अवतारवाद पर राम पाल श्रीवास्तव जी की किताब “अवतारवाद एक नई दृष्टि ” सच में एक नई दृष्टि लेकर हमारे सामने आई है। किताब को मैंने दो बार पढ़ा। किताब में बहुत से नए पहलुओं के बारे में बात की गई है। इसके लिए बात करने से पहले अध्ययन बहुत जरूरी हो जाता है। और यह अध्ययन राम पाल जी की इस किताब में पूरी तरह से दिखाई देता है। इतने सारे तथ्यों को इकट्ठा करना और प्रस्तुत करना बहुत टेढ़ी खीर है। लेकिन राम पाल जी ने उसे आसान तरीके से समझाने की पुरजोर कोशिश की है।
जिन संस्कारों में हम लोग पले-बढ़े, उनके बारे में ऐसी बातें सामने आएं, तो लगता है जैसे हम लोग नींद से जागे हैं। पढ़ते हुए हमें कई बार दृष्टि भ्रमित होती हुई भी महसूस होती है, कई बार कई बातें निराधार भी लगती हैं। लेकिन तथ्यों को झुठलाया भी नहीं जा सकता। इतनी सारी जानकारियां एक ही पुस्तक में देना, पुस्तक की सबसे बड़ी ताकत बन जाती है। उन्होंने अवतार शब्द को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है कि अवतार शब्द ईश्वर के स्वयं धरती पर आकर मानवता की रक्षा करने के अर्थ में न होकर किसी ऐसे इंसान का होता है, जो किसी मनुष्य को मानव से महामानव बना देता है। यही महामानव लोगों के हितों की बात करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं। यही लोग भविष्य में अवतार के रूप में जाने जाते हैं।
इस पुस्तक में कई प्रसंग पढ़ कर ऐसा लगता है कि आंखें खुल रही हैं और कई बार लगता है कि बंद हो रही हैं। आंखों का बार-बार खोलना और बंद करवाकर झकझोर देना ही इस किताब की असली कामयाबी है। किताब में केवल एक धर्म के अवतार की बात नहीं, बल्कि लगभग सभी धर्मों के अवतारों को छुआ गया है। सबसे बड़ी बात यही है कि सारी बातें तर्क के साथ रखी गई हैं। पाठक कहीं भी कन्फयूज नहीं होता, बल्कि पन्ना दर पन्ना उसे नई जानकारी मिलती जाती है और वह पढ़ता हुआ आगे बढ़ता जाता है। किताब जब तक पूरी खत्म न हो तसल्ली नहीं होती। किताब खत्म होने के बाद भी आपके दिमाग में कई प्रश्न छोड़ जाती है, जो हर समय आपको सोचने के लिए मजबूर करते हैं। भक्ति काल के आंदोलन के कवियों का जिक्र भी इस किताब का हिस्सा बना है। निर्गुण कवियों ने भी ईश्वर को निराकाल माना है। बहुत सारी बातें किताब की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए भी लिखी गई हैं, ताकि पाठकों को भरपूर जानकारी मिल सके। किताब जो कुछ भी कहना चाहती थी वह कहने में सफल हुई है।
आपकी कई बातों से सहमति-असहमति हो सकती है, इसके बावजूद अगर आप अवतारवाद एक नई दृष्टि को नई दृष्टि से देखना चाहते हैं, आपको इस किताब के माध्यम से गुजरना होगा। राम पाल जी को इस कार्य के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
डॉ. अजय शर्मा
जालंधर
कृपया टिप्पणी करें
Post Views:
113
“अवतारवाद – एक नई दृष्टि” का सफल मंतव्य
Published by भारतीय संवाद on
कृपया टिप्पणी करें
पोस्ट शेयर करें
अन्य पोस्ट पढ़ें
Related Posts
खासमखास
मनोरम कल्पना और हृदयग्राही उपमाओं से सज्जित “प्रकृति के प्रेम पत्र”
संसार में प्रेम ही ऐसा परम तत्व है, जो जीवन का तारणहार है। यही मुक्ति और बाधाओं की गांठें खोलता है और नवजीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह अलभ्य एवं अप्राप्य भी नहीं, जगत Read more…
खासमखास
लाजवाब है “अर्धवृत्त में घूमता सूरज”
विनोद अनिकेत हिन्दी कविता के देदीप्यमान – जाज्वल्यमान नक्षत्र सदृश हैं। इनकी भाषिक संरचना का जवाब नहीं ! भाषा के विशिष्ट सामर्थ्य को उजागर करने का अंदाज़ कोई कवि से सीखे। यही कविता की ख़ास Read more…
खासमखास
“सुन समन्दर” में अनगिनत भावों एवं रिश्तों की गहन तलाश
सत्य प्रकाश असीम की कविताएं अनगिनत भावों एवं रिश्तों की गहन तलाश और उनका एहतिसाब हैं। इनमें जीवन की नाना प्रकार की अनुभूत गहरी तल्ख़ियां विद्यमान हैं, जो मानव पीड़ा को सहज रूप से निरूपित Read more…