कभी नहीं चाहा था
वह बदनुमा त्रिविष्टप
शील – शुचिता, मर्यादा रहित
उच्छृंखल, उद्दंड
विलासी समाज
त्रिविष्टप सरीखा
जो स्वर्ग होकर भी नरक बना !
आर्यावर्त की पांचाली संस्कृति का
मूक गवाह बना !
शायद इसीलिए
त्रिपुरारी शिव ने
न त्रिविष्टप रीति को पसंद किया
न ही आर्यावर्त कुनीति को आसंग किया
इसलिए अर्धनारीश्वर बना डाला अपने आपको
समानता – आदर्श बना डाला अपने आपको
अंगों, कामेन्द्रियों का स्वामी बनाया पुरुष को
नारी बनी अर्धांग नर
नर बना अर्धांग नारी !
पार्वती मुस्करायीं
बोलीं –
क्या ख़ूब रचना की भोले आपने !
चार हाथ, चार पैर, चार स्तन, चार कान
दो सिर, दो पेट ……..
अलग – अलग आकृतियों के युग्म बनाए आपने
यह तो ग़ज़ब हुआ !
पूर्ण चमत्कार कर दिया आपने
प्रकृति के अन्याय को दूर कर दिया आपने
नारी के अन्याय को परे कर दिया आपने
क्या ख़ूब आदर्श, सिद्धांत दिए आपने
कथनी को करनी में बदला आपने
अति धन्य हैं आप
ध्रुवतारा सदृश हैं आप
सारे संसार का पथ – प्रदर्शन किया आपने !
—-
शिवजी ने जानना चाहा –
देवी, क्या अभी भी कोई शंका है,
जब इतनी समानता है ?
पार्वती जी ने आक्षेप किया –
व्यावहारिक कठिनाइयों की ओर
नहीं ध्यान दिया आपने !
इस कहावत को टाल दिया आपने –
” अनायका विनश्यन्ति नश्यान्ति बहुनायकः ”
मानती हूँ, अर्धनारीश्वर आपको
किन्तु आप समझिए नारी के संताप को
मुखिया पुरुष हो तो नारी का स्थान नीचा …..
अर्धनारीश्वर बोले –
देवी, आपकी कीर्ति है निराली
आप जानती हैं मान – सम्मान
ऊँचाई – नीचाई कहाँ दाम्पत्य जीवन में ?
जब हो प्रेम की अभिन्नता पग – पग में
द्वंदों से परे कौन, किसके अनुशासन में
भान भी नहीं होता ऐसे आँगन में !
जहाँ नर प्रमुख, नारी प्रमुख
संघर्ष का अवसर कहाँ जीवन में ?
एक के अनुभव का दूसरा लाभ उठाता है
जब एक की भावना हो तीव्र,
तो दूसरा सहज झुक जाता है
देवी, व्यावहारिक रूप देखिए मेरे जीवन में
सती ने जब अपने पीहर जाना चाहा
मैं सहमत नहीं था
फिर भी उनका चाहा
आज तक भोग रहा हूँ इसका कुफल
क्योंकि मैं हूँ अर्धनारीश्वर !
सहमत हुईं पार्वती
अश्रुपूरित नेत्रों और रुंधे गले से बोलीं –
बम – बम भोले !
आप महान हैं, आप महान हैं,
सच है
आप अर्धनारीश्वर हैं |
मुझे धन – वैभव नहीं चाहिए
अब हमारे साथ आप हैं
मैं आपके साथ – साथ रहूँगी
एकाकी भाव से
अहं, अहंकार,हठ, मोह सब छोड़कर
गर्व है
हम अर्धनारीश्वर हैं |
– राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘
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त्रिविष्टप – एक स्वर्ग / देवलोक का नाम, कुछ विद्वानों ने तिब्बत बताया है |
अनायका विनश्यन्ति नश्यान्ति बहुनायकः- जहाँ कोई मुखिया नहीं होता,वहाँ बर्बादी हो जाती है और जहाँ बहुत – से मुखिया होते हैं, वहाँ भी बर्बादी हो जाती है |