धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

……………….. मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के निमित्त Read more…

खासमखास

मेरा अस्तित्व

मेरा अस्तित्व……..……… आज साठ पूरा करने के क़रीब पहुंचकर देखा अपने अस्तित्व को अपने आपको अपने में खोकर। अख़बार के मानिंद तुड़े – मुड़े अपने अस्तित्व को जिसके पीछे पड़ा रहा दिनभर शाम के ढलते दियारे को लेकर अब कहां फुरसत कि अपने पन्ने को सीधा करूं ? पढूं, वह Read more…

सामाजिक सरोकार

“उग्र” और “चंद्र” की याद दिला ” नीम अब सूख रहा है “…

” नीम अब सूख रहा है ” क्योंकि उसकी छांह के नीचे उसी की छांह को खरीदने – बेचने का जो सिलसिला चल रहा था, उसका आख़िरी नतीजा आ चुका है। पतन के दौर में जिस आदर्श और मूल्य की तलाश कभी हरफ़नमौला रचनाकार राही मासूम रज़ा ने पूरे मन Read more…

खबरनामा

अशफ़ाक़ुल्लाह खां, जिन्होंने शहादत का जाम हंस के पिया

ज़बाने हाल से अशफ़ाक की तुर्बत ये कहती है, मुहिब्बाने वतन ने क्यों हमें दिल से भुलाया है? बहुत अफ़सोस होता है बड़ी तकलीफ़ होती है, शहीद अशफ़ाक की तुर्बत है और धूपों का साया है। शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां ने अपनी इस रचना के द्वारा अपनी शहादत का ऐलान Read more…

खासमखास

खुशक़िस्मत दुलरू

ये हैं दुलरू … अब साढ़े तीन साल के हो गए हैं। अब रह रहे हैं भारत – नेपाल सीमा के पास हिमालय की शैवालिक पर्वत मालाओं के लगभग अथ स्थान पर , उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में खैरमान डैम के पास। इनकी दास्तान बड़ी हृदय विदारक है! लेकिन हैं Read more…

देवीपाटन मंडल

” मेरा बलरामपुर ” – हम सबका बलरामपुर

बलरामपुर की है अपनी निराली पहचान, कोई शख़्स नहीं इसकी अज़मत से अनजान, कितनी तारीफ़ करूं मैं इस महबूबतरीन की, उर्फ़ – ए आम पर छाई है जिसकी अमिट दास्तान। – अनथक अपने आबाई शहर बलरामपुर को और क़रीब से जानने के लिए एमेजॉन से मंगाई पुस्तक ” मेरा बलरामपुर” Read more…

खासमखास

कितना सार्थक सुरंजन का सुचिंतन ?

भाई डॉक्टर राम शरण गौड़ अग्रणी लेखक होने के साथ व्यवहार – कुशलता के भी अग्रदूत सदृश हैं। वे जब हिंदी अकादमी दिल्ली के सचिव थे , मुझे अकादमी के आयोजनों में याद किया करते थे। साथ ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले में आयोजित होनेवाले कवि सम्मेलन Read more…

खासमखास

हिंदी – हमारी मातृभाषा/ राष्ट्रभाषा 

राष्ट्रभाषा हिंदी का रह – रहकर पीड़ा की तरह विरोध बेहद चिंतनीय और निंदनीय है | हिंदी को रोमन लिपि में लिखना अनुचित है ? वास्तव में हिंदी भाषा और इसकी देवनागरी लिपि का कोई जवाब नहीं ! ऐसी निहायत उम्दा लिपि और भाषा दूसरी नहीं , जो पूरे भारत Read more…

खासमखास

फिर सठिया जाना…!

कहते हैं,सठियाने का आनंद ही कुछ और है। हमारे देश में इसकी एक परंपरा – सी है और एक उपलब्धि – सी भी। कोई कहे या न कहे, महसूस करे या न करे, लेकिन उम्र पाकर वह सठियाता ज़रूर है। मैं भी सठिया गया हूं, तभी इस विषय पर कुछ Read more…

खासमखास

तुलसीपुर की रानी लक्ष्मीबाई !

ये हैं तुलसीपुर की रानी ऐश्वर्य राज राजेश्वरी देवी, जिन्हें तुलसीपुर / बलरामपुर और कभी गोंडा की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए। लोक प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृत लाल नागर ने 1857 के ग़दर पर आधारित अपने ऐतिहासिक उपन्यास में लिखा Read more…

खासमखास

इब्ने बतूता या बतूती ?

इस पुस्तक पर नज़र पड़ी। यह उपन्यास है, लेकिन शीर्षक का मतलब क्या है, शायद लेखक को भी पता नहीं। इब्न बत्तूता अरब यात्री था, चौदहवीं सदी में मोरक्को से भारत आया। उसने रिहला नामक पुस्तक लिखी, जिसमें यात्रा विवरण है। इस पर फिल्मी गाना भी बना। गुलज़ार के शब्दों Read more…

खासमखास

श्रेष्ठ कर्मों में स्पर्धा की भावना 

बौद्धिकता का ‘ दावा ‘ हर किसी का है। बौद्धिक नहीं भी हैं, फिर भी प्रत्यक्ष या परोक्ष या दोनों स्तरों पर दावा और किसी न किसी हद तक गुमान है। लेकिन हम वास्तव में कितने बौद्धिक हैं, यह हमारे चिंतन की प्रखरता और उत्कृष्टता पर निर्भर करता है। इसका Read more…

देश-देशांतर

ऐ आफ़ताबे सुबहे वतन! तू किधर है आज

ऐ आफ़ताबे सुबहे वतन! तू किधर है आज, तू है किधर कि कुछ नहीं आता नज़र है आज। तुझ बिन जहां है आंखों में अंधेर हो रहा, और इंतिज़ामे दिल ज़बरो ज़ेर हो रहा। तुझ बिन सब अहले दर्द हैं दिल मुर्दा हो रहे, और दिल के शौक़ सीनों में Read more…

खासमखास

आज देश ने मिलकर यही पुकारा है

आज देश ने मिलकर यही पुकारा है – जय जवान, जय हिन्द एक ही नारा है! तिल भर भूमि बचाने को जो खून बहाते, पांडु पुत्र की भांति बर्फ़ में गलने जाते। जो स्वदेश पर जीवन-सुख न्योछावर करते, जिनसे आंख मिलाने में हमलावर डरते! हर जवान हमको प्राणों से प्यारा Read more…

खासमखास

प्रेमचंद क्या थे सचमुच ?

31 जुलाई 1880 ई. को महान साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनकी साहित्य सेवा अद्वितीय है और उनकी भारतीयता कालजयी ! कुछ लोग उन्हें अपने कृत्रिम ख़ानों में फिट करने की कोशिश करते हैं , जो बेमानी है। उनका साहित्य विराट है। Read more…