21 पुस्तकों की समीक्षा पढ़ने का मतलब आपने 21 पुस्तकों को पढ़ भी लिया और समझ भी लिया यानी मुफ्त में इतनी सारी पुस्तकें पढ़ने को मिल गयीं, ये दूसरी बात है इनमें से 8 पुस्तकें पहले से ही मेरे संग्रह में है और पहले से पढ़ा हुआ था। इसी कारण वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और समीक्षक रामपाल श्रीवास्तव की बहुमूल्य पुस्तक “जित देखूँ तित लाल” को पढ़ने का बहुत ही सुखद अनुभूति महसूस हुई। वैसे तो सभी 21 पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं और रामपाल श्रीवास्तव की बेजोड़ समीक्षा इनके महत्व को बढ़ाती ही हैं। फिर भी कुछ पुस्तकों का जिक्र लाजिमी है अमृता प्रीतम की पिंजर, श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी, अख़लाक़ अहमद ज़ई की लालटेन गंज, जेबकतरा और हरकारा,प्रदीप मिश्रा का नीम अब सूख रहा है, चंन्द्रेश्वर का हमारा बलरामपुर,पूर्व आईपीएस विभूति नारायण राय की हाशिमपुरा 22मई,लाला दौलतराम का मंतव्य यानी दौलतराम की नज़रों में साहिबे कमाल गुरू गोविन्द सिंह जी विशेष उल्लेखनीय है। विद्वान समीक्षक अपनी पैनी दृष्टि से यदि लेखक की अनमोल मेहनत से रचित पुस्तक पर अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी करता है तो वह उक्त पुस्तक को समृद्धि तो करता ही है साथ ही लेखक को कुछ ऊर्जा और दृष्टि भी प्रदान करता है। विभूति नारायण राय साहब की पुस्तक “हाशिमपुरा 22 मई” की समीक्षा बेजोड़ है। रामपाल श्रीवास्तव जी ने आगे बढ़कर उस कायरतापूर्ण हत्याकांड पर एक पत्रकार के नज़रिये से बहुत ही विस्तार से रोशनी डाली है और बहुत से रहस्य से पर्दा उठाया है जिसको राय साहब अपनी पुस्तक में गोल कर गये थे या खामोश रहे थे। अख़लाक़ अहमद ज़ई की “हरकारा” पर भी बहुत विस्तार से अपनी क़लम चलाई है रामपाल श्रीवास्तव जी ने। मैं एक अदना सा पाठक हूँ, समीक्षा की समीक्षा करना या उस पर टिप्पणी करना सूरज को चिराग़ दिखाने जैसा है इसलिए ऐसी गुस्ताखी नहीं कर सकता। बस पढ़ने का आनंद लिया जा सकता है।
सभी पुस्तकों की समीक्षा बहुत अच्छी है मुझे तो बहुत अच्छी लगी आप भी पढ़ने का सुखद आनंद लें।
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“जित देखूं तित लाल” की सुखद अनुभूति
Published by भारतीय संवाद on
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