बहुत – सी यादों , घटनाओं
घपले – घोटालों
दमन – व्यथाओं
क्रूरताओं – पीड़ाओं
सुखद – दुखद क्षणों
आशाओं – आकांक्षाओं
को छोड़कर
अपने जीवन की अंतिम
घड़ी में है मेरा
वर्तमान वर्ष
अहा ,… अंतिम साँस के साथ तू भी
चला जाएगा स्मृतियों के साथ
यह याद दिलाकर कि
जीवन – संगी कोई नहीं
कोई नहीं जो साथ – साथ चल सके
कर्मागत भी आवश्यकतानुसार है
खैर , कोई बात नहीं
हम अपनी जीवन – यात्रा
ख़ुद तय कर लेंगे
नवविहान भी ख़ुद बनायेंगे
अभावों में ही सही
पीड़ाएं , अपमान
सहकर भी
क्योंकि , हम भारतीय हैं
भारत – माता की संतति हैं .
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‘कोमल वर्ग’ के निर्मम दमन ने
मुझे भी गहरे ज़ख्म दिए हैं
मानवता को शर्मसारी तक पहुँचाया है
चेतना भी इसी ने जगाई है
अमर वेलि लगाई है
इतना कुछ करके जा रहा वर्ष
नूतन वर्ष की प्रतीक्षा में
नवकाल के सम्मान में !
और आवेग भरने !
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मगर लड़ाई तो शेष है
पर किस – किससे लड़ेंगे ?
कई महाज़ हैं खुले हुए
भूखे पेट , लटकती आंतें
सूखते ओजस
तपस्वी – सा मेरा जीवन
फिर भी मैं लडूंगा … मैं
हमें तो सभी जंगें जीतनी हैं
क्योंकि , हम भारतीय हैं
भारत – माता की संतति हैं .
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उफ़ ,.. बढ़ती महंगाई की
सरकारी सौग़ात !
बदली इंसानी गात
चेहरे हुए ज़र्द
तभी तो हमारे बीच
घुस आये दरिन्दे !
पहचान का एक महासंकट
आसन्न है मेरे मित्रो !
ऊपर से अपसंस्कृति की यह आंधी
जो उजाड़ चुकी है मेरे माथे का छत्र भी
भाल – मुकुट धूल – धूसरित हो चुका है
बहुत – कुछ जा चुका है ……
नैतिकता , मर्यादा
शील – शुचिता की खोज में
पूरे वर्ष भटकता रहा
दर – दर
यह जानते हुए कि
सबका पानी मर चुका है .
बस अलविदा तुम्हें !
तेरे सभी वंशजों को भी !!
उस काल को भी जो तेरी देह में बसा था !!!
अलविदा , अलविदा , अलविदा .
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मुझे तो है आगे चलना
तुझे श्रद्धांजलि देकर आगे बढ़ना
मैं ठहर सकता नहीं
क्योंकि , मैं भारतवासी हूँ
घट – घट का वासी हूँ
जीवटता की मूरत हूँ
सभ्यता की सूरत हूँ
वह दर्पण हूँ
जिसे देख
सारी दुनिया हतप्रभ है
आख़िर वह मैं ही तो हूँ
वह दर्पण
जिसे तोड़ा है मैंने बार – बार
और शीशे भी बिखेरे हैं
वह भी अपने पैरों तले !
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अभी सिये हैं जो पल छिन
आत्मदीप बनकर
पर सादगी तो देखिए मेरी
जान नहीं पाया कि
दीप में कितनी जलन है
धूप में कितनी तपन है
छांव में कितनी ठिठुरन है
मेरे मित्रो , स्नेहियो !
आप ही बताइए
मेरा जीवन तो हवन है .
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अब गवाक्ष खोल दो
समय अनक़रीब है
मानस में पले सतरंगी पंखों के सहारे
फुदकने / बिहंसने लगा है
शीतल / मलयज काल
ठिठकने लगा है —
नवागत के स्वागत में
तथ्यों के जीवन – दृश्य उतरते
अम्बर को निरखने का यह अंदाज़
सचमुच कैलाश – शिखर है —
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स्वागतम , स्वागतम , स्वागतम
नवागत तेरा !!!
अब मैं स्वामी हूँ
अतीत हुआ मेरा
भविष्य है तेरा
अब चलूँगा तेरे साथ ही
” उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ”
आओ एक बार
फिर करें
तिमिर – प्रकाश की सवारी
सरेराह …. गंतव्य तक जाने को
वह ठिकाना भी आ जाएगा
जब इसी तरह
मैं भी दूर चला जाऊँगा
बहुत दूर
बहुरंगी शब्दों की दुनिया छोड़कर
जहाँ नये / पुराने वर्ष नहीं आते
बस काल ही काल होता है ….
– Dr RP Srivastava, Editor – in – Chief , ”Bharatiya Sanvad”