प्रतिष्ठ कथाकार चित्रगुप्त की सद्य: प्रकाशित पुस्तक “शिगूफा” पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दरअसल यह 104 पृष्ठों पर मुश्तमिल 17 कहानियों का संग्रह है, जो न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित है। कथाकार की अन्य रचनाओं की भांति यह पुस्तक भी अपने आपमें बेजोड़ है, जो आरंभ से अंत तक पाठक को बांधे रखती है और सुगठित कथानक प्रदान कर अद्भुत दीप्ति का एहसास कराती है। सभी कहानियों का सौष्ठव और गठन इस प्रकार का है कि कथानक के सजीव वातावरण का निर्माण हो जाता है, जो कहानी के मंतव्य को चार चांद लगा देता है और आगे पढ़ने को विवश कर देता है। ये कहानियां रोचक एवं यथार्थवादी शैली में लिखी गई हैं। इनका मूलतत्व वास्तविकता पर आधारित लगता है। केवल कहानी की मांग के मद्देनज़र कहीं-कहीं कल्पना के पंख लगाए गए हैं। कहानियों में कलालंकृत रूप की मौजूदगी कथाकार की बड़ी सफलता है।
कथाकार की एक अन्य विशेषता यह है कि कथ्य, भाषा और भाव विचार के संतुलित एवं समन्वित उद्बोध के सर्वत्र दर्शन होते हैं। इसी क्रम में प्रत्येक कहानी सोद्देश्यपूर्ण है, जो प्रायः ग्रामीण जन, जनजातीय समाज और कुल मिलाकर अभावग्रस्त आम आदमी के दुख-दर्द व गंभीर तक़ाज़ों से जूझने की वकालत अपने प्रभावी शब्द देकर करती है। सभी कहानियां अपने को विशिष्ट ढंग और ज़ाविए से रूपायित करती हैं।
अब आइए ज़रा इन कहानियों पर एक विहंगम दृष्टि डालने का प्रयास करें –
पहली कहानी “दो रूपए” गंवई ज़िंदगी की अभावग्रस्तता को उकेरने में पूर्णतः सक्षम है। राम सरन का बेटे शकुन मोटरसाइकिल की चपेट में आने से आहत हो जाता है, तो उसकी चिकित्सा हेतु पैसे जुटाए जाते हैं। परिवार के सदस्यों के पास जो कुछ रहता है, देते हैं। इसी क्रम में शकुन की बहन गुड्डी द्वारा एक-एक रूपए के दो सिक्के पिता के हाथ में रखना कहानी का सार तत्व बन जाता है।
दूसरी कहानी “अंधेरे का सच” वासना की अंधी सुरंग की दास्तान है। गांव के रहनेवाले रामू और मुन्ना मजूरी करने के लिए कोलकाता पहुंचते हैं, तो उन्हें रेड लाइट एरिया का चस्का लग जाता है। दोनों अचानक इस रंगीन हल्के में मिल जाते हैं, तो दोनों वहां पहुंचने के बहाने बनाते हैं। रामू ने बताया,”गांव में नया घर बना रहे हैं ना, तो वहां कुछ भूत-प्रेत वाला चक्कर है। पंडित जी ने कहा था कि बदनाम गली की मिट्टी मिल जाए पूजा-पाठ करके इनको बांध दें।” मुन्ना भला कब चुप रहने वाला था। उसने नहले पर दहला दिया। जब उससे रामू ने वहां पधारने का सबब पूछा, तो बरमला कह उठा, “मुन्ना भैया, जो मिट्टी तुम लेने आए थे ना, वो लेने तो यहां बहुत से लोग आते रहते हैं। यही काम के लिए मुझे मालकिन से ठेका मिल गया है। मैं मिट्टी खोदकर रख जाता हूं और आपके जैसे लोग आकर ले जाते रहते हैं !” इस प्रकार कुमार्गगमन की हीलाहवाली हो जाती है और पत्नी से अलग रहने का दर्द भी छलक पड़ता है।
