”मेले में लड़की’ के विमोचन की खबर मेरे खबर मात्र नहीं थी ….. सदियों की वेदना , घुटन , उपेक्षा , तिरस्कार और दर्द को शब्दों के द्वारा जानने – समझने की जिज्ञासा और कोशिश कि एक कड़ी थी, वह भी इन्हें यथार्थ  रूप में प्रस्तुत करनेवाली शख्सियत के कहानी संग्रह ” मेले में लड़की ” की ज़ुबानी | ” आज यह खबर मेरे लिए खबर नहीं , एक आह , आंसुओं में बहाना दर्द है . अपना और अपनों का दर्द जो मुझे अंदर तक छलनी कर गया और मेरे लिए यह कोई खबर नही , एक खौफनाक सत्य है.” चर्चित कथाकार पूनम तुषामड़ जी की ‘ खबर ‘ शीर्षक कहानी की यह अंतर्वेदना सचमुच दिल को बेंधती ही नहीं , बहुत गहरा अहसास भी करा डालती है !

इस वेदना , उत्पीड़न और संत्रास को सभी लोग महसूस कर सकें , इस मक़सद से राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन,दिल्ली के तत्वावधान में इस 130 पृष्ठीय  कहानी संग्रह का लोकार्पण – कार्यक्रम नई दिल्ली स्थित  गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित किया गया | मेरे लिए इस खबर का कैनवास बढ़ता ही जा रहा था | इस क्रम में राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष महोदय श्री अरविन्द कुमार सिंह से मुलाक़ात हुई | मैं आपके आमंत्रितों में था | और फिर बहुत – से लेखक , पत्रकार एवं प्रबुद्धजनों से परिचयात्मक सौमनस्यतापूर्ण वार्ता हुई | पूनम जी ने यह खबर दी कि ” एक स्त्री ने एक बच्ची के साथ रेलगाड़ी से कटकर जान दे दी … परन्तु यह अंत तक मालूम न हो सका कि इनमें से शबाना – नसीम कौन थीं , लेकिन मैं शबाना – नसीम के अलावा अन्यों के बारे में नहीं जानती थी , वरना उस समय कई कहानियाँ एक जैसी लिखी जातीं |’ ‘इसी कहानी [ ” शबाना का शव ” ] में वे बहुत क्षुब्ध – भाव से यह वास्तविकता बयान करती हैं कि ” न जाने दया अम्मा जैसी औरतों के भीतर कौन – सी ग्रंथि काम करती है , जिसके चलते एक औरत होकर भी वे औरत की दुश्मन हो जाती हैं | ” अंतहीन उत्पीड़नों के बाद शव में तब्दील होना अर्थात दुखांत ही इस कथा का तानाबाना  है |

अब वह समय भी आ गया , जब लोकमंगल की विपुल भावना समेटे लोकार्पण – कार्यक्रम की शुरुआत हुई . एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अरविन्द कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि वंचित और उपेक्षित वर्ग की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है . चर्चित कथाकार पूनम तुषामड़ जी ने महिला – पात्रों के ज़रिये इस दारुण दशा को बख़ूबी उभारा है | इसके लिए मैं उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ | वास्तव में  ‘ मेले में लड़की ‘ की स्तरीयता को देखते हुए एसोसिएशन ने अपने तत्वावधान में इसका लोकार्पण कराने का फ़ैसला किया | उन्होंने कहा कि साहित्य जगत में इस प्रकार की उपलब्धियों और कोशिशों का एसोसिएशन सदैव स्वागत , समादर , समर्थन और सहयोग करता रहेगा |

स्वतंत्र पत्रकार , स्तंभकार अवधेश कुमार जी ने ‘ मेले में लड़की ‘ के विविध पक्षों को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी कथा – साहित्य में चल रहा दलित – चेतना का दौर यक़ीनन स्वागतयोग्य है | इस कथा – संग्रह में शामिल सभी दसों  कहानियाँ इतनी स्तरीय और  वास्तविकताबोधक  हैं  कि ‘ दस नम्बरी ‘ फ़िल्म के इस गीत की याद दिला देती हैं – कहत कबीर सुनो भाई साधो , बात कहूँ मैं खरी कि दुनिया एक नम्बरी तो मैं दस नम्बरी | अखिल भारतीय अनुसूचित जाति, जनजाति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ . उदित राज [ भाजपा सांसद ] ने पूनम जी को इस कृति के लिए धन्यवाद और बधाई देते हुए कहा कि इस संग्रह ने साहित्य – जगत की एक बड़ी ज़रूरत पूरी की है | उन्होंने कहा कि मैंने ‘ मेले में लड़की ‘ की सभी दसों कहानियाँ पढ़ी हैं | सभी एक से बढ़कर एक हैं . कहानियों में जो दुःख – दर्द बयान हुआ है , वह नारी – जीवन की कटु सच्चाई है |

