ललित निबंध के पुरोधा पद्म भूषण पंडित विद्यानिवास मिश्रजी (14 जनवरी, 1926 – 14 फरवरी, 2005) बहुत मुदुभाषी , अत्यंत मिलनसार व्यक्तित्व का नाम है |

पंडित जी से मेरी पहली भेंट वाराणसी में हुई, जब 1983 में आप काशी विद्यापीठ के कुलपति नियुक्त हुए I उस समय मैं विद्यापीठ के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग से बीजेएमसी कर रहा था | एमजेएमसी करने तक उनसे बार – बार भेंटें होती रहीं और विशेषकर साहित्य एवं पत्रकारिता पर बात होती रहती थी I
वे मेरे स्वाध्याय से बहुत प्रभावित थे , जिसका उन्होंने कई बार उल्लेख किया I वास्तव में उन्होंने मुझे जीवटता की सीख दी I जब आप दिल्ली में पत्रकारिता से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े , तब मैं दिल्ली में ही आपके सम्पर्क में था I पंडित जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान, जाने-माने भाषाविद्, हिंदी साहित्यकार और सफल संपादक (नवभारत टाइम्स) थे। उन्हें 1999 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म-भूषण से सम्मानित किया था। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी के बाद अगर कोई शख्स ललित निबंधों को वांछित ऊँचाइयों पर ले गया तो हिंदी जगत् में पंडित विद्यानिवास मिश्र का ही जिक्र होता है।
पंडित मिश्र जी हिन्‍दी के मूर्धन्‍य साहित्‍यकार थे। आपकी विद्वता से हिन्‍दी जगत का कोना-कोना परिचित है। उन्होंने अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में भी शोध कार्य किया था तथा वर्ष 1967-68 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अध्येता रहे थे। पंडित विद्यानिवास मिश्र के ललित निबन्‍धों की शुरूवात सन्‌ 1956 ई0 से होती है। परन्‍तु आपका पहला निबन्‍ध संग्रह 1976 ई0 में ‘चितवन की छाँह’ प्रकाश में आया है। आपने हिन्‍दी जगत को ललित निबन्‍ध परम्‍परा से अवगत कराया। 
निष्‍कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि पंडित मिश्र जी का लेखन आधुनिकता की मार देशकाल की विसंगतियों और मानव की यंत्र का चरम आख्‍यान है जिसमें वे पुरातन से अद्यतन और अद्यतन से पुरातन की बौद्धिक यात्रा करते हैं। ‘‘मिश्र जी के निबन्‍धों का संसार इतना बहुआयामी है कि प्रकृति, लोकतत्‍व, बौद्धिकता, सर्जनात्‍मकता, कल्‍पनाशीलता, काव्‍यात्‍मकता, रम्‍य रचनात्‍मकता, भाषा की उर्वर सृजनात्‍मकता, सम्‍प्रेषणीयता इन निबन्‍धों में एक साथ अन्‍तग्रंर्थित मिलती है। पंडित जी अंतर्हृदय से बारम्बार अभिवादन … प्रणाम ! – Dr RP Srivastava

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