पत्रकारिता के लिए यह सबसे दुःखद समय है। या तो आप वो लिखें और बोलें जो सत्ता में बैठे लोग चाहते हैं या फिर पुलिसिया हथकंडे का शिकार होकर जेल जाने के लिए तैयार रहिए। यह बुराई किसी एक सरकार की नहीं बल्कि वर्तमान समय की है। सत्ता में कौन है इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता सरकारी महकमा अपने आक़ा के ऊपर कोई आक्षेप बर्दाश्त नहीं कर रहा है। मुझे नहीं लगता कि कोई मंत्री कोई विधायक या कोई सांसद किसी पुलिस अधिकारी को बुलाकर कहता होगा कि फलां ने मेरे लिए ऐसा बोला है इसलिए उन्हें फंसा दीजिए। यह पुलिस अधिकारियों की अपनी तत्परता है जो वह ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता का खासम-खास बन जाने की प्रवृत्ति के कारण होता है।
पुस्तक ‘बचे हुए पृष्ठ’ 51 आलेखों का संग्रह है। जो विभिन्न राजनीतिक परिस्थितियों और अलग-अलग परिवेश में लिखे गए हैं। जिसकी शुरुआत मां पाटेश्वरी के ऊपर लिखे लेख से और अंत ‘भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कारगर उपाय अब भी दरकार’ से है। ये लेख लंबे अनुभव और समग्र दृष्टि के द्योतक हैं। विषयों की विविधता के साथ पूरी किताब में कहीं भी पक्षधरता या एकतरफा झुकाव देखने को नहीं मिलता है।
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य जनकल्याण के विभिन्न आयामों का गहन पड़ताल करना उसमे दिख रही खामियों के लिए जिम्मेदारों को लताड़ना साथ ही जनता को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना होता है। पत्रकार किसी संस्था, किसी किसी पार्टी, कोई दल, किसी समाज, किसी धर्म या किसी जाति से प्रतिबद्ध नहीं होता। उसकी दृष्टि समग्र होती है। जैसे बरसात होती है तो वह अमीर ग़रीब नहीं देखती वह सब खेतों में एक समान बरसती है। जैसे धूप होती है तो वह बड़ा छोटा नहीं देखती बल्कि सबको एक समान रूप से अपनी ऊर्जा देती है। जैसे फूल खिलता और वह हर तरफ अपनी खुशबू को बिखेरता है। पत्रकारिता भी ऐसी ही होनी चाहिए। इन लेखों को पढ़ने के बाद यही लगा कि जिसने पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा होगा उसने निर्विवाद रूप से कुछ ऐसे पत्रकारों पर अध्ययन करने के बाद ही कहा होगा।
राज यशगान की पत्रकारिता के इस दौर में आज भी अगर पत्रकारिता का ‘प’ से लेकर ‘त’ पर लगे बड़ा ‘आ’ की मात्रा तक अगर कुछ बचा है तो वह कुछ ऐसे गिने चुने पत्रकारों की वजह से ही बचा है।
नारद को आदि पत्रकार के रूप में हम सब जानते हैं। कुछ लोग उन्हें झगड़ा लगाने वाले के तौर पर बदनाम भी करते हैं। पर उनके कृत्यों को गौर से देखें तो पता चलेगा कि उनका मूल उद्देश्य मानवता की रक्षा करना और भगवन्नाम को बढ़ावा देना ही था। याद कीजिए जब कंस ने देवकी की कोख से उत्पन्न पहली पुत्री को वासुदेव के समझाने पर जीवन दान दे दिया था तब नारद ही थे जिन्होंने कंस को वैसा न करने के लिए प्रेरित किया था।
