गणतन्त्र दिवस के सुअवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं –
आज फिर स्व . रामचन्द्र राव होशिंग की दो कविताएं याद आ रही है , जिनमें से एक का शीर्षक है –
” गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या ”
गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या
विशाल परेड –
पूर्वाभ्यास – और डूबता सूरज ,
एक गरजता संदेश पंचरंगी
हवा में तैरता –
राष्ट्र के नाम
आवेष्ठित ‘ जन गण मन ‘ से ,
जनहित में
पूर्ण विश्वास का झूठा दावा ,
ज्ञात – अज्ञात –
सैनिक – शहीदों को
मौखिक श्रद्धांजलि
करोड़ों मरी जनता के
अदम्य कर्तव्यों में विश्वास ?
नए कर्तव्यों की याद में
हमलों का पुराना रोना
और लोकतंत्र की आस्था में
पुनः खो जाना
हर साल की कहानी है |


श्री होशिंग जी की दूसरी कविता से बात पूरी होती है , जिसका शीर्षक है –
” गणतन्त्र दिवस की सुबह ”
इतिहास की प्राचीर पर
खड़े होकर
बापू के नाम पर दो आंसू
रामराज्य के क़ब्र में दो मुट्ठी माटी
गुलाब की बिखरती पंखुड़ियों से
परकटे कबूतरों का
उड़ने के प्रयास में गिरना
जयहिंद के नारों में ओझल हो जाता है |
वफ़ादारी की
हर साल नई क़सम
रस्मों की अदायगी में दफ़न
चमकती परेड
शास्त्रायुधों की घरघराहट
झांकियों की चकाचौंध
तोपों की सलामी में समा जाती है |
बच्चियों की परेड
अंगरक्षकों की दमक
बैंडों की ऊंची ध्वनियों में
ग़रीब देश का
प्रजातंत्र खो जाता है |

– Dr RP Srivastava, Editor-in-Chief,”Bharatiya Sanvad”

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