साहित्य

विष्णु प्रभाकर – साहित्य के शिखर पुरुष ही नहीं , सच्चे इंसान दोस्त भी

वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी की पुण्यतिथि [ 11 अप्रैल ] हर वर्ष मुझे संतप्त और ग़मगीन कर जाती है | प्रेम चंद , जैनेन्द्र , अज्ञेय और यशपाल जैसे दिग्गज रचनाकारों के सहयात्री रहे विष्णु प्रभाकर जी की अपनी अलग पहचान थी | मुझे फ़ख्र है , Read more…

साहित्य

तुम सच बोलो

बादल गरजें या फिर बरसें आशाएं न छोड़ो मौसम कैसा भी हो तुम सच बोलो | चहुँदिश आंगन में हवा चले कितनी सर्दीली घात करे प्रतिघात से चाल कितनी कंटीली संयम की बातें सुनकर हुई कितनी भड़कीली जल के अजस्र स्रोत बहें राह कितनी पथरीली तुम भी जागो , हम Read more…

साहित्य

महल आबाद है , झोपड़ी उजाड़ है [ Poem ]

सेठ है , शोषक है , नामी गलाकाटू है , गालियाँ भी सुनता है , भारी थूकचाटू है | चोर है , डाकू है , झूठा – मक्कार है , क़ातिल है , छलिया है , लुच्चा और लभार है | जैसे भी टिकट मिला , जहाँ भी टिकट मिला Read more…

साहित्य

परस्पर संवाद करो  , वार्तालाप करो 

सद्भाव समय की बड़ी आवश्यकता है | कुछ लोगों का यह कथन नितांत उचित एवं सहमतियोग्य  है कि ” सभी को सभी धर्मों के ग्रन्थ पढ़ने चाहिए जिससे  सांप्रदायिक सद्भाव और बढ़े  “.इससे आगे की थोड़ी बात मैं अपने निकट मित्र एवं वरिष्ठ लेखक – कवि डा . ज्ञानचन्द्र जी  Read more…

साहित्य

मेरे जीवन की जीवटता पंडित जी की देन 

ललित निबंध के पुरोधा पद्म भूषण पंडित विद्यानिवास मिश्रजी (14 जनवरी, 1926 – 14 फरवरी, 2005) बहुत मुदुभाषी , अत्यंत मिलनसार व्यक्तित्व का नाम है | पंडित जी से मेरी पहली भेंट वाराणसी में हुई, जब 1983 में आप काशी विद्यापीठ के कुलपति नियुक्त हुए I उस समय मैं विद्यापीठ Read more…

साहित्य

प्राणमय कर्मशक्ति 

वे चिरकाल रस्सी खींचते हैं , पतवार थामे रहते हैं , वे मैदानों में बीज बोते हैं , पका धान काटते हैं , वे काम करते हैं , नगर और प्रान्तर में . राजच्छ्त्र टूट जाता है , रण – डंका बंद हो जाता है . विजय – स्तम्भ मूढ़ Read more…

साहित्य

मैनडीह का स्मृति-गवाक्ष

[ 1 ] आज फिर उसी तिराहे पर खड़ा हूँ जहाँ से जीवन शरू हुआ जहाँ पला – बढ़ा  धूप की प्रचंडता देखी शीतल समीर के साथ छांव में लिपटी कुहासे की चादर ओढ़े सोयी रहती थी वह मेरा जीवन , मेरी लय , मेरी गति थी …. . … Read more…

साहित्य

आज कहाँ गई वह पत्रकारिता और कहाँ गये वे पत्रकार ?

खल गनन सों सज्जन दुखी मति होहिं हरिपद मति रहे | अपधर्म छूटै सत्य निज भारत गहै कर दुःख बहै | बुध तजहिं मत्सर नारिनर सम होंहि जब आनन्द लहैं | तजि ग्राम कविता सुकवि जन की अमृत बानी सब कहैं | – भारतेन्दु हरिश्चंद 1868 ई. में जब आपने Read more…

साहित्य

प्रार्थना

इधर दानव पक्षियों के झुंड उड़ते आ रहे हैं क्षुब्ध अम्बर में , विकट वैतरणिका के अपार तट से  यंत्र पक्षों के विकट हुँकार से करते  अपावन गगन तल को , मनुज – शोणित – मांस के ये क्षुधित दुर्दम गिद्ध . कि महाकाल के सिंहासन स्थित हे विचारक शक्ति Read more…

साहित्य

महान गजलकार दुष्यंत कुमार की एक महान रचना

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते वो सब के सब परीशाँ Read more…