तीसरी कहानी “प्रण” है, जो ठेठ प्रतिशोध पर आधारित है। गांव के ठकुरसुहाती सामंती शोषण का नमूना है। यद्यपि इसका चलन अब ढीला पड़ गया है, पर अत्याचार-अनाचार के विविध रूप विद्यमान हैं। चौधरी भारत सिंह के घर में उनके पिता बैजनाथ सिंह के समय से ही हर साल रहस्यमय ढंग से आग लग जाती है। हुआ यह था कि जोखू उससे बेगार कराने और उसकी पत्नी के साथ जबरिया दुराचार करने के पादाश में प्रतिशोध की भावना से हर साल पेट्रोल से भारत सिंह के घर आग लगाने लगा। पुलिस की सक्रियता से वह पकड़ा गया, तो पुलिस ने जोखू को वैकल्पिक व्यवस्था दी कि घर के बाहर बनी अस्थाई झोंपड़ी में आग लगा दिया करे। उसने भारत सिंह से आग से बचने के लिए ऐसी झोंपड़ी बनाने हर साल बनवाने को कहा।
चौथी कहानी का शीर्षक है “कोर्ट मार्शल”, जो मणिपुर के एक सैन्य अभियान पर आधारित है। मार्च के दौरान फौजी दया दल से छूट जाता है और विद्रोहियों की एक महिला मुख़बिर उसके साथ लग जाती है, ताकि वह सैन्य गतिविधि की सूचना अपने गुर्गों को दे सके। दया विद्रोहियों के हमले में आहत हो जाता है और होश आने पर अपने को सैनिक अस्पताल में पाता है। उसका हथियार और गोला-बारूद विद्रोही लूट ले जाते हैं, लेकिन सेना द्वारा उसे लापरवाही एवं गोला-बारूद गुम करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया जाता है। ऊपर से उसका कोर्ट हुआ और सरकारी नुकसान की भरपाई उसकी भविष्य निधि से करने का आदेश जारी किया गया।
कहानी देशीय सुरक्षा के अमले की लापरवाही भरी कार्य प्रणाली को उजागर करने में किंचित विलंब नहीं करती।
अगली कहानी “हेड हंटर्स” जनजातीय पृष्ठभूमि पर आधारित होने के साथ पाठकों को उस दौर में ले जाती है, जब क़बीलों में संगीन अदावतें होती थीं और दोनों पक्ष के लोग एक दूसरे के ख़ून के प्यासे होते थे। ऐसे ही लोंगवा और लोंगवास नाम के नागाओं के दो दो गांव थे। जब जिसको मौक़ा मिलता, दूसरे गांव पर चढ़ाई कर सिर काट ले जाते थे। जिस आदमी के पास सबसे अधिक कटे सिर होते, वही गांव के राजा घोषित कर दिया जाता। लोंगवा के अपु ओर चेतिया नामक दो बलिष्ठ नवजवान लोंगवास के लोगों का सिर काटने निकले, तो चेतिया ने छल छद्म अपनाकर सैकड़ों कटे सिरों के साथ अपने गांव लौटा। फिर रानी की सूझबूझ से लोगों ने शपथ ली कि आज के बाद कोई एक दूसरे गांव के लोगों का सिर कलम करने के लिए अपने योद्धा नहीं भेजेगा। पूरी कहानी बड़ी रोमांचक और दिलकश है।
छठी कहानी “लंगड़ी” मर्मस्पर्शी होने के साथ भावात्मक है। मिज़ोरम के धरातल पर करीने से बुनी गई यह कहानी प्रेम में ठगे जाने से उत्पन्न टीस और लंगड़ी के प्रेम व लगाव की निर्मलता का बयान है। बिहार का ननकू मज़दूरी के निमित्त मिजोरम जाता है, जहां एक गांव की आदिवासी महिला मसांगी से उसकी आशनाई हो जाती है, तो वहां की जनजातीय परंपरा के अनुपालन में उसकी उसके साथ शादी कर दी जाती है। ननकू वहीं रहने लगते है और दो बच्चियों का पिता बन जाता है। एक पांव की कमज़ोर मसांगी बड़ी जीवटवाली महिला थी। ननकू साल में एकाध बार बिहार जाता और हफ़्ते दस रोज़ में वापस आ जाता। मगर एक बार जब वह अपने गांव गया, तो लौट कर नहीं आया। मसांगी प्रतीक्षारत है। वह बिला नागा हर रोज़ आइजॉल से आनेवाली बस को देखने जाती है कि शायद ननकू आया हो।
