आज़ादी – ए भारत के मशहूर हैं अफ़साने,

उठेगा वतन कितना वादों से ख़ुदा जाने |

हो कांग्रेसी कोई या पार्टी जनता की,

ले डूबेंगे हम सबको कुर्सी के ये दीवाने |

गड़बड़ किया है देश के हर कारोबार ने,

रौंदा है ख़ूब गर्दिशे लैलोनहार ने |

उकड़ू बकइयां खेल रहा है बशर ”चियाँ’,’

ऐसा पटक दिया है ग़मे रोज़गार ने |

ख़ाली है पेट, पेट की क़िस्मत को क्या कहें।

रिश्वत ही माई – बाप है, रिश्वत को क्या कहें |

अंधेर को फ़रोग़ है इस दौर में चियाँ”

भारत के इस निज़ामे हुकूमत को क्या कहें |

हर चीज़ मार्केट से वह गोल कर रहे हैं,

नेता हमारे कैसा कंट्रोल कर रहे हैं |

वरदान दे रहे हैं जनता को यह जवानी,

कथरी में मुफ़लिसों की वो होल कर रहे हैं |

– चियाँ बलरामपुरी

[ ओम प्रकाश सक्सेना ]

[ ” एकता संदेश ”, हिंदी पाक्षिक, 14 नवंबर 1983, संपादक – राम पाल श्रीवास्तव, प्रकाशक – साहित्यकार कल्याण संघ, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ]

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फ़रोग – बढ़ावा , विस्तार , लैलोनहार – रात – दिन , मुफ़लिसों- निर्धनों

 

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