साहित्य

मातृ भाषा का महत्व

मनुष्य की मातृ भाषा उतनी ही महत्व रखती है , जितनी कि उसकी माता और मातृ भूमि रखती है | एक माता जन्म देती है , दूसरी खेलने – कूदने , विचरण करने और सांसारिक जीवन – निर्वाह के लिए स्थान देती है , और तीसरी मनोविचारों और मनोगत भावों Read more…

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क्या लबारी पत्रकार द्विवेदी जी से सबक़ लेंगे ?

हिंदी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यसेवा अविस्मरणीय है | उनके योगदान के कारण  हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ के नाम से जाना जाता है | जनवरी, 1903 ई. से दिसंबर, 1920 ई. तक आपने ‘ सरस्वती ‘ नामक मासिक पत्रिका का संपादन कर Read more…

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कश्ती मेरी डूबी कि वो साहिल उतर गया

दो रोज़ में शबाब का आलम गुज़र गया , बदनाम करने आया था बरबाद कर गया | बीमारे गम मसीह को हैरान कर गया , उठा , झुका , सलाम किया , गिर के मर गया | गुज़रे हुए ज़माने का अब तज़किरा ही क्या , अच्छा गुज़र गया , Read more…

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 आस्तिकता – प्रेमचंद

सोच अलग व्यवहार अलग, ज़ीने का अंदाज अलग कुछ अलग है हम सब में, फिर भी एक से दिखतें है इस दुनिया के बज़ारों में, अलग अलग दाम में बिकते है साथी वो ही है साथ वो ही है, फिर भी रोज़ बात अलग कभी आँसू तो कभी मुस्कान अलग, इस Read more…

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क़लम के जादूगर !

क़लम के जादूगर ! अच्छा है, आज आप नहीं हो | अगर होते, तो, बहुत दुखी होते | आप ने तो कहा था कि, खलनायक तभी मरना चाहिए, जब, पाठक चीख चीख कर बोले, मार – मार – मार इस कमीने को | पर, आज कल तो, खलनायक क्या? नायक-नायिकाओं Read more…

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दिग्गज पत्रकार मुंशी दया नारायण निगम

भारत के जाने माने उर्दू पत्रकार एवं समाज सुधारक मुंशी दयानारायण निगम का जन्म 22 मार्च 1882 में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। वे उर्दू में प्रकाशित होने वाली पत्रिका जमाना के संपादक थे। निगम ने मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ प्रकाशित की Read more…

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कोरोनियत मुर्दाबाद

कोरोना आया 210 देशों में एक साथ ; आगे – पीछे , व्यतिक्रम किन्तु ——” हम सब साथ – साथ ” ” मिले सुर मेरा तुम्हारा ” ” वसुधैव कुटुंबकम ” का संकल्प [ ! ? ] लिए कोरोना आया ! कुछ लोग आज ख़ुश हैं , मानो स्वागतमय हों प्राचीन Read more…

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जय ‘ उदन्त ‘ – जय जुगल

194 वर्ष पहले 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर सुकुल ने हिंदी का पहला समाचारपत्र ” उदंत मार्तड ” का प्रकाशन शुरू किया गया । यह साप्ताहिक पत्र था , लेकिन अर्थाभाव के चलते इसके मात्र 79 अंक ही निकल पाए थे | पहले की मिशनरी पत्रकारिता आज उद्योग Read more…

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ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्योहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग Read more…

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राह पकड़ तू एक चला चल 

  मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, ‘किस पथ से जाऊँ ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला; अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ- ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला’। पौधे आज बने हैं साकी ले-ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिनके Read more…

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जब प्रेमचंद की गाय कलक्टर के घर में घुसी …

हिंदी और उर्दू साहित्य के दृढ़तम स्तंभ मुंशी प्रेम चंद शुरू से ही उच्चाधिकारियों के प्रति अति स्वाभिमानी थे | जब अगस्त 1916 ई. में प्रेम चंद का तबादला बस्ती से गोरखपुर के नार्मल स्कूल हो गया था, उन्हीं दिनों उनकी गाय अंग्रेज़ कलक्टर के अहाते में चली गई | Read more…

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सुमंत मिश्र – एक खोजी और शोधी पत्रकार

1984 में जब मैंने वाराणसी में दैनिक ” आज ” ज्वाइन किया, तब सुमंत मिश्र जी को डेस्क पर पाया | दयानन्द जी ने बताया कि कुछ महीने पहले ही ” दैनिक जागरण ” से यहां आए हैं | मुझे उनकी ज़हानत का पता उस दिन चला, जब उन्होंने अंग्रेज़ी Read more…

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संपादक नहीं ‘ तूफ़ान ‘ थे बच्चन सिंह

  मुझे कई नामचीन संपादकों के साथ काम करने का मौक़ा मिला | इन यशस्वी संपादकों में गुरुवर पंडित लक्ष्मी शंकर व्यास जी, गुरुवर चंद्र कुमार जी, बड़े भाई सत्य प्रकाश ‘असीम’ जी आदि के नाम हैं ही | बच्चन सिंह जी का नाम मैं इनमें क़तई नहीं जोड़ना चाहता हूँ, क्योंकि मैंने ‘ स्वतंत्र भारत Read more…

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प्रलय-गाण्डीव की टंकार हूँ मैं  

सलिल–कण हूँ कि पारावार हूँ मैं? स्वयं छाया, स्वयं आभार हूँ मैं । बँधा हूँ स्वप्न है, लधु वृत्त में हूँ नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं । समाना चाहती जो बीन–उर में विकल वह शून्य की झंकार हूँ मैं । भटकता खोजता हूँ ज्योति तम में , सुना Read more…

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आओ, अपने मन को टोवें !

व्यर्थ देह के संग मन की भी निर्धनता का बोझ न ढोवें। जाति पातियों में बहु बट कर सामाजिक जीवन संकट वर, स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के पथ में हम मत काँटे बोवें! उजड़ गया घर द्वार अचानक रहा भाग्य का खेल भयानक बीत गयी जो बीत गयी, हम Read more…