अहमदुल्लाह
” मौलवी ” नाम से मशहूर थे
अयोध्या के ” राम ” थे
अयोध्या में पैदा हुए
किन्तु ” घनश्याम ” थे
सावरकर के ” फ़रिश्ता ” थे आज़ादी के
” रावण ” और ” कंस ” के काल थे
कंपनी सरकार और रॉयल ब्रिटिश इंडिया के
संहारक थे
 ” अर्ध नारीश्वर ” थे
दोनों रूप दिखाते थे
स्याही और ख़ून
दोनों से जीवन के रंग भरते थे !
उस दिन जब  अँग्रेज़ों को ललकारा –
नहीं चलेगी अब मनमानी
देश हमारा है
हमारा ही रहेगा –
ऐ फ़िरंगी !
जाओ तुम अपने देश
अब यहां बंद होगा
तुम्हारा प्रवेश।
…..
कंपनी सरकार गुर्राई –
तुम अब हो फ़क़ीर
नहीं रहे ताल्लुक़दार
गुप्तचर संस्था चला रहे
मौत का सामान कर रहे
निकलवाया इश्तिहार
” कलकटा गज़ट ” में
12 अप्रैल 1858 के अंक में
गवर्नर जनरल के नाम से
घोषणापत्र 580 में –
पकड़ो, इस फ़क़ीर को
ज़िंदा या मुर्दा
लो, पचास हज़ार की बड़ी रक़म !
बाबू कुंवर सिंह पर इसकी आधी थी रक़म
सब नीचे थे फ़क़ीर के ,-
यह मुनादी भी हुई –
मौलवी को जो पकड़वाएगा
ग़दर का मुजरिम होगा
तो भी छूट जाएगा
माफ़ी मिल जाएगी उसको
उसके परिवार को।
…..
मौलवी की स्याही रिसती जाती थी
तहरीरों में चलती जाती थी
आज़ादी का शंख फूंकती जाती थी
तांडव के लिए बुलाती थी
स्याही शहादत का ख़ून बन जाती थी
लेकिन स्याही ही आगे रहती थी
अवध व रुहेलखंड को
बग़ावत के लिए उकसाती थी
वे कोई सहाफ़ी  न थे
मगर, लिखकर घर – घर पत्रक बांटते थे
सहाफ़ी से बढ़कर थे
क्रांति – ज्वाला के विस्तारक थे
मुक़ाबले में सर कोलन कैंबिल
भी उनसे पनाह मांगता था
त्राहि – त्राहि करता था
फ़क़ीर के दो बार के चकमे से परेशान था
बोल पड़ा चिघाड़ कर –
बहुत ही भयानक दुश्मन से पाला पड़ा है
इतना सताया, फिर भी अड़ा है
ख़ान बहादुर ख़ान की तो हुई हार
मगर मौलवी देता फटकार
जे ब्रूस मॉलसन, थामस सीटन, एस टी होम्स, क्रिस्टोफर ने लिखी तहरीर
बहुत जांबाज़ है यह फक़ीर
रखता है साठ हज़ार से अधिक शरीर
सभी हैं नवजवां
सिवाय रिटायर्ड फ़ौजियों के
जो भक्त थे कंपनी सरकार के
आरपार की लड़ाई में
सभी थे मैदान में
बेगम हज़रत महल भी
कर रही थीं फ़क़ीर की मदद
मदद के लिए ही
लिखा था
पुवाइनगांव के राजा जगन्नाथ को ख़त
राजा था बड़ा ग़द्दार
अंग्रेजों का चाटुकार
उसने लगाई शर्त
दिया जवाब झटपट
फ़क़ीर पहले मुझसे मिलें
तभी होगी मदद भरसक
5 जून 1858 को
पुवाइन गए फ़क़ीर पहुंच
उन्हें नहीं पता था अंतिम है
उनकी पहुंच
जगन्नाथ था लोभी
अत्यंत धोखेबाज़, विश्वासघाती
क़िले के पास पहुंचते ही गोली मार दी
फ़क़ीर को
बस ” मेरा वतन ” कहा
” मेरा प्यारा वतन “
क़ुर्बान हो गए
” अधनंगे फ़कीर ” हो गए
किन्तु बचाए रखा –
अपने वतन की लाज को
अपने ज़मीर को
अपने फ़क़ीर को।
…..
जगन्नाथ का भाई था
बड़ा क़साई
फ़कीर का सिर काटा
दौड़ा कुत्ते की चाल
लिया इनाम पचास हज़ार
किया विद्रोह का बंटाधार
मौज करते रहे
ग़द्दार, रजवाड़े और ज़मींदार
मगर….
लड़ता रहा मरने के बाद भी
भारत माता का यह सपूत
अपनी माता के दुश्मनों से लड़ता रहा
अपनी स्याही, अपने ख़ून से लिखता रहा
वीरों की गाथाएं रचता रहा
जो कभी नहीं बताई गई !
दूसरा सपूत
अपनी माता के सीने में
ख़ंजर मारता रहा
कौन है
निर्दयी, अन्यायी, विश्वासघाती
धोखेबाज़, दुष्ट और पापी ?
–  राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘
21 नवंबर 2022

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