“एक मुश्किल समय में” सामने है। यह काव्य संग्रह है प्रतिभ युवा कवि उपेंद्र यादव का। इससे पहले कवि का “तुम्हारे होने से” से काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुका है। 156 पृष्ठीय ताज़ा संग्रह में कुल मिलाकर 75 कविताएं हैं। इन्हें पढ़कर मुझे ठीक से पता चला कि कवि प्रगतिशील, साम्यवादी, जनवादी कवि है, जिसका इज़हार उसकी कुछ कविताएं दहाड़ मारकर करती हैं। मेरा मानना है कि वाद कोई भी हो, उसके मूल में लोक कल्याण निहित होता है। सभी का स्वागत ही होना चाहिए, क्योंकि लोक कल्याण के अनेक मार्ग एवं उपक्रम हो सकते हैं। फिर धर्म को धिक्कार की बात बेमानी हो जाती है। हां, इसका विकृत रूप अवश्य त्याज्य हैं।
जीवन नश्वर है। प्रत्येक को मृत्यु का आस्वादन करना, अवसन्नता की स्थिति में जाना है। संसार में विद्यमान जड़ चेतन  सबका यही हाल है। सभी नक़ली हैं। किसी का सॉलिड अस्तित्व नहीं ! कवि लिखता है –

“तब मैंने बिटिया से कहा –
आज तुम जिसे असली कह रही हो
वो किसी और के लिए नक़ली है
दरअसल इस जहां में
कुछ भी असली नहीं होता
सब मृगमरीचिका।” ( पृ. 92 )
यह भी सच है कि हम सबकी स्थिति सवारी की है ! वह भी ऐसी सवारी की, जो अपनी इच्छा से “वाहन” से उतर नहीं सकता ! ज़ाहिर है “एक मुश्किल समय में” वह फंसा हुआ है।
“उबर चालक अपनी धुन में मस्त है
स्टेयरिंग पर चलते उसके हाथ
एक्सिलरेटर पर चौकन्ने उसके पैर
मोबाइल की सटीक लोकेशन
और रेड सिग्नल की विवशता
इस समय उसे दुनिया का
सबसे जटिल इंसान बनाती है
साथ ही बहुत संजीदा भी
अपनी नज़रों में वह महान है
सड़कों का बादशाह सा कुछ।” ( पृ. 90 )
“सड़कों का ऐसा बादशाह” जो निरंकुशता समाप्त कर दे, जो सत्ता और धर्म का घालमेल दूर करे
स्वयं निरंकुश बनकर अथवा निरंकुश सत्ता स्थापित कर !? कवि इस मिलावट को मानवता संहारी मानता है। वह कहता है –
“सत्ता ने धर्म के साथ तदात्मयीकरण  कर
मानवता को सबसे ज़्यादा क्षति पहुंचाई है
आज दुनिया को सुकरात, गैलीलियो, ब्रूनो
था क्रॉमवेल की ज़रूरत नहीं है
बल्कि हिटलर, मुसोलिनी, स्टालिन
एवं गद्दाफ़ी की ज़रूरत है
…. और इस दिशा में हम
बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं
निरंकुशता बिल्कुल प्रगति पर है।” ( पृ. 39 )
यहां कवि का क्लियर दृष्टिकोण एवं नज़रिया सामने आता है, जो इस दृष्टि से ही उसकी कविताओं को देखने के लिए बाध्य करता है। वह अपने और अन्य नास्तिक मतों की भांति ईश्वर को भी झूठा कहने लगता है। वह प्राकृतिक आपदा से आहत होकर कह बैठता है –
“कहां है ईश्वर जिसकी मर्ज़ी के बिना
एक पत्ता भी नहीं हिलता
इन मासूम मौतों औ’ ज़मींदोज़ मकानों को
देखकर उसका कलेजा क्यों नहीं पिघलता
क्या दुनिया का सबसे झूठा शब्द है “ईश्वर”
जिसके नाम पर कार्य व्यापार चल रहा है
वो तो बस एक छलावा बनकर रह गया है
इस जहां के लोग जो अच्छे काम करते हैं
अब उनके लिए कोई और उपमान गड़ने होंगे।”
( पृ. 20 )
कवि का मानना है कि जब संकीर्णता के
 विशेष चश्मे से देखकर व्यावहारिकता का जामा पहना अथवा पहनाया जाता है तो उससे मानव कल्याण असंभव है, क्योंकि वहां अनेक और बुराइयों का जन्म हो जाता है, जो मानव को कुमार्गगामी बना डालती हैं। ऐसे में बदले की भावना आती है, जो हिंसा, बलात्कार और अतिचार में कन्वर्ट होकर भारी तबाही एवं बर्बादी का कारण बनती है। देखिए कवि की ये पंक्तियां –
“फिर भी धर्म के केंचुल में उलझे इंसान को
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
प्रतिशोध की आग में उसे सब सही लगता है
उसकी चेतना इस क़दर शिथिल पड़ गई है
कि वो ऐसी हज़ारों बिल्कीस बानो की
ज्यादतियों पर चुप रहना बेहतर समझता है
क्योंकि उसे इंसानियत की नहीं, धर्म की चिंता है।”
( पृ. 37 )
कवि हर प्रकार के अत्याचार, अनाचार ओर अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने का आह्वान करता है और इसे इंसान का सहज स्वाभाविक कर्तव्य बताता है। कवि के शब्दों में –
“यातना और ज़ुल्म से
डटकर लड़ सको, तो लड़ो
मुंहतोड़ जवाब दे सको, तो दो
ख़ुद को स्थापित कर सको, तो करो
यही प्राकृतिक नियम है
और इससे बड़ा नियम
आज तक अभी बना नहीं
मनुष्य के बनाए सारे विधान
 बस उलझाव का एक साधन हैं।”
( पृ. 24, 25 )
कवि विराट व्यक्तित्व का स्वामी है। विभिन्न झंझावातों के दरमियान वह अंततः”मधुर झोंके” की खोज कर लेता है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपना कसीदा यूं पढ़ता है –
“पर उसका आना
हवा के एक मधुर झोंके जैसा रहा
तलाक़ और कश्मीर के समाधान ने
उसको प्यार करने को
हमें विवश किया
उसके पिटारे में अभी कई फ़न बाक़ी हैं।”
( पृ.140 )
स्थितियां एक जैसी नहीं होतीं। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, चाहे वह अभासित न हो पाए। देखिए ना, कश्मीर से धारा 370 को हटाने के विरुद्ध अर्थात इसकी वापसी के लिए राज्य की विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर दिया है।
यह पुस्तक साहित्य 24 पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित है। काग़ज़ और छपाई उत्तम है। प्रूफ की समस्या न के बराबर है, जो एक और उपलब्धि है। बाइंडिंग में कुछ दिक्कत है।
निश्चय ही पुस्तक पठनीय है और कवि किसी इयत्ता सफल है। कवि को साधुवाद और उज्ज्वल भविष्य की कामना।
– R P Srivastava

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