आख़िर यह पुस्तक क्यों पढ़ी जाए ? इसके जवाब में यह बात आसानी से कही जा सकती है कि डेल कार्नेगी की विश्व प्रसिद्ध पुस्तक, जिसकी अब तक तीन करोड़ से अधिक प्रतियां छप चुकी हैं, ऐसी नहीं हर वह व्यक्ति न पढ़े जो प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला की खोज में हो | इस प्रकार ” लोक व्यवहार – प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला ” हर उस व्यक्ति की पुस्तक बन जाती है, जो अपने व्यक्तिगत का विकास करना चाहते हैं | सवाल है कि क्या कोई व्यक्ति ऐसा है जो अपने निज का विकास नहीं करना चाहता, उसे निखारना नहीं चाहता | शायद मनुष्यता का भाव रखनेवाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं | लेकिन यहां अपवाद भी है | डेल कार्नेगी अपने जिस मित्र को यह पुस्तक समर्पित करते हैं, उसके बारे में लिखते हैं, ” यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति को समर्पित है, जिसे यह पुस्तक पढ़ने की ज़रूरत नहीं है – मेरे प्रिय मित्र होमर क्रॉय को |”
यह पुस्तक लेखक की अंग्रेज़ी पुस्तक ” हाउ टू विन फ्रेंड्स इन्फ्लूंस पीपल ” का हिंदी अनुवाद है, जो डॉ. सुधीर दीक्षित द्वारा अनूदित है | यह पुस्तक मंजुल पब्लिशिंग हाउस, 42, मालवीय नगर, भोपाल – 462003 द्वारा प्रकाशित की गई है | 125 रुपए प्रति कॉपी वाली
साढ़े तीन सौ पृष्ठ की इस पुस्तक को जब मैंने पढ़ने का मन बनाया, तो ऐसा लगा कि यह सिर्फ़ लोक नेता बनने के इच्छुक लोगों के लिए है, लेकिन प्रस्तावना पढ़ते ही यह पूर्व धारणा काफ़ूर हो गई | संशोधित संस्करण की प्रस्तावना डेल कार्नेगी की पत्नी डोरोथी कार्नेगी ने लिखी है | वे लिखती हैं, ” दरअसल इस [ पुस्तक ] ने जनमानस की ऐसी नस को छुआ है, एक ऐसी इंसानी ज़रूरत को पूरा किया है कि यह आधी सदी बाद भी लगातार बिक रही है | ”
डेल कार्नेगी अपनी प्रस्तावना में लिखते हैं, ” केवल तकनीकी ज्ञान या योग्यता के लिए आप किसी भी इंजीनियर,एकाउंटेंट, आर्किटेक्ट को
नाममात्र की तनख़्वाह पर नौकरी पर रख सकते हैं | परन्तु किसी व्यक्ति में तकनीकी ज्ञान है, अपने विचारों को व्यक्त करने की कला है, लीडर बनने की योग्यता है और लोगों में उत्साह भरने की क्षमता है – तो उसकी तनख़्वाह निश्चित रूप रूप से अधिक होगी | ”
इस तरह हम पाते हैं कि यह पुस्तक कैरियर – निर्माण की भी पुस्तक है | ” अपने सबसे सफल दौर में जॉन डी. रॉकफ़ेलर ने कहा था, ” लोगों से व्यवहार करने की कला भी उसी तरह ख़रीदी जानेवाली एक वस्तु है जैसे कि शकर या कॉफ़ी |” [ संस्करण 1936 ई. ]
यह पुस्तक कर्म के बारे में है | यह एक एक्शन बुक है | लेकिन यह भी सच है कि इस पुस्तक से अधिकतम लाभ लेने के लिए आपको मानवीय संबंधों के सिद्धांतों को सीखने की प्रबल और गहरी इच्छा विकसित करनी होगी |
मुझे पुस्तक में यह अध्याय काफ़ी रुचिकर लगा, बल्कि यूँ कहें कि दिल को छू गया | इस पहले ही अध्याय का नाम है – ” अगर शहद इकट्ठा करना हो, तो मधुमक्खी के छत्ते पर लात न मारें ” – इस अध्याय में लेखक की यह बात दिल को छू गई कि ” हर ग़लत काम करनेवाला अपनी ग़लती के लिए दूसरों को दोष देता है | परिस्थितियों को दोष देता है, परन्तु खुद को दोष नहीं देता |” इस अध्याय का सार यह है कि ” बुराई मत करो, निंदा मत करो, शिकायत मत करो |”