“थर्ड स्टेज ऑफ सिविलाइजेशन” में टाइम मशीन में बैठकर टाइम ट्रैवल करके आगे की दुनिया की कल्पना बडे़ ही दिलचस्प अंदाज़ में की गई है। वस्तुतः इसके द्वारा भूतकाल की यात्रा असंभव है, लेकिन भविष्य में जाया जा सकता है। इस कथा में जीवन के संरक्षण की तदबीर भी सुझाई गई है। इस सिलसिले में कथा के ये शब्द विशेष रूप से ध्यातव्य हैं –
“सब लोग अपना सारा सामान छोड़कर जल्दी अपनी-अपनी बिल्डिगों की छत पर आ जाओ। स्टोर करके रखे गए सारे परमाणु हथियारों में अपने आप चाल शुरू हो गई है। वे कुछ ही देर में फट जाएंगे। सबकी छतों पर वर्म होल भेज दिए गए हैं। जल्दी से उनमें बैठकर दूसरे ग्रहों के लिए निकलो… जिससे जितना जल्दी हो सकता है, उतना जल्दी करो।” ( पृष्ठ 53 )
आठवीं कहानी “विचेज केव” एक कौतुक कथा है। रानी कौतुकी अपने दलबल के साथ रहस्यमय ढंग से लापता हो जाती है। मणिपुर राज्य पर केंद्रित इस कथा को ऐतिहासिक पुट देने का प्रयास किया गया है, जो कथानक को जटिल, बोझिल और शिल्प से बहिष्कृत होने से बचता है। इसमेंं जनजातीय रहन-सहन एवं परंपराओं का भरपूर चित्रण करने का प्रयास किया गया है।
मनुष्य का सद्व्यवहार ही सब कुछ है। यह सभी चीज़ों पर भारी पड़ता है। जिस कुरूपा रवीना को छात्र विश्व सुंदरी कहकर चिढ़ाते थे, उसने छात्र विनय की उस समय मदद की, जब वह नौकरी के वास्ते परीक्षा देते गया था और वह सर्विस में थी। ट्रेन में विनय की पाकेटमारी हो चुकी थी। वह परेशानहाल था। उसके सद्व्यवहार से विनय क़ायल हो गया कि वह वाकई “विश्वसुंदरी” है ! “विश्वसुंदरी” कहानी का यह थीम नाक-नक्श के झूठे घमंड को झुठलाता है।
दसवीं कहानी “जूते” परिवार के मुखिया के दायित्वों एवं मन:स्थितियों को उकेरने में कामयाब है। वह एक ही सेट जूते की सिलाई और पैवंदकारी करके अपना काम चलाते हैं। बेटा जब नया जूता लाकर देता है, तो उसे अपने भाई के हवाले कर देते हैं। अपनी अभावग्रस्तता को परिवार के दूसरों लोगों पर तरजीह देकर स्वयं खुश रहना उनके सफल जीवन का मूलमंत्र है।
“अहम की लड़ाई” ग्रामीण परिप्रेक्ष्य की गाथा है। पंडित का लड़का दीनानाथ जब हाई स्कूल नहीं पास कर सका, तो लखनऊ में जाकर एक मंदिर में शरण लेने में ही भलाई समझी। वह उसके पांडित्य की धाक जम गई। वह पुरोहित बन गया। उसकी शादी राधा से हो जाती है, जो गांव पर रहती है। दीनानाथ हर महीने दो-चार दिन के लिए घर पहुंच जाया करता था। फिर सास-बहू में ठकठक शुरू हुई, जिसके नतीजे में राधा अपनें मायके चली गई। उससे दो बेटियां भी थीं। दीनानाथ को यह नागवार लगा, तो अपनी ससुराल पहुंच गए, लेकिन वहां भी बेरुखी दिखाई गई, तो उन्होंने आत्महत्या कर ली। इस दुखांत कथा से प्रेम की चरम मानसिकता को सहज ही समझा जा सकता है।
बारहवीं कहानी “सबक” भूत-प्रेत के अंधविश्वास का अंत करती है। बहड़ू को लल्लन और सरजू ने भूत बनकर डराया। आज के मॉडर्न युग में गांव ही क्या शहरों तक में इसका घोर प्रकोप है ! लेकिन अंतर यह है कि गांव में यह लोगों की ज़ुबान पर सुगमता से चढ़ जाता है और लल्लन और सरजू को आम बीनने/ चुराने में मदद करता है !
अगली कहानी “गृह क्लेश” गांव के सामान्य गरीब परिवार का घरेलू टंटा है, जो परदेस कमाने गए बेचन की पत्नी को निशाना बनाता है। सास और घरवाले उसे सताने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रखते।
“एक दिन की आशिक़ी” अति शिक्षाप्रद है। लुटेरे चकमा देकर एक आशिक़ मिज़ाज के घर में उसके स्वभाव के अनुरूप बहाना बनाकर ठहर जाते हैं और उसके माल असबाब को सफाचट कर देते हैं। “जबरा पहाड़िया” राजमहल, झारखंड के तिलका मांझी ( 11फरवरी 1750 – 13 फरवरी 1785 ) की दास्तान है, जिन्होंने अंग्रेजी सरकार से लोहा लिया था। कथाकार ने इन्हें प्रथम स्वाधीनता संग्राम सेनानी तस्लीम किया है।
“इमलिया” में इमलिया और बेचन के प्रेम में पुलिस ने रखना डाल दिया। वह बेचन को उठा ले गई, तो वह भी जीप के पीछे पीछे दौड़ी और अपने जीवन का अंत कर लिया। उसका क्षत विक्षत शव थाने के निकास द्वार पर मिला। बेचन ने इमलिया माई का निर्माण किया और वह पूजित हो गई ! पता चला, अंधविश्वास सिर चढ़कर बोलता है। बस उसे व्यावसायिक रूप देने की ज़रूरत है !
अंतिम कहानी “शिगूफ़ा” भी पारिवारिक है। गंवई पृष्ठभूमि की गाथा है। रामधन और गुड्डी की शादी हो जाती है, लेकिन दोनों निकट होने के कारण गौने से पूर्व ही मिलने लगते हैं। जब यह चर्चा फैलती है, तो निर्धारित समय से पूर्व गुड्डी विदा होकर रामधन के यहां आ जाती है, जहां कुछ समय बाद सोने के गहने बनवाने की मांग को लेकर उसकी पति से खटपट होने लगती है। एक दिन वह नदी में कूदने का ड्रामा करती है। इसमेें पुलिस भी आ धमकती है, जिसे वह उलाहना देती है और पुलिस को जाने के लिए कहती है। पुलिस हाथ मलती रह जाती है कि एक मोटा असामी हाथ से निकल गया।
कहानी संग्रह की सभी कहानियां अपने आपमें उद्देश्यपरक और शिक्षाप्रद हैं ही, वाग्जाल से परे रहकर अपने कथ्य और तथ्य को खुलकर स्पष्ट करती हैं, अन्यथा आज के युग की अधिकतर कहानियां, कविताओं की भांति बासी, निस्तेज और गुत्थमगुत्था इतनी उलझी हुई कि पाठक के पल्ले कुछ नहीं पड़ता !
“शिगूफ़ा” के कथाकार को ढेर सारी शुभकामनाएं ! आशा है कि लेखक की ऐसी और इनसे भी उत्कृष्ट रचनाएं हिंदी साहित्य जगत को पढ़ने को मिलती रहेंगी।
_ Dr RP Srivastava
Editor-in- Chief “Bharatiya Sanvad”