इस पुस्तक पर नज़र पड़ी। यह उपन्यास है, लेकिन शीर्षक का मतलब क्या है, शायद लेखक को भी पता नहीं। इब्न बत्तूता अरब यात्री था, चौदहवीं सदी में मोरक्को से भारत आया। उसने रिहला नामक पुस्तक लिखी, जिसमें यात्रा विवरण है। इस पर फिल्मी गाना भी बना। गुलज़ार के शब्दों में ढला, जबकि साहित्य में इस नाम का ईजाद सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कर चुके थे। बत्तूता का मूल नाम मुहम्मद था। जबकि बाबा का नाम बत्तूता। पिता का नाम था अब्दुल्लाह। भारत में मुहम्मद का नाम बत्तूता कैसे पड़ गया, यह भी समझ में नहीं आता? अरबों की रिवायत के अनुसार, संतति में बाप – दादा आदि पूर्वजों के नाम होते। इस प्रकार लंबे नाम हो जाते। मैंने अरबियों के नाम के साथ दो -तीन दर्जन तक नाम जुड़े नाम पढ़े हैं। लड़कों के नाम में इब्न जुड़ता, जो बिन भी हो जाता। ऐसे ही लड़कियों के नाम में बिंत लगाया जाता। इब्न को बोलने में इब्ने भी कहते और बिंत को बिंते। बत्तूता का भारतीयकरण होकर बतूता बनना आश्चर्य की बात नहीं, लेकिन बतूती बन जाना अवश्य आश्चर्यजनक है। यह अर्थहीन है और हास्यस्पद भी। फिर भी उपन्यास तक लिख दिया गया…स्वागत है।
खासमखास
मनोरम कल्पना और हृदयग्राही उपमाओं से सज्जित “प्रकृति के प्रेम पत्र”
संसार में प्रेम ही ऐसा परम तत्व है, जो जीवन का तारणहार है। यही मुक्ति और बाधाओं की गांठें खोलता है और नवजीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह अलभ्य एवं अप्राप्य भी नहीं, जगत Read more…