आज़ादी के दशकों बाद भी देश को जिन जटिल, पेचीदा, सोचनीय व गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है वह किसी भी थोड़ी सुध- बुध रखने वाले की निगाह से छिपी नहीं है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का जो अनिवार्यतः प्रभाव हमारे देश पर पड़ रहा है वह भी सामने है। दूसरी ओर यह भी सच है कि हमारे देश में प्रचुर भौतिक और प्राकृतिक संसाधन मौजूद है। विज्ञान तकनीक वित्त वाणिज्य व्यापार उद्यम कृषि और अनुसंधान के क्षेत्र में असाधारण प्रगति हुई है यहां तक की संसार के उन्नत देशों में हमारा देश भी शामिल हो गया है। इसकी दूसरी प्रमुख विशेषता इसके लोकतांत्रिक आधारों का मजबूत होना है यहां जनता को अधिकार है कि मताधिकार का इस्तेमाल करके केंद्र और राज्य सरकारों में अपने इच्छा अनुसार सरकार बना सकती है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। इन विशेषताओं के बावजूद हकीकत यह है कि देश के करोड़ों लोग बुनियादी जरूरतों से महरूम हैं। देश की संपत्ति सिमट कर कुछ हाथों में केंद्रित हो गई है। एक सर्वे के अनुसार 8200 लोगों के पास देश की 70 फीसदी संपत्ति है। संसाधनों का अन्याय पूर्ण वितरण और आर्थिक संतुलन ने अमीरों गरीबों के बीच की खाई कई गुना बढ़ा दी है। बहुत से संवैधानिक सुरक्षा प्रावधान के बावजूद अधिसंख्य जनता आतंक के साए में जिंदगी गुजारने के लिए अभिशप्त है। (आजादी के दशकों बाद से)
पुस्तक में ईवीएम मशीन से लेकर महिलाओं की स्थिति, पुलिसिया अत्याचार, शिक्षा, राजनीतिक भ्रष्टाचार, सीमा विवाद, दहेज हत्याएं, सांप्रदायिक दंगे, राजनीति का अपराधीकरण, देश में विधवाओं की स्थिति आदि विषयों पर सारगर्भित और महत्वपूर्ण लेख संकलित हैं।
देश जब चांद पर जाने की खुशियां मना रहा है। विदेशी कंपनियां मंगल ग्रह पर बस्तियां बसाने की योजनाएं बना रही हैं। अमेरिका के वाइजर मिशन सौर मंडल से हजारों प्रकाशवर्ष दूर जाकर नई नई गैलेकसीज के आंकड़े भेज रहे हैं। नासा टाइम मशीन बनाने के बिल्कुल नजदीक पहुंच चुका है। गॉड पार्टिकल की खोज हो चुकी है। ठीक उसी समय विश्वगुरु देश के कुछ इलाके अपनी माताओं और बहनों को डायन करार देने में लगे हैं। यह बेहद शर्म का विषय है।
सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सरकारों का मूल काम यही है। आजादी के इतने सालों बाद भी अभी तक हमारी सरकारें नागरिकों को सुरक्षा देने में ही नाकाम रही हैं शिक्षा और स्वास्थ्य की बात तो छोड़ ही दीजिए।
ऐसी किताबों को पढ़कर इन्हें इसलिए भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि आगे भी लोग ऐसा लिखने की हिम्मत कर सकें। कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनपर आज के अधिकतर पत्रकार कुछ करना ही नहीं चाहते और जो कर रहे हैं उन्हें हम और आप ही बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं।
निश्चित तौर पर यह किताब उद्वेलित करने वाली है जिसे पढ़ा जाना चाहिए। इसका हर लेख किसी स्तरीय समाचार पत्र के संपादकीय सरीखा है। जिसे पढ़कर ज्ञानार्जन भी किया जा सकता है और अपने सोचने के दायरे में विस्तार भी।
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पुस्तक – बचे हुए पृष्ठ
विधा – लेख संग्रह
लेखक – राम पाल श्रीवास्तव
प्रकाशक – शुभदा बुक्स
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समीक्षक – चित्रगुप्त
[ यशस्वी साहित्यकार ]
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लंबे अनुभव और समग्र दृष्टि के द्योतक हैं ‘बचे हुए पृष्ठ’
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