वाकई किसी कवि ने कहा था –
हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे । किसी कवि की उक्त पंक्तियाँ उस समय चरितार्थ हो उठी ज़ब आदरणीय लेखक श्री रामपाल श्रीवास्तव जी द्वारा लिखित किताब “कहानियो का कारवाँ ” पढ़ने का सौभाग्य मिला ।
आज उस लेखक की कलम को चूम लेने के साथ साथ दिल से प्रणाम करने का मन बरबस कर उठा । प्रस्तुत पुस्तक में आपने कहानियों को बहुत अच्छी तरह से गति दी है।” “लेखन वास्तव में निहायत ही सुंदर है । लेखक का सही समय के लिए सही शब्द का प्रयोग पुस्तक के कथानक को चार चाँद लगा रहा हैं।”
यूँ तो आपकी अनूठी लेखन क्षमताओं का अंदाजा लगा पाना फिलहाल हम जैसे के लिए आसान नहीं लेकिन पुस्तक कहानियों का कारवाँ आपकी रचनात्मकता और आत्म अन्वेषण का सहज भान करा जाती है ।
सच बताऊँ तो “कहानियाँ का कारवाँ” पुस्तक कहानियों का वह गुलदस्ता है जिसके हर पन्नों पर ऊकेरे गए एक एक शब्द दिल को कहीं गुदगुदाते तो कहीं सोचने को विवश कर देते है । वास्तव मे लेखक की हर कहानी मे शब्द जहाँ आकर्षक है वहीँ कहानियाँ बेहद सुलभ नजर आती हैँ, जिसे पढ़ने के बाद मुंह से बरबस निकल पड़ता है.
” मैं तेरा हो जाऊंगा, तू मेरा हो जाना
ऐसे ही चलता रहे अब कारवां अपना।।”
– जी सी श्रीवास्तव
प्रदेश अध्यक्ष
यू पी जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ( उपजा )
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“कहानियों का कारवां” की नितांत पठनीयता
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