साहित्य

मगर झोपड़ी खड़ी नहीं

रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं | काश, किस क़दर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ क्यों निर्झर पंखुरियों  में गंदगी तो सनी नहीं | पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू कहीं सायाफ़िगन न हुआ , कहीं रोशनी Read more…

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बेगम हज़रत महल 

वाजिद अली की जान वतन की थी आबरू, हज़रत महल थी शाने अवध शाने लखनऊ | दुश्मन को याद आ गया अपनी छटी का दूध, हिम्मत को इनकी देखके हैरां थे सब उदू |   अहले नज़र ही देखेंगे हज़रत महल का काम, तारीख़ की जबीं पे नुमायाँ है जिनका नाम | Read more…

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”सोचा भी न था कि आग मेरे घर को पकड़ेगी ”

नज़ीर बनारसी साहब [ 25 नवंबर 1909-23 मार्च 1996 ] किसी परिचय के मुहताज नहीं | उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रखर शायर के तौर पर जाना – पहचाना जाता था | वाराणसी में लगभग 34 वर्ष पूर्व उनसे मेरी भेंट हुई थी , जब मैं पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण Read more…

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न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ़ है

न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ है , जो गुल हूँ तो गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में। – बेधड़क बनारसी मेरे गुरुवर श्री बेधड़क बनारसी जी [ श्री काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर जी ] वह हस्ती रहे हैं,जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में Read more…

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कमाल दास का कमाल

महान संत कबीरदास जी के सुपुत्र कमाल जी की रचनाएं बड़ी मुश्किल से मिलती हैं . हाजीपुर [ बिहार ] के मेरे मित्र ऋषि कुमार जी के आग्रह पर मैंने उनकी कुछ रचनाएं प्राप्त की हैं | मैं हार्दिक रूप से आभारी हूँ परम मित्र डॉ. ज्ञान चन्द्र जी का Read more…

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स्पीड बढ़ा दी है सरकार के इंजन ने 

क्या कुछ न कहा रोकर नादारों के शेवन ने , कुछ भी न सुना लेकिन सरकार की ऐंठन ने |  बांधा है ‘ चियाँ ‘ सेहरा जब से किसी रहज़न ने , क्या रूप सँवारा है शासन तेरी दुल्हन ने |  क़ानून हुआ उनका ऐसी मिली आज़ादी , नफ़रत का दिया Read more…

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मेरे ‘बड़के दादा’ – ‘ शंकर लाला ‘- बलरामपुर की महान हस्ती 

आज दादा की याद बड़ी शिद्द्त के साथ आ रही है…. कारण पता नहीं, पता है तो सिर्फ़ उनका स्नेह – प्यार – भ्रातृत्व जो मेरे लिए बेमिसाल है। मेरे सबसे बड़े भाई जो ठहरे ……. ऐसे भाई जो हर हाल में अपने थे…………………………..अपनत्व का भाव इतना बढ़ा हुआ कि Read more…

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” कितना मुश्किल है कवि होना ?”

‘धन्य जीवन है वही जो ,दीप बनकर जल रहा , शुष्क भू की प्यास हरने , स्रोत बनकर चल रहा। जग में जीवन श्रेष्ठ वही , जो फूलों – सा मुस्काता है , अपने गुण – सौरभ से , कण – कण को महकाता है। मैं बहुआयामी प्रतिभा के धनी Read more…

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” पहली दूब ” – यथार्थपूर्ण जीवन – स्पंदन

कविता जीवन का स्पंदन है . इसकी ठीक – ठीक अनुभूति – अभिव्यक्ति कविता को जीवंत बनाती है , जो कवि ऐसा नहीं कर पाते , वे कविता की सार्थकता को नहीं सिद्ध कर सकते . यह भी एक बात है कि जो लोग काव्य को जीवन से बाक़ायदा नही Read more…

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ज़िन्दगी काहे को है , ख़ाब है दीवाने का 

मनुष्य जब सृष्टि के आयामों – उपादानों एवं उसके सौन्दर्य को देखता है तो उसके मन में कभी यह विचार आता ही है कि यह सब क्या और क्यों है ? मिर्ज़ा ग़ालिब सहज ही कह उठते हैं – ये परी चेहरा लोग कैसे हैं ? गमज़ा व इशवा व Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

ख़ाक-ए वतन का मुझको हर ज़र्रा देवता है

सच कह दूं ऐ बिरहमन गर तू बुरा ना माने तेरे सनमक़दों के बुत हो गए पुराने अपनों से बैर रखना तूने बुतों से सीखा जंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने तंग आके मैंने आखिर दैर-ओ-हरम को छोड़ा वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने पत्‍थर की मूरतों में Read more…

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पंडित बिस्मिल पर कीचड़ मत उछालिए 

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना, बाजु -ए-कातिल में है? वक्त आने दे , बता देंगे तुझे ए आस्माँ ! हम अभी से क्या बतायें, क्या हमारे दिल में है ? पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की महान रचना है | एक लंबी रचना है Read more…

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मगर जीवन नहीं छिना करता है 

सब कुछ छिन जाता है , मगर जीवन नहीं छिना करता है कण – कण प्रस्तर चूर्ण बनकर दर्पण नहीं मरा करता है दिव्य सुधावर्षण नभ – व्योम से , पल में क्षण छिन जाता है चतुर्दिक आभा हो किंचित, मगर अवसर नहीं मरा करता है , सब कुछ छिन Read more…

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सत्कर्म तुम करते रहो

  सत्कर्म तुम करते रहो जो कभी मिटता नहीं ,पाषाण पर रोपा गया पौधा कभी फलता नहीं . उठो , हिम्मत – हौसले से निज कर्तव्य में लग जाओ कुंठा ,निराशा , हताशा को पास कभी मत लाओ जो है सच्चा इन्सान कभी पुरुषार्थ से डिगता नहीं , पाषाण पर Read more…

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दीपक की सामूहिक खोज

[ 1 ] कोई ऐसा चराग़ लाओ मेरे दोस्तो , जो हर शै को अँधेरे से निकाल लाए | – राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक’ [ 2 ] आओ सब मिलकर एक – एक दीप जलाएं , अब मुश्किल नहीं है अँधेरे को मिटाना | -राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक’