trahimam yuge yuge
उपन्यास ‘त्राहिमाम युगे युगे’ को पढ़ने और उस पर पाठकीय प्रतिक्रिया लिखने का अवसर मिला | ‘त्राहिमाम युगे युगे’ एक उपन्यास है जिसे जनपद बलरामपुर में जन्मे श्री रामपाल श्रीवास्तव ने लिखा है । उपन्यास का मुख्य पात्र माधवकांत सिन्हा है जो देश के एक नामी मीडिया समूह में कार्यरत है । कार्यालय इन्हें जिम्मेदारी देता है कि आम आदमी के संघर्ष पर साहित्यिक कृति तैयार करें । इस क्रम में सिन्हा अपने दो दोस्तों के साथ उत्तर प्रदेश के जिला बलरामपुर के ग्रामीण अंचल में जाकर आमजन के संघर्ष को पुस्तक के रूप में लिखता है । पुस्तक उत्कृष्ट पाई जाती है और इसे न्यूयार्क में एक प्रतिष्ठित सम्मान दिए जाने की घोषणा हो जाती है । पुरस्कार ग्रहण करने के लिए माधवकांत अपने दो सह-लेखकों के साथ हवाई जहाज से रवाना होता है परंतु न्यूयार्क पहुंचने से पहले ही विमान दुर्घटना में ये सभी मारे जाते है और उपन्यास भी यहीं समाप्त हो जाता है । इस प्रकार यह दुखांत माना जा सकता है ।
माधवकांत सिन्हा उसी ग्रामीण इलाके में जाकर जमीनी कहानियां तलाशता है जिसमें इस उपन्यास के लेखक श्री रामपाल श्रीवास्तव ने जन्म लिया । एक तरीके से उन्होंने अपने गांव में महसूस किए अनुभव अपने उपन्यास ‘त्राहिमाम युगे युगे’ में मुख्य पात्र माधवकांत सिन्हा के जरिए व्यक्त किए हैं । उपन्यास में कुल सोलह अध्याय हैं या कहिए सोलह खंड हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं कीरति भनिति भूति भलि सोई, भुलवा की मौत, खैरमान की जलसमाधि, कुरअअंदाजी, विरासत की दौड़, दो पाटन के बीच में, जिंदगी का जंगनामा, ये कहानी फिर सही, किताब चोर, किंचा भर विकास, अभी पसंगा है, चार्वाक जिंदा है, जमाने से पंगा, सदियों ने सजा पाई, जात ही पूछो साधु की, त्राहिमाम युगे युगे ।
जब आदमी व्यवसाय के सिलसिले में घर से बाहर निकलता है और अनजान लोगों के बीच नए व्यक्ति के रूप में काम करता है तो उसे अनेक कड़वी सच्चाईयों का सामना करना पड़ता है । कदम-कदम पर झूठे, मक्कार, स्वार्थी और फरेबी लोगों से पाला पड़ता है । प्रस्तुत उपन्यास में इन मनोभावों का सुन्दर चित्रण किया गया है । उपन्यास का पात्र का जन्म गांव में हुआ और बाद में वह शहर में जाकर बस जाता है । इस तरह उपन्यास में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेश की बातें जानने का अवसर मिलता है । उपन्यास काल्पनिक घटनाओं और पात्रों के सहारे रचा गया है परंतु इसमें लेखक श्री रामपाल श्रीवास्तव के व्यक्तिगत अनुभव सुस्पष्ट दिखाई पड़ते हैं । बल्कि ‘दो बात’ नामक शीर्षक से लिखे गए लेखकीय उद्बोधन में लेखक ने इस ओर इशारा भी किया है ।
लेखक श्री रामपाल श्रीवास्तव ने अपने जीवन का बहुमूल्य समय प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में पत्रकार और संपादक के रूप में व्यतीत किया । यहाँ का अनुभव और विविध विषयों पर पैनी नजर की छाप आपके लेखन में भी दिखती है । इनकी आठ पुस्तकें प्रकाशित हैं। जिस प्रकार आप की गति और ज्ञान हिन्दी और अंग्रेजी में है वैसा ही आप उर्दू में भी रखते हैं ।
पुस्तक की भाषा सरल और सहज है । पात्रों के संवाद संक्षिप्त और प्रभावशाली हैं । उर्दू के शब्दों का काफी प्रयोग किया गया है इनमें कुछ का अर्थ शब्दकोश से ही पता चल पाता है । परन्तु एक बार इस उपन्यास को पढ़ना शुरु कर दिया जाय तो पाठक कथा में डूब जाता है और पन्ने तेजी से समाप्त होते जाते हैं । इस उपन्यास को न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है । डिमाई आकार में प्रकाशित इस पुस्तक में 232 पृष्ठ हैं । मूल्य चार सौ पच्चीस रुपए रखा गया है ।
समीक्षक –इं० हेमन्त कुमार
फीना-बिजनौर (उ०प्र०)

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