उन्होंने सुझाव दिया कि कहानियों में समस्या का समाधान भी कुछ पंक्तियों में किसी पात्र या किसी टिप्पणी के माध्यम से होता , तो बहुत बेहतर होता . उन्होंने दलितों और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध चल रहे साज़िशी अभियान से भी आगाह किया | गंभीर अध्येता ,  कहानीकार  अनीता भारती  जी ने सामाजिक  असामनता , अन्याय  और विसंगतियों के दंश झेलती दलित – महिलाओं की व्यथा को चित्रित किया | उन्होंने कहा कि पूनम जी ने सारी महिलाओं के दुःख – दर्द  को समान व अखंड मानकर जो लेखन किया है , वह निश्चय ही सराहनीय – प्रंशसनीय है , लेकिन यह भी सच है कि दलित महिला की व्यथा का कोई सानी नहीं है , इसिलए समाज की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़ी दलित-आदिवासी स्त्री ने समाज की वर्जनाओं, निषेधाज्ञाओं को लांघते हुए सुविधाभोगी व्यवस्था के आधार स्तम्भ पितृसत्ता, धर्म और जातीयता को हमेशा ही कड़ी टक्कर दी है |

उल्लेखनीय है कि अनीता भारती जी का  कहानी संग्रह ‘ एक थी कोटेवाली और अन्य कहानियाँ ‘ बहुत मशहूर और मारूफ़ हुआ | इसमें दलित और महिला – विमर्श से संबद्ध पन्द्रह कहानियाँ हैं , जिनमें सभ्य समाज की नैतिकताओं की आड़ में दलितों एवं महिलाओं के साथ हो रहे अमानवीय – क्रूर व्यवहारों को चित्रित किया गया है | प्रख्यात साहित्यकार हेमलता महेश्वर जी ने लोकार्पण कार्यक्रम में  महिलाओं से जुड़ी कुछ सामाजिक बेड़ियों और वेदनाओं का उल्लेख करते हुए ‘ मेले में लड़की ‘ की लगभग सभी कहानियों पर समीक्षात्मक  टिप्पणियाँ कीं  और कुछ उपयोगी सुझाव भी दिए | उन्होंने प्रतीकों के चयन में सावधानी की भी बात कही | .’मेले में लड़की ‘ के रूप -रंग से परिचित कराया चर्चित कवयित्री – कथाकार पूनम तुषामड़ जी ने | उन्होंने कई कहानियों के लेखन की पृष्ठभूमि से भी लोक – मानस को अवगत कराया . अन्य वक्ताओं ने भी ‘ मेले में लड़की ‘ के नख – शिख का अवलोकन किया |

राइटर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से मुझे धन्यवाद ज्ञापन का सुअवसर मिला | मैंने कहानियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सभी वक्ताओं के प्रति आभार – धन्यवाद व्यक्त किया | सम्यक प्रकाशन के शांति स्वरुप जी का भी विशेषकर शुक्रिया अदा किया , जिनके सक्रिय सहयोग से यह पुस्तक मंज़रे आम पर आई | ‘मेले में लड़की ‘ की कहानियों को पढ़ने के बाद मुझे साफ़ तौर पर महसूस हुआ कि महिलाओं के परावलम्बी और पराश्रित जीवन के साथ  इसकी हर कहानी शुरू होती है और जहाँ तक गरीबी का ताल्लुक है , इसे महिलाओं को पुरुष की अपेक्षा अधिक भोगनी पड़ती  है | ऐसा  सफल चित्रण हर किसी कथाकार के बस की बात नहीं , लेकिन पूनम जी इसे बख़ूबी निभाया है | यह बात अलग है कि यथार्थबोध के लिए वे कहीं – कहीं विक्षोभ , आक्रोश और आगे बढ़कर विस्फोटक शब्दावली का प्रयोग करती हैं, कहीं नश्तर , तो कभी आलपिन चुभोने की कोशिश करती हैं और बहुत – बहुत बार मिठास – पगी शैली में हौले – हौले हमें महिलाओं की दारुण – दशा पर सोचने – समझने की सकारात्मक  दिशा देती हैं | सभी कहानियों में ग़रीबी और मजबूरी की अवस्था में आत्मसम्मान के प्रति जो प्रतिबद्धता है , वह इन कहानियों की बड़ी उपलब्धि है | निश्चय ही ये कहानियाँ गंभीर सामाजिक समस्याओं को मंथन – चिन्तन के लिए आगे बढ़ती हैं |

–  Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad

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