बलरामपुर के मशहूर ग़ज़लगो सुरेंद्र ‘विमल’ जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे हमारे दिलों में आज भी ज़िन्दा हैं , ख़ासकर अपनी पुरकशिश, मानीख़ेज़ शेअरों की बदौलत   ….. लीजिए ‘विमल’ जी की एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए – [ विमल जी का रेखाचित्र अनुज भैया कुमार पीयूष जी की फेसबुक वाल से ]

 

ग़ज़ल

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उस शोख़ की हर बात में इक बात लगे है

वो दिन को कहे रात तो फिर रात लगे है |

मजमा है डिमोक्रेसी का अब देखिए क्या हो

यह भीड़ महादेव की बारात लगे है |

अब आईने ही चेहरों से कतराने लगे हैं

यह सीन तुझे कैसा अकस्मात लगे है |

गँगा – सी नदी जाके समंदर से मिले जब

घटती हुई कुछ उसकी ही औक़ात लगे है |

मत पूछ ‘विमल’ मुझसे निगाहों का असर आज

रँगीन – सी कुछ तल्ख़ी – ए हालात लगे है |

[ ”परिवेश”, हिंदी मासिक, जुलाई 1983, पृष्ठ 18, प्रधान संपादक / प्रकाशक – राम पाल श्रीवास्तव, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश ]

 

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