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शीत लहर में मृत्यु 

आज बह आए हैं आँसू तुम्हारी आँखों से हिमानी की एक – एक बूंद रिस रही है घिस रही है उम्र सरक रही है पास आने को जताने कि भ्रम अवरुद्ध हो रहा है ! थोड़ी और आँसुओं की बरसात करो इतनी कि आँचल भीग जाए डर जाए सौभाग्य से शीत Read more…

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यह वाणी सदा स्पंदित रहे 

शक्ति दो ऐसी कि यह वाणी सदा स्पंदित रहे इधर दानव पक्षियों के झुंड उड़ते आ रहे हैं क्षुब्ध अम्बर में , विकट वैतरणिका के अपार तट से यंत्र पक्षों के विकट हुँकार से करते अपावन गगन तल को , मनुज – शोणित – मांस के ये क्षुधित दुर्दम गिद्ध Read more…

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दिव्य सुवास 

ओ शांतनु ! सुवास के प्रेमी परिहास के प्रेमी क्या तूने पाया अनैसर्गिक गंध ? सत्यवती को पाकर सत्या को लाकर क्या तूने पाया दिव्यता का सुवास ? ओ शांतनु ! शांति – लाभ कर चर्चित हस्त – स्पर्श के हर्षित क्या तूने किया शांति का विलोम ? अपने का Read more…

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स्वागतम …… नवकाल

बहुत – सी यादों , घटनाओं घपले – घोटालों दमन – व्यथाओं  क्रूरताओं – पीड़ाओं सुखद – दुखद क्षणों आशाओं – आकांक्षाओं को छोड़कर अपने जीवन की अंतिम घड़ी में है मेरा वर्तमान वर्ष अहा ,… अंतिम साँस के साथ तू भी चला जाएगा स्मृतियों  के साथ यह याद दिलाकर Read more…

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बलरामपुर की सुनहरी सरज़मीं की ख़ुशबू है चाचा बेकल की साहित्य – सर्जना 

सुनहरी सरज़मीं मेरी, रुपहला आसमाँ मेरा मगर अब तक नहीं समझा, ठिकाना है कहाँ मेरा , किसी बस्ती को जब जलते हुए देखा तो ये सोचा मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ और फैला है धुआँ मेरा | ये भावपूर्ण शब्द हैं पद्मश्री बेकल उत्साही के , जिनके कलाम का Read more…

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“कल्पान्त ” का बौद्धिकरस

डॉ .राम प्रसाद मिश्र की रचनाओं में गजब की बौद्धिकता पाई जाती है | “कल्पान्त ” तो बौद्धिक रस से सराबोर है ,जैसा कि उनका “मुहम्मद ” खंड काव्य है | वैसे उनके ये दोनों ग्रन्थ वास्तविक और यथार्थवादी शैली के जीवंत उदाहरण हैं | “कल्पान्त” भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखता Read more…

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सुआंव के पुल पर : पी. पयाम

घटा सावन की भीगी रात बारह बजनेवाला था अँधेरा भी भरी बरसात पाकर आज सोया था समन्दर अपनी बाँहों में समेटे सुआंव ठहरा था मैं पुल पर या किसी जलयान पर मह्वे तमाशा था — जवां सरबार मौजें खेलती थीं खिलखिलाती थीं ख़ामोशी में रह – रहके झांझें बज – Read more…

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उठेगा वतन कितना वादों से ख़ुदा जाने

आज़ादी – ए भारत के मशहूर हैं अफ़साने, उठेगा वतन कितना वादों से ख़ुदा जाने | हो कांग्रेसी कोई या पार्टी जनता की, ले डूबेंगे हम सबको कुर्सी के ये दीवाने | गड़बड़ किया है देश के हर कारोबार ने, रौंदा है ख़ूब गर्दिशे लैलोनहार ने | उकड़ू बकइयां खेल Read more…

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शाहिद रामनगरी : सच्चे पत्रकार, सच्चे दोस्त 

आज मेरे जिगरी दोस्त, मशहूर सहाफ़ी [ पत्रकार ] मरहूम शाहिद रामनगरी [ पूर्व चेयरमैन, मदरसा एजूकेशन बोर्ड, बिहार ] की पुण्यतिथि है | आज ही के दिन यानी 30 अक्तूबर 1991 को पटना में उनका निधन हुआ था | उस वक़्त मैं दिल्ली में था | चाहकर भी नहीं जा सका Read more…

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” मेले में लड़की ” – महिलाओं की बदहाली का सजीव चित्रण

”मेले में लड़की’ के विमोचन की खबर मेरे खबर मात्र नहीं थी ….. सदियों की वेदना , घुटन , उपेक्षा , तिरस्कार और दर्द को शब्दों के द्वारा जानने – समझने की जिज्ञासा और कोशिश कि एक कड़ी थी, वह भी इन्हें यथार्थ  रूप में प्रस्तुत करनेवाली शख्सियत के कहानी Read more…

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नामचीन शायर सुरेंद्र ‘विमल’

बलरामपुर के मशहूर ग़ज़लगो सुरेंद्र ‘विमल’ जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे हमारे दिलों में आज भी ज़िन्दा हैं , ख़ासकर अपनी पुरकशिश, मानीख़ेज़ शेअरों की बदौलत   ….. लीजिए ‘विमल’ जी की एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए – [ विमल जी का रेखाचित्र अनुज भैया कुमार पीयूष जी की फेसबुक वाल से ]   Read more…

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मगर झोपड़ी खड़ी नहीं

रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं | काश, किस क़दर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ क्यों निर्झर पंखुरियों  में गंदगी तो सनी नहीं | पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू कहीं सायाफ़िगन न हुआ , कहीं रोशनी Read more…

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बेगम हज़रत महल 

वाजिद अली की जान वतन की थी आबरू, हज़रत महल थी शाने अवध शाने लखनऊ | दुश्मन को याद आ गया अपनी छटी का दूध, हिम्मत को इनकी देखके हैरां थे सब उदू |   अहले नज़र ही देखेंगे हज़रत महल का काम, तारीख़ की जबीं पे नुमायाँ है जिनका नाम | Read more…

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”सोचा भी न था कि आग मेरे घर को पकड़ेगी ”

नज़ीर बनारसी साहब [ 25 नवंबर 1909-23 मार्च 1996 ] किसी परिचय के मुहताज नहीं | उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रखर शायर के तौर पर जाना – पहचाना जाता था | वाराणसी में लगभग 34 वर्ष पूर्व उनसे मेरी भेंट हुई थी , जब मैं पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण Read more…

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न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ़ है

न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ है , जो गुल हूँ तो गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में। – बेधड़क बनारसी मेरे गुरुवर श्री बेधड़क बनारसी जी [ श्री काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर जी ] वह हस्ती रहे हैं,जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में Read more…