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ग़रीब देश का लोकतंत्र

गणतन्त्र दिवस के सुअवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं – आज फिर स्व . रामचन्द्र राव होशिंग की दो कविताएं याद आ रही है , जिनमें से एक का शीर्षक है – ” गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या ” गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या विशाल परेड – पूर्वाभ्यास – Read more…

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जब जीवंत हुईं उत्तराखंड की लोककलाएँ 

निश्चय ही ‘ प्रकृति के सुकुमार कवि ‘ सुमित्रानंदन पन्त जी आज अगर जीवित होते , तो कल्पनातीत रूप से प्रसन्न होते , फिर भी उनकी अजर – अमर आत्मा को अवश्य ही परम शांति प्राप्त हो रही होगी ….. कौसानी [ अल्मोड़ा – कुमाऊं ] में 1900 ई. में Read more…

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नवजातों को कौन बचाएगा ?

कन्या भ्रूण – हत्या की बढ रही घटनाएँ चिंता का विषय बनी हुई हैं | आज 29 दिसंबर 2018 को यह ख़बर आई कि नई दिल्ली के लोनी बार्डर थानान्तर्गत इंद्रापुरी कॉलोनी में सुबह लगभग साढ़े नौ बजे अधिशासी अभियंता कार्यालय के पास एक नवजात कन्या का शव पुलिस ने बरामद किया Read more…

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इनसे मिलिए ये हैं …….

पाँवों से सिर तक जैसे एक जनून बेतरतीबी से बढ़े हुए नाख़ून कुछ टेढ़े-मेढ़े बैंगे दाग़िल पाँव जैसे कोई एटम से उजड़ा गाँव टखने ज्यों मिले हुए रक्खे हों बाँस पिण्डलियाँ कि जैसे हिलती-डुलती काँस कुछ ऐसे लगते हैं घुटनों के जोड़ जैसे ऊबड़-खाबड़ राहों के मोड़ गट्टों-सी जंघाएँ निष्प्राण Read more…

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अखिलेश मिश्र जैसे सच्चे पत्रकार अब कहाँ ?

स्वनामधन्य मूर्धन्य पत्रकार एवं सम्पादकाचार्य  आदरणीय अखिलेश मिश्र जी के बारे में अब मैं कोई चर्चा तक नहीं सुनता | क्या हो गया है लोगों को ? जिस विभूति ने अपना सारा जीवन पत्रकारिता के हवाले कर दिया हो , वह भी जनपक्षधर पत्रकारिता के हवाले , उसे याद तक न Read more…

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विष्णु प्रभाकर : कुछ यादें, कुछ बातें 

  विष्णु प्रभाकर जी ‘आख़िर क्यों ?’ क्या आपको अपने प्रश्नों का उत्तर मिल गया ? परमात्मा ने आपको जो दीर्घायु [ जन्म 21 जून 1912 ई.  –  मृत्यु 11 अप्रैल 2009 – 97 वर्ष ] प्रदान की और आपने जिस तरह लगन, निपुणता और प्रांजलता के साथ अपने अनुभवों को Read more…

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अब मुझे क़ुरबां अपनी ही फ़िक्र है

अब मुझे क़ुरबां अपनी ही फ़िक्र है , मैं भला किसी को कैसे बुरा कहूँ | मगर नहीं वजूद मेरा झुका हुआ , मैं भला उसको कैसे बेसुरा कहूँ | अब नहीं मुझे किसी का ख़ौफ़ रहा , क्या कहूँ , किसको यूँ आमिरा कहूँ | तेरी पारसाई क्यों न चली Read more…

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त्रिविष्टप और अर्धनारीश्वर 

कभी नहीं चाहा था वह बदनुमा त्रिविष्टप शील – शुचिता, मर्यादा रहित उच्छृंखल, उद्दंड विलासी समाज त्रिविष्टप सरीखा जो स्वर्ग होकर भी नरक बना ! आर्यावर्त की पांचाली संस्कृति का मूक गवाह बना ! शायद इसीलिए त्रिपुरारी शिव ने न त्रिविष्टप रीति को पसंद किया न ही आर्यावर्त कुनीति को Read more…

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बाल साहित्य / ग़ज़ल शैली में पहेलियाँ 

– [ स्व.] बम बहादुर सिंह ‘ सरस ‘ [ बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ] [ 1 ] छिलके में दोष भारी, छिलका बहुत फिसलता , फल है सभी को प्यारा, दर्जन के भाव बिकता | [ 2 ] खंभे की भांति मोटे हैं, चार पाँव उसके , धनवान पालते हैं , Read more…

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लघु कथा/  साकार उक्ति

ज्वारभाटा आया और तेज़ी के साथ चला भी गया | मूँगे, घोंघे, मछली, सीप और कछुए आदि की जातियों – प्रजातियों को रेतीला आवास देकर वापस हो गया ! अब बहुत – से भुक्खड़ पक्षी, जिनमें कौए अधिक थे, टूट पड़े और ‘ जीवः जीवस्य भोजनम ‘ की उक्ति साकार Read more…

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व्यथा / कमला दास

‘लव जिहाद’ के आरोपों का लंबे समय तक शिकार रही साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त एवं नोबेल पुरस्कार [ 1984 ] हेतु नामांकित अंग्रेज़ी एवं मलयालम की प्रख्यात लेखिका माधवी कुट्टी अका कमला दास उर्फ़ कमला सुरैया [ जन्म 31 मार्च  1934 -मृत्यु 31 मई 2009 ] के अंग्रेज़ी साहित्य [ ” समर इन कलकत्ता “[ Read more…

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प्रार्थना /  रबीन्द्रनाथ टैगोर  

इधर दानव पक्षियों के झुंड उड़ते आ रहे हैं क्षुब्ध अम्बर में , विकट वैतरणिका के अपार तट से यंत्र पक्षों के विकट हुँकार से करते  अपावन गगन तल को , मनुज – शोणित – मांस के ये क्षुधित दुर्दम गिद्ध . कि महाकाल के सिंहासन स्थित हे विचारक  शक्ति Read more…

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है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़  

लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द , सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द | ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर, रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द | इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त, मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द | है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़, अहले-नज़र समझते Read more…

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मौलिकता को हरगिज़ न छोड़िए 

मानव का मौलिक स्वभाव मानव – जीवन की बड़ी सच्चाई है , जिसकी प्रेरणा हमें धर्मग्रंथों में मिलती है | मूल स्वभाव और प्रकृति पर जीने से मनुष्य बुराइयों एवं विकारों से बहुत ही सुरक्षित रहता है | वह अपने को उत्कर्षगामी बनाये रखता है | वह सामने के हर Read more…

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बाज़ीचा-ए- अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे  

समीक्षा त्रिपाठी जी की एक पोस्ट से प्रेरित होकर मशहूर शायर ग़ालिब की इस सुप्रसिद्ध रचना के भावों को निरूपित करने का प्रयास ——- बाज़ीचा-ए- अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे | इक खेल है औरंग-ए-सुलैमां मिरे नज़दीक इक बात है एजाज़-ए- मसीहा मिरे आगे | जुज़ Read more…