सद्भाव समय की बड़ी आवश्यकता है | कुछ लोगों का यह कथन नितांत उचित एवं सहमतियोग्य  है कि ” सभी को सभी धर्मों के ग्रन्थ पढ़ने चाहिए जिससे  सांप्रदायिक सद्भाव और बढ़े  “.इससे आगे की थोड़ी बात मैं अपने निकट मित्र एवं वरिष्ठ लेखक – कवि डा . ज्ञानचन्द्र जी   के शब्दों में पेश करना चाहता हूँ | “आओ एक बेहतर विश्व बनाएं ” शीर्षक कविता में वे कहते हैं –

मेरे कुछ मित्र कुछ भी नहीं पढ़ते

काम – धंधा , आराम और आनंद यही

उनके जीवन की महत्तम प्रेरणा है ,

पर फिर इसमें झंझट – झगड़ा कहाँ है

आग्रह और श्रेष्ठता का भाव तो

एक अहंकार और स्व – महत्वपूर्ण

विकृत मनोवैज्ञानिक वृत्ति है .

यह तो किसी भी धर्म या धर्मग्रंथ से स्वीकृत

अनुमोदित नहीं है .

परस्पर संवाद करो  , वार्तालाप करो

पर अपनी  बात मनवाने के लिए

शक्ति , बल , धूर्तता , लालच व चालाकी का प्रयोग

तो कोई अच्छा न मानेगा .

आओ परस्पर वार्तालाप करें

एक नया भारत और एक नया विश्व बनाएं

आओ एक बेहतर विश्व बनाएं !

– Dr RP Srivastava

 

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