मैं तो था ही !

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अब लोग पूछते हैं
क्या कुछ पढ़ा – लिखा है ?
क्या बताऊं, मैं उन्हें
जो पढ़ा
वह लिखा नहीं
जो लिखा
वह पढ़ा नहीं !
अब कुछ नहीं है
मेरे पास
सिवाय
यादों, वादों और बातों के –
संग हैं
जीवन के इंद्रधनुषी रंग
बदरंगी हालत में
अस्तित्व खोते हुए
तलाश में नवरंग के –
जानता हूं
खाक में मिलकर
रंगहीन हो जाना है
निर्वाक…
इसलिए मैं छोड़े जा रहा हूं
अपने शब्द
जो कभी मेरे संगी रहे
सदा के लिए
पण्य पदार्थ यही हैं मेरे
गाढ़े वक्त पर काम आएंगे !
तब यह न पूछना –
नहीं बताया था
मैं तो था ही…
मैं हूं
इतना बहुत है !
– राम पाल श्रीवास्तव ” अनथक “
 सितंबर के अंतिम दिन, 2022

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