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उनकी गहरी मित्रता मुंशी प्रेमचन्द जी के साथ थी। निगम जी व्यक्तित्व की धनी व्यक्ति थे। उन्हे हिन्दी, उर्दू, फारसी, बांग्ला, गुजराती, मराठी इत्यादि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त था।पुस्तकों के प्रकाशन एवं पत्रकारिता के अलावा उन्होंने समाज सुधारक के रूप में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आवाज उठाई है। जिसमें से विधवा विवाह, अन्तर्जातीय विवाह इत्यादि विषय शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने कई सामाजिक कुरीतियों पर जमकर आवाज उठाई। मंशी दयानारायण निगम के स्वयं के द्वारा लिखे पत्र भी जमाना नामक पत्रिका में छपते थे। मुंशी दयानारायण निगम का निधन 1942 में हुआ था।