पुस्तक का दूसरा अध्याय भी बड़ा रोचक है | तारीफ में लोग अतिशयोक्ति करते हैं, मुबालगे से काम लेते हैं | एहतियात नहीं करते | इस अध्याय में मौलिक तथ्य यह उजागर किया गया है कि ” सच्ची तारीफ़ करने की आदत डालें |” तीसरा अध्याय सामनेवाले में प्रबल इच्छा जगाने पर आधारित है | अगला अध्याय दूसरों में दिल से रुचि लेने पर है | लेखक ने एक अध्याय मुस्कराने पर लिखा है, जो भी महत्वपूर्ण है | दूसरों के काम आना, दूसरों को ख़ुद के बारे में बातें करने के लिए प्रोत्साहित करना, सामने वाले व्यक्ति की रुचि के विषय में बात करना और सामनेवाले व्यक्ति को महत्वपूर्ण अनुभव ईमानदारी से कराने को सफल इंसान का बेहतर गुण बताया गया है | बहस से बचने की सलाह लोगों के दिलों को जीतने का एक बड़ा हथियार बताया गया है, जिससे असहमत हुआ जा सकता है | मेरे ख़याल से एक सीमा तक सार्थक बहस तो की ही जानी चाहिए | कठहुज्जती से ज़रूर बचा जाना चाहिए |
लेखक की एक और सलाह दूसरे व्यक्ति के विचारों के प्रति सम्मान दिखाने की है | लेखक के अनुसार यह कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि ” आप ग़लत हैं | ”
दिलचस्प शैली और सरल अंदाज़ में लिखी गई यह पुस्तक केवल एक पुस्तक भर नहीं है। इसने जाने कितने लोगों का जीवन बदला है और आज भी बदल रही है। पुस्तक का एक अध्याय इस गुर पर आधारित है कि अगर ग़लती आपकी हो, तो फ़ौरन मान लें | इससे आपका क़द बढ़ेगा | ” लड़ने से आपको पर्याप्त नहीं मिलता, परन्तु हार मान लेने से आपको उम्मीद से ज़्यादा मिलता है |”
” शहद की बूंद” शीर्षक अध्याय बड़ा दिलचस्प है | यह ग़ुस्से पर कंट्रोल का गुर सिखाता है | हर बातचीत दोस्ताना तरीक़े से करें | लिंकन कहा करते थे कि ” एक गैलन सिरके के बजाय शहद की एक बूंद से ज़्यादा मक्खियां पकड़ी जा सकती हैं |” लोगों को प्रभावित करने का एक बड़ा गुर यह भी है कि लोगों से बातचीत शुरू करते समय आप अपने मतभेदों का ज़िक्र पहले न करें | सिर्फ़ सहमत बातों पर ही ज़ोर देते रहिए | सामनेवाले व्यक्ति सर ” हाँ – हाँ ” कहलवाते रहिए | यही सुकरात का स्टाइल था, जो विश्व के सबसे बड़े दुर्लभ दार्शनिक थे | असहमति को सहमति में लाने के माहिर थे |
शिकायतों से निपटने का आसान तरीक़ा यह है कि शिकायतकर्ता को अधिक बातें करने दें | ईमानदारी से सामनेवाले व्यक्ति का नज़रिया समझने की कोशिश करें | आदर्शवादी सिद्धांतों का सहारा लें |
पुस्तक में एक स्थान पर यह बात भी कही गई है कि अपने विचारों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करें | जब कुछ काम न आए तो चुनौती दें | लेकिन लोगों को उनकी गलतियां सीधे तौर पर न बताएं | पहले अपनी गलतियां बताएं | बुरे को भला नाम देने की कोशिश करें | लोगों को प्रोत्साहित करें | यह बताएं कि गलतियां सुधारना आसान है | खुले मन से लोगों की सराहना करें |
इस पुस्तक में न के बराबर प्रूफ़ की गलतियां हैं | अनुवाद बोझल नहीं | कठिन स्थलों पर भी भाषा को बेहद आसान रखा गया है | पुस्तक पठनीय ही नहीं मननीय है | वास्तव में यह पुस्तक दिलचस्प शैली और सरल भाषा में पाठकों को जनसामान्य से जुड़ने के अचूक तरीके बताती है। जो प्रत्येक पाठक को जीवन जीने की कला को विकसित करती है |
-Dr RP Srivastava, Editor – in Chief ” Bharatiya Sanvad ”