सामाजिक सरोकार

हमें गण समाज चाहिए

आज गीत बिकते हैं उनका चीर – हरण होता है बेचे जाते हैं सरेराह लिखने से पहले बिक जाते हैं ! बिक जाते हैं गीतकार गीत लिखने से पहले पेशे का पेशा बदल गई दुनिया कहाँ से कहाँ आ गए हम ? तितलियाँ अब उड़ती नहीं बस, टाँकी जाती हैं Read more…

साहित्य

राम जन्मभूमि के मौलवी

अहमदुल्लाह ” मौलवी ” नाम से मशहूर थे अयोध्या के ” राम ” थे अयोध्या में पैदा हुए किन्तु ” घनश्याम ” थे सावरकर के ” फ़रिश्ता ” थे आज़ादी के ” रावण ” और ” कंस ” के काल थे कंपनी सरकार और रॉयल ब्रिटिश इंडिया के संहारक थे Read more…

खासमखास

राम – प्रेम

हमारा राम – प्रेम अगाध प्रेम भक्ति हमारी शक्ति हमारी आसक्ति हमारी आप आदर्श हैं मर्यादा पुरुषोत्तम हैं करते हैं संहार असत का मिथ्या का तभी तो हुआ रावण – वध आपके कर – कमलों से आप ही का हम अनुसरण किए जाते हैं – मेघनाथ कुंभकर्ण और रावण का Read more…

देश-देशांतर

ओ, ताना रिक्शा ! तू गया, सामंतवाद क्यों नहीं ले गया… अलविदा

लगभग 35 वर्ष पहले जब मैं कोलकाता गया था बीबीसी के एक चुनावी कवरेज ( सर्वे ) का हिस्सा बनने, तब तक यह महाशहर अपने असली वजूद में था। उस वक्त कहा जाता था कि जिसने हाथ रिक्शा नहीं देखा और उस पर सवारी नहीं की, उसने कोलकाता का असली Read more…

देश-देशांतर

गीत जो मर्सिया बन जाता है !

चीन में जब से गिद्ध आए कबूतर नहीं उड़े ! मगर क्यों ? सबकी आंखें बंद हैं सबकी हरकतें बंद हैं उन्हें नहीं सुनाई पड़ती सिसकती आवाज़ें नहीं महसूस होती क्रूर पीड़ा निचुड़ती उम्मीदें बिछड़ती सांसें ! कोई जीवंतता नहीं मगर चंगेज़ ज़िंदा है भेड़ियों के भेष में दाल – Read more…

साहित्य

वंदे मातरम् अंगूठी और छल्ले !

…………………………………. देश को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने के लिए जब जनमानस उद्यत हो उठा था, ” वन्दे मातरम् ” की गूंज हर तरफ़ सुनाई देती थी, तभी ऑस्ट्रिया की एक कंपनी ने ” वंदे मातरम् ” अंगूठी और छल्ले की भारत में बिक्री हेतु सप्लाई शुरू कर दी थी। इसको Read more…

साहित्य

दो कविताएं

( 1 ) तारीख़ ……… हर दिन की नई सुबह नई तारीख़ लाती थी नई आशाओं के साथ सुबह होते ही अपना चेहरा दिखाती थी कभी कैलेंडर तो कभी अख़बार में टी वी और रेडियो में सुबह से देर रात तक वही तारीख़ … परत दर परत ….. एक दिन Read more…

खासमखास

वो तो मेरा नहीं !

वे चकित होकर बोलीं – ” वो तो मेरा नहीं मैंने तो जमा किए थे सिर्फ़ पांच सौ रुपए और आप कहते हैं छह सौ दस लो।” बैंक का क्लर्क हुआ परेशान शायद उसने नहीं देखा था ऐसा इन्सान कहने लगा – ” मां जी, ये एक सौ दस रुपए Read more…

देश-देशांतर

हाशिमपुरा – जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी …

दंगे में जो लाश गिरी वो मेरी ही तो थी, हम हिंदू मुस्लिम का बहाना कब तलक बनाते ? – अनथक पूर्व पुलिस अफसर और हिंदी साहित्यकार विभूति नारायण राय की पुस्तक ” हाशिमपुरा 22 मई ” पढ़ने को मिली। इस पुस्तक पर सबसे ऊपर लगभग 36 प्वाइंट में यह Read more…

साहित्य

एक कुष्ठचर्मी, तो दूसरा केशविहीन

जब कुष्ठचर्मी बना श्वेतचर्मी बैठ गया विश्व – सिंहासन पर दुनिया के मशहूर ट्रेड टावर पर  ऊंटों से भरी वादी लिए हांकता है दुनिया को लाल ऊंटों के बल पर झूठे अहं का शिकार होकर यह दुष्टधर्मी ! ….. जब केशविहीन  बना केशअहीन बैठ गया सत्ता -में सिंहासन पर दृष्टिवानों Read more…

धर्म

शब्द श्री 

शब्द श्री ने दर्शन दिए मेरी श्रद्धा – भक्ति से प्रसन्न हुए कहा – मैं चाहता हूं कुछ बताऊं तुमको मैं कौन हूं ? क्या हूं ? जानोगे ? मैं थोड़ा विस्मय में पड़ गया सोचने लगा – भगवान, इस तरह, इस विशेष अंदाज़ में जो कह रहे हैं अवश्य Read more…

सामाजिक सरोकार

” हम एक हैं ” और रहेंगे

आज देश के पहले दलित आई ए एस डॉक्टर माता प्रसाद का जन्मदिन है … शत शत नमन।11 अक्तूबर 1925 को उनका जन्म जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जगत रूप राम के यहां हुआ। कुछ संदर्भों में उनका 1924 में पैदा होना बताया गया है, जो गलत है।  दलित साहित्य के Read more…

सामाजिक सरोकार

दो कविताएं —

( 1 ) वर्षा का गांव …………… जैसलमेर से आगे मरुस्थल का गांव तपती दुपहरी ठहरते नहीं पांव दूरस्थ दिशा में रेतीले खंडहर में गहराता पतझड़ स्थल मरुस्थल वर्षा का गांव। ….. वाईपेन से आगे जलनिधि की छांव उगते पहाड़ गिरती बर्फ प्रचंड ग्रीष्म नौका का पिघलना तुषार – कण Read more…

धर्म

पिताश्री का गुलाब

अब भी खूब खिलता है मेरे आंगन का लाल गुलाब याद दिलाता है पिताश्री का जो इसके बानी थे और मेरे भी… उस समय मैं नहीं था जब उन्होंने लगाई थी दशकों पहले इसकी कलम गुलाब था आज भी है सदा सर्वदा रहेगा क्योंकि गुलाब के बिना जीवन नहीं यह Read more…

धर्म

हे राम !

हे राम ! सर्वशक्तिमान दयावान सर्वाधार निर्विकार अजर अमर जीवंत अनंत न्यायकारी सर्वसत्ताधारी सर्वव्यापक व्यथानाशक ” ऐसे घट – घट राम हैं दुनिया जानत नाहिं “ क्या कबीर ने जाना तुलसी का मर्म ? सच है – मेरे राम अवर्णनीय हैं असीम हैं आदि हैं अंत हैं अगणनीय इतने कि… Read more…