31 जुलाई 1880 ई. को महान साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनकी साहित्य सेवा अद्वितीय है और उनकी भारतीयता कालजयी ! कुछ लोग उन्हें अपने कृत्रिम ख़ानों में फिट करने की कोशिश करते हैं , जो बेमानी है। उनका साहित्य विराट है। व्यक्तित्व और कृतित्व में अंतर नहीं। वे किसी के विचार – केंद्र में नहीं क़ैद हो सकते और न क़ैद किए जा सकते हैं। प्रेमचंद साहित्य के मर्मज्ञ डॉक्टर कमल किशोर गोयनका कहते हैं कि प्रेमचंद को गांधीवाद और समाजवाद के आलोक में देखना चाहिए, जो अनुचित है। जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से लंबे अध्यापन कार्यकाल से मुक्त होनेवाले थे , लगभग तभी दैनिक जागरण ( दिल्ली ) में एक बहस और परिचर्चा चल रही थी , जिसमें प्रेमचंद की ग़रीबी ( ? ) और उन पर यह आरोप कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी में दहेज दिया था या नहीं आदि विषयों को लेकर तनातनी की कैफियत पैदा हो गई थी। गोयनका जी ग़रीबी की बात का खंडन करते और दहेज देने की बात सिद्ध करते। इन्हीं विषयों पर बातचीत के लिए मैंने उन्हें फोन किया। बहुत शालीनता और स्पष्टता के साथ उन्होंने मेरी बातों का उत्तर दिया, जो इंटरव्यू की शक्ल में छपा। वे प्रेमचंद को भारतीयता का लेखक मानते हैं। उनकी भारतीयता में हिंदूवाद,गांधीवाद, साम्यवाद आदि किसी न किसी रूप में समाविष्ट हैं। यद्यपि प्रेमचंद ने अपने को कम्युनिस्ट भी कहा है, लेकिन साथ ही यह भी कह दिया कि ” मेरा कम्युनिज्म गांधी का भी नहीं है। मेरा कम्युनिज्म है कि किसानों पर महाजनों का अत्याचार नहीं होना चाहिए।” अत्याचार का विरोध भारतीय परंपरा और विचारधारा है। विरोध करने मात्र से कोई कम्युनिस्ट नहीं हो जाता । प्रेमचंद आर्य समाज के सदस्य भी थे, जो सही अर्थों में राष्ट्रवाद का पोषक रहा है।
डॉक्टर गोयनका जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष हुए, तब मैं उनसे मिलने उनके दिल्ली के अशोक विहार स्थित आवास पर गया। इस भेंट में उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि प्रेमचंद के साहित्य में जो मूल्य आए हैं, वे भारतीय परंपरा से आए हैं, कार्ल मार्क्स या साम्यवाद से नहीं। प्रेमचंद साहित्य की प्रगतिवादी आलोचना भी घातक सिद्ध हुई है।
– Dr RPSrivastava, Editor-in-Chief, www.bharatiyasanvad.com