आज बह आए हैं
आँसू तुम्हारी आँखों से
हिमानी की एक – एक बूंद
रिस रही है
घिस रही है
उम्र सरक रही है
पास आने को
जताने कि
भ्रम अवरुद्ध हो रहा है !
थोड़ी और
आँसुओं की बरसात करो
इतनी कि आँचल भीग जाए
डर जाए
सौभाग्य से
शीत लहर लग जाए
छप जाए
अख़बारों में
शीत लहरी में एक की मृत्यु !!
– राम पाल श्रीवास्तव
[ ” सुलगते पृष्ठों के हाशिये ”, मनीषा प्रकाशन , जबलपुर , दिसंबर 1984 , पृष्ठ 48 ]