“त्राहिमाम युगे युगे” सच्चाई से रूबरू कराता एक उपन्यास:-जाने माने पत्रकार,कवि,लेखक,अनुवादक व हिंदी,उर्दू,फ़ारसी भाषाओं के सिद्धहस्त कलमकार श्री रामपाल श्रीवास्तव की न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली से सद्यः प्रकाशित उपन्यास”त्राहिमाम युगे युगे”पढ़ने को मिला।रोचक भाषा शैली व आमजन के सरोकारों से जुड़े विषय वस्तु के कारण जिज्ञाशा जगी तो पढ़ता ही चला गया। उपन्यास का विषय अपने ग्रामीण अंचल का होने के कारण बहुत रोचक बन पड़ा है। बलरामपुर जनपद के पश्चिमी व उत्तरी छोर पर वन व पर्वत घाटियों में बसे गांवों व वहां के जलाशयों,पहाड़ी नालों,वन संपदा तथा असुविधाओं की पड़ताल करती ये पुस्तक लेखक के जन्मस्थान मैनडीह गांव व आसपास के क्षेत्रों की वर्तमान दशा का पड़ताल तो करती ही है साथ ही दबंगों व सरकारी तंत्र की मिलीभगत से आमजन के अधिकारों का हनन व सुविधाओं के दुरुपयोग का कच्चा चिट्ठा भी खोल रही है।किस प्रकार पुलिस बाहर से आये राइटर अब्दुल्ला जैसे बेगुनाहों को आतंकवादी बनाकर जेलों में भेजकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर वाह वाही लूट रही है उसका भी मार्मिक चित्रण इस उपन्न्यास में मिलता है।गांवों की दुर्दशा मसलन शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क,बिजली,पानी ,सिंचाई का बेबाकी और साफगोई से वर्णन हुआ है।प्राकृतिक संपदाओं का सामंतशाही की भेंट चढ़ना बड़ी हिम्मत के साथ दर्शाया गया है।पुराने जलाशयों खैरमान,भुलवा नाले व जंगल का विनाश ताकतवरों द्वारा किया गया है वह सब इसमें पढ़ने व जानने को मिलता है।पुरानी सामाजिक व्यवस्था व उसमें आये बदलाव,मेहमान नवाजी,ग्रामीणों का भोलापन,सरकारी स्कूलों की दशा व सामाजिक ताने बाने में आये परिवर्तनों की बहुत बारीकी से पड़ताल की गई है।
श्रीवास्तव जी ने “ये कहानी फिर सही”व जाति न पूछो साधु की” इसीप्रकार ‘किताब चोर’, “चार्वाक ज़िंदा है”जैसे शीर्षक द्वारा उन बातों का वर्णन किया है, जिनका दिग्दर्शन आज भी अपने गांवों में हो रहा है ।शहरी लोगों को इसके बारे में शायद कुछ भी ज्ञात नहीं।चूंकि श्रीवास्तव जी ज़ीरो ग्राउंड पर रह कर लिख रहे हैं इसलिए उनकी बातों में सच्चाई का बोल बाला है।कुल मिला कर यह उपन्यास बलरामपुर जनपद के गांवों की संस्कृति,सभ्यता,आर्थिक स्थिति,शिक्षा,रोजगार,समरसता, प्रगति व उनके भविष्य की ओर बड़ी ही सतर्कता के साथ झांकने का प्रयास करता है।कुल मिलाकर “त्राहिमाम युगे युगे”अपने नाम को सार्थक करता प्रतीत हुआ।यह उपन्यास अपने पाठक के ज्ञान में वृद्धि,सावधानी व संवेदना का संचार करने वाला है।लोगों को ऐसी पुस्तकें अवश्य ही पढ़नी चाहिए।लेखक के प्रति आदर व सम्मान भाव के साथ अगली पुस्तक की प्रतीक्षा में:…
    –  डॉ०ओम प्रकाश मिश्र’प्रकाश’
[ राष्ट्रीय कवि एवं पूर्व प्रधानाचार्य,बसंत लाल इंटर कालेज तुलसीपुर-बलरामपुर।12/12/24-गरुवार ]

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