साहित्य

‘हरकारा’ – आख़िर मैं क्या लिखूं ?

भाई अख़लाक़ अहमद ज़ई की दो पुस्तकें मिलीं | ‘हरकारा’ जो पत्र संकलन है और दूसरी जेबकतरा जो लघुकथा संग्रह है। अभी हरकारा पढ़ी है। तेज़ी से लुप्त हो रही पत्र लेखन विधा को संबल देती हरकारा लेखक का जीवन दर्शन भी है। वैसे अब यह विधा बहुत कुछ पत्र Read more…

साहित्य

हरफ़न मौला पत्रकार विद्या प्रकाश 

आज स्वप्न में प्रिय मित्र भाई विद्या प्रकाश नज़र आए | उनकी याद इस क़दर आई कि कुछ लिखने को मजबूर हो गया | आत्मिक शांति के लिए यह नागुज़ीर भी था | अपनी बहुमुखी प्रतिभा से हिंदी जगत को ओतप्रोत करनेवाले सुख्यात पत्रकार विद्या प्रकाश लगभग पांच वर्ष पहले हमसे Read more…

सामाजिक सरोकार

” राग दरबारी ” या दरबारे राग ?

” राग दरबारी ” की काफ़ी तारीफ़ सुनी थी | लोभ – संवरण न कर सका | अमेज़ॉन से मंगा ली,जो राजकमल पेपरबैक्स से छपी है | यह बड़े ही सुख्यात साहित्य-रचनाकार श्रीलाल शुक्ल की लोकप्रिय कृति है | वे कड़ी मेहनत और लगनशीलता के कारण पी सी एस से Read more…

साहित्य

लोक व्यवहार पर बेजोड़ पुस्तक

आख़िर यह पुस्तक क्यों पढ़ी जाए ? इसके जवाब में यह बात आसानी से कही जा सकती है कि डेल कार्नेगी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक, जिसकी अब तक तीन करोड़ से अधिक प्रतियां छप चुकी हैं, ऐसी नहीं हर वह व्यक्ति न पढ़े जो प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला की खोज Read more…

साहित्य

मातृ भाषा का महत्व

मनुष्य की मातृ भाषा उतनी ही महत्व रखती है , जितनी कि उसकी माता और मातृ भूमि रखती है | एक माता जन्म देती है , दूसरी खेलने – कूदने , विचरण करने और सांसारिक जीवन – निर्वाह के लिए स्थान देती है , और तीसरी मनोविचारों और मनोगत भावों Read more…

साहित्य

क्या लबारी पत्रकार द्विवेदी जी से सबक़ लेंगे ?

हिंदी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यसेवा अविस्मरणीय है | उनके योगदान के कारण  हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ के नाम से जाना जाता है | जनवरी, 1903 ई. से दिसंबर, 1920 ई. तक आपने ‘ सरस्वती ‘ नामक मासिक पत्रिका का संपादन कर Read more…

साहित्य

कश्ती मेरी डूबी कि वो साहिल उतर गया

दो रोज़ में शबाब का आलम गुज़र गया , बदनाम करने आया था बरबाद कर गया | बीमारे गम मसीह को हैरान कर गया , उठा , झुका , सलाम किया , गिर के मर गया | गुज़रे हुए ज़माने का अब तज़किरा ही क्या , अच्छा गुज़र गया , Read more…

साहित्य

 आस्तिकता – प्रेमचंद

सोच अलग व्यवहार अलग, ज़ीने का अंदाज अलग कुछ अलग है हम सब में, फिर भी एक से दिखतें है इस दुनिया के बज़ारों में, अलग अलग दाम में बिकते है साथी वो ही है साथ वो ही है, फिर भी रोज़ बात अलग कभी आँसू तो कभी मुस्कान अलग, इस Read more…

साहित्य

क़लम के जादूगर !

क़लम के जादूगर ! अच्छा है, आज आप नहीं हो | अगर होते, तो, बहुत दुखी होते | आप ने तो कहा था कि, खलनायक तभी मरना चाहिए, जब, पाठक चीख चीख कर बोले, मार – मार – मार इस कमीने को | पर, आज कल तो, खलनायक क्या? नायक-नायिकाओं Read more…

साहित्य

दिग्गज पत्रकार मुंशी दया नारायण निगम

भारत के जाने माने उर्दू पत्रकार एवं समाज सुधारक मुंशी दयानारायण निगम का जन्म 22 मार्च 1882 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। वे उर्दू में प्रकाशित होने वाली पत्रिका जमाना के संपादक थे। निगम ने मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ प्रकाशित की Read more…

साहित्य

कोरोनियत मुर्दाबाद

कोरोना आया 210 देशों में एक साथ ; आगे – पीछे , व्यतिक्रम किन्तु ——” हम सब साथ – साथ ” ” मिले सुर मेरा तुम्हारा ” ” वसुधैव कुटुंबकम ” का संकल्प [ ! ? ] लिए कोरोना आया ! कुछ लोग आज ख़ुश हैं , मानो स्वागतमय हों प्राचीन Read more…

साहित्य

जय ‘ उदन्त ‘ – जय जुगल

194 वर्ष पहले 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर सुकुल ने हिंदी का पहला समाचारपत्र ” उदंत मार्तड ” का प्रकाशन शुरू किया गया । यह साप्ताहिक पत्र था , लेकिन अर्थाभाव के चलते इसके मात्र 79 अंक ही निकल पाए थे | पहले की मिशनरी पत्रकारिता आज उद्योग Read more…

साहित्य

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्योहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग Read more…

साहित्य

राह पकड़ तू एक चला चल 

  मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, ‘किस पथ से जाऊँ ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला; अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ- ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’। पौधे आज बने हैं साकी ले-ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिनके Read more…

साहित्य

जब प्रेमचंद की गाय कलक्टर के घर में घुसी …

हिंदी और उर्दू साहित्य के दृढ़तम स्तंभ मुंशी प्रेम चंद शुरू से ही उच्चाधिकारियों के प्रति अति स्वाभिमानी थे | जब अगस्त 1916 ई. में प्रेम चंद का तबादला बस्ती से गोरखपुर के नार्मल स्कूल हो गया था, उन्हीं दिनों उनकी गाय अंग्रेज़ कलक्टर के अहाते में चली गई | Read more…