी इस प्रतिक्रिया के बाद सुनीता जी अपने एक कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित किया था | ] …..
वास्तव में ख़ुशी के ही पल संजोना और इसमें दूसरों को सम्मिलित करना किसी तप से कम नहीं . लेकिन अगर यह तप करना हम सीख गये , तो न केवल हमारी ज़िन्दगी में स्वर्णिम – काल आ जाए , अपितु सारा समाज खुशहाली से सम्पन्न हो जाए और सबके जीवन में खुशियाँ भर जाएं . फिर यही धरा स्वर्ग बन जाएगी . अक्सर देखा जाता है कि हमारी सोच केवल कुछ भौतिक – इच्छा की प्राप्ति के लिए उसी के इर्द गिर्द घड़ी की सुई की तरह घूमती रहती है. इन्ही पलों में अगर हम अपनी विचारधारा को स्वस्थ आध्यात्मिकता के सहारे एक खूबसूरत दिशा की ओर मोड़ दें ,
जैसे जलधारा को नई दिशा मिलने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति को बचाया जा सकता है, ठीक वैसे ही विचारों के प्रवाह की दिशा बदलने से हम निराशारूपी बाढ़ में डूबने से बच सकतें है . हमारी ज़िन्दगी में अनेक छोटी – बड़ी खुशियों के पल आते हैं, क्यों न हम उनको संजो कर रखते जाएं ? जब भी वह पल हमे याद आयेंगे हमारा मन प्रफुल्लित हो उठेगा . क्यों न हम अपने जीवन में हर पल का हंसी – ख़ुशी के साथ जियें ? जो बीत चुका सो बीत चुका , आने वाले पल का कोई भरोसा नही ,तो क्यों न हम इस पल को भरपूर जियें ? इस पल में हम कुछ ऐसा करें जिससे हमे ख़ुशी मिले ,
आनंद मिले और दूसरों को भी इस प्रकार रहने के लिए प्रोत्साहित करें . जो कुछ भी हमे ईश्वर ने दिया है , उसके लिए प्रभु का कृतज्ञ बनकर उसका उपभोग करें ….. ” हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी ,छाँव है कहीं ,कहीं है धूप जिंदगी ” — इन पलों में से ख़ुशी के ही पल के साथ रहना और इस पल को दूसरों में बाँटना वास्तव में बड़ा पुण्य – कार्य है .
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