– [ स्व.] बम बहादुर सिंह ‘ सरस ‘
[ बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ]
[ 1 ]
छिलके में दोष भारी, छिलका बहुत फिसलता ,
फल है सभी को प्यारा, दर्जन के भाव बिकता |
[ 2 ]
खंभे की भांति मोटे हैं, चार पाँव उसके ,
धनवान पालते हैं , पंखे से कान उसके |
[ 3 ]
मालिक का भक्त है वह, लड़ता है भाइयों से ,
तुमको न जाने दूँगा , कहता है भाइयों से |
[ 4 ]
नीला है रँग उसका , हर ओर वह झुका है ,
कोई नहीं सहारा , पर देख लो रुका है |
[ 5 ]
बिन तीर के धनुष है , मिलता नहीं धरा पर ,
मन मोहता सभी का , रँग सात वह दिखाकर |
[ 6 ]
इस भूमि से बड़ा है , चलता है निरंतर ,
रख के पाँव सर पर , भागे अँधेरा डरकर |
[ 7 ]
खाते हैं हर समय सब , लेकिन न देख पाते ,
वह हर जगह मिलेगी , संकेत यह बताते |
[ 8 ]
आँखें बड़ी – बड़ी हैं , दिन में न देख पाता ,
सूरज के सामने वह , आने से मुंह छिपाता |
उत्तर –
- केला 2. हाथी 3. कुत्ता 4. आसमान 5. इंद्रधनुष 6. सूरज 7. हवा 8. उल्लू |
[ ”परिवेश”, हिंदी मासिक, जुलाई 1983, पृष्ठ 18, प्रधान संपादक / प्रकाशक – राम पाल श्रीवास्तव, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ]