ज्वारभाटा आया और तेज़ी के साथ चला भी गया | मूँगे, घोंघे, मछली, सीप और कछुए आदि की जातियों – प्रजातियों को रेतीला आवास देकर वापस हो गया ! अब बहुत – से भुक्खड़ पक्षी, जिनमें कौए अधिक थे, टूट पड़े और ‘ जीवः जीवस्य भोजनम ‘ की उक्ति साकार करने लगे | एक बूढ़ा मगर पेटू कौआ भी उनमें था | हर बार की तरह वह पेट की रियायत न करते हुए इतना गटक गया कि न उगलते बन पड़ रहा था न निगलते | लेकिन इस बार उसे चिकित्सक की ज़रूरत पड़ गई |
उसके परिजनों ने उसे चिकित्सक के पास पहुँचाया | उपचार शुरू हुआ | चिकित्सक ने बताया कि उम्र का तक़ाज़ा है, पर इतना कैसे गटक गया ? यह ज़रूर आश्चर्य का विषय है | इसी बीच वे पक्षी भी पहुँच गए, जो अधिक गटकने के कारण अपना हक़ छिनने पर विरोध – आपत्ति कर रहे थे | ऐसे में तनाव बढ़ना ही था |
पुलिस बुलाई गई | बूढ़े – पेटू – कनखिया कौए ने अपने को अपने द्वारा ही बनाए गए ताने – बाने में फँसा पाया ! उसकी तबियत थोड़ी संभलते ही चिकित्सक – कक्ष में ही पुलिस ने उससे पूछताछ शुरू करने का प्रयास किया, तो चिकित्सक महोदय ने कहा, ‘इन महाशय की सच्चरित्रता मशहूर है, अतः पूछताछ न की जाए | यह इनके सम्मान का भी प्रश्न है |’
पुलिस ने साफ इन्कार किया और पूछताछ शुरू की | इस बीच चालाक कौए ने अपना ‘माइंड सेट’ कर लिया था | कहने लगा,’मैं तो कभी ज्वारभाटा क्षेत्र में गया ही नहीं | मुझे पता नहीं कि किसने किसका हक़ मारा ?’ इसी बीच कौए के जो समर्थक पधार चुके थे, नारे लगाने लगे, ”नेता जी जिंदाबाद !” पुलिस चली गई और बिलआख़िर उसे जाना ही था |
– राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘
[ जीवन में पहली बार किरायेदार बनाने का अनुभव लघुकथा के शब्दों में, जो 2009 ई. में प्रकाशित ]