‘धन्य जीवन है वही जो ,दीप बनकर जल रहा ,
शुष्क भू की प्यास हरने , स्रोत बनकर चल रहा।
जग में जीवन श्रेष्ठ वही , जो फूलों – सा मुस्काता है ,
अपने गुण – सौरभ से , कण – कण को महकाता है।
मैं बहुआयामी प्रतिभा के धनी , हिन्दी साहित्य के अन्तरराष्ट्रीय सशक्त एवं सुपरिचित हस्ताक्षर डॉ . रामनिवास ‘ मानव ‘ जी को मैं बरसों से नहीं दशकों से जानता हूँ। 1997 ई . में आपके संपर्क में आया , यद्यपि आपसे भेंट नहीं हुई है , परन्तु फोन पर बातचीत होती रहती है। ‘मानव ‘ जी के अत्यंत मृदु , सौम्य एवं मानवोचित सुव्यवहार के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि उक्त चार काव्य पंक्तियाँ बहुत कम शब्दों में आपके जीवन का परिचय करा देती हैं। आपके जीवन का लक्ष्य महान है। वह है लेखनी के द्वारा ही नहीं , जनसेवा के अन्य उपादानों के द्वारा भी मानव – कल्याण, जो आपको उच्चता की ही ओर ले जाते हैं।
आपका सारा जीवन विशुद्ध रूप से जनहितार्थ है। आप मरणोपरांत अपने शरीर को मेडिकल कालेज को दान करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। लगभग 25 वर्ष पूर्व ही आप अपनी सारी संपत्ति साहित्य एवं समाजसेवा के कार्यों में लगाने की वसीयत कर चुके हैं। व्यावहारिक जीवन में अनथक प्रयास करके इस लक्षित उद्देश्य तथा कार्य को मूर्त रूप दे रहे हैं , जो विरले ही कर पाते हैं। साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर आपका अधिकार है। सैकड़ों , हज़ारों रचनाएं हैं। चालीस से अधिक महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। आपकी विविध रचनाओं के अनुवाद देश – विदेश की भाषाओँ में हो चुके हैं। डाक्टर साहब के बेशकीमती साहित्य पर 48 एम . फिल और पी – एचडी हेतु एक दर्जन शोधकार्य संपन्न हो चुके हैं। आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। आप देश – विदेश की डेढ़ सौ से अधिक प्रमुख संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत हैं। डाक्टर साहब पांच सौ से अधिक राज्य – राष्ट्रीय कार्यक्रमों और आयोजनों का सफल आयोजन कर चुके हैं। आप उच्च कोटि के साहित्यकार ही नहीं महान मानववादी हैं।
बेहद सादा तबियत के हैं। आप उदार हृदयी तथा सज्जनता की प्रतिमूर्ति हैं और आपके जीवन में धर्म , सम्प्रदाय को लेकर कोई कटुता , संकीर्णता और पक्षपात लेशमात्र भी नहीं . नवोदितों को उभारना आपका एक विशेष गुण है। मुझे याद आता है , जब मैंने सन 2000 के आरंभिक दिनों में आपकी सेवा में दो शब्द लिखने के निवेदन के साथ अपनी एक पुस्तक का मसविदा भेजा। उस समय आप हिसार [ हरियाणा ] स्थित सी . आर . एम . जाट कालेज के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष थे।
आपने पूरी पुस्तक पढ़ी और स्नेह – शब्दों के साथ समीक्षात्मक भूमिका लिखी , जिसके लिए मैं आपका सदैव आभारी , ऋणी हूँ और रहूँगा। वास्तव में आपकी रचनाएं बड़ी क़द्र की निगाह से देखी जाती हैं , क्योंकि इनकी सृजना में सतत मानव कल्याण निहित है। सभी में प्रभावकारी संदेश है . सबसे पहले आपकी बाल कविताओं पर एक नज़र डालते हैं और इनके संदेश को सुनते हैं –
खुले जगत में जीना सीखो
ताज़ा हो सब दाना – पानी ,
इतना कहकर , फुदक ज़रा – सा
फुर्र हो गई चिड़िया रानी .
[ ‘ चिड़ियारानी ‘ शीर्षक से ]
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‘ मिस्टर चूहेराम ‘ नामक कविता में यह संदेश है –
बोले , काम करो सब ख़ूब
सीखो सहना सर्दी – धूप ,
कभी न आलस का लो नाम
करो दूर से इसे प्रणाम .
डाक्टर साहब के कुछ दोहे भी मुलाहिज़ा फरमाएं –
शुद्ध हवा-पानी मिलें, उजली-निर्मल धूप
निखरे सारे विश्व में, तब-जीवन का रूप।
अग्नि, जल, वायु औ’ धरा, जीवन के आधार
इनके ही संयोग से, निर्मित यह संसार।
डॉ . रामनिवास ‘ मानव ‘ जी उच्चकोटि के कवि भी हैं , लेकिन आपकी सादगी निराली है . एक कविता की कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं –
जैसे कोई शिल्पी
गढ़ता रहे शब्द सुंदर
या रचता रहे छंद टकसाली
पर शब्द या छंद की
रचना के बाद भी
कितना मुश्किल है कवि होना ?
[ ‘ कितना मुश्किल है ? ‘ शीर्षक से ]
ईश्वर से प्रार्थना है कि डॉ . रामनिवास ‘ मानव ‘ जी का व्यक्तित्व – कृतित्व और निखरे एवं प्रांजल हो। आपकी षष्टिपूर्ति और सृजन की अर्द्धशती के सुअवसर पर बहुत – बहुत हार्दिक शुभकामनाएं .और बधाइयां ….
– – Dr RP Srivastava , Editor – in- Chief, ” Bharatiya Sanvad ”