हिंदी और उर्दू साहित्य के दृढ़तम स्तंभ मुंशी प्रेम चंद शुरू से ही उच्चाधिकारियों के प्रति अति स्वाभिमानी थे | जब अगस्त 1916 ई. में प्रेम चंद का तबादला बस्ती से गोरखपुर के नार्मल स्कूल हो गया था, उन्हीं दिनों उनकी गाय अंग्रेज़ कलक्टर के अहाते में चली गई | कलक्टर ग़ुस्से में आ गया और गाय को गोली मारने की धमकी दी | उसने गाय के मालिक को तलब किया | इससे पहले कि कलक्टर का चपरासी प्रेम चंद के घर पहुँचता, कलक्टर के आवास के बाहर दो – ढाई सौ आदमी इकट्ठे हो गए और विरोध प्रकट करने लगे | इन लोगों ने कलक्टर को धमकी दी कि ” अगर गोवध हुआ तो हंगामा हो जाएगा | ” भीड़ का हल्ला – गुल्ला सुनकर प्रेम चंद वहां पहुंचे | वाद – विवाद जारी था | प्रेम चंद ने जनसमूह की बातें ध्यान से सुनीं और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, ”गौ बहुत अच्छा जानवर है , मगर उसके मरने पर इतनी आपत्ति की कोई ज़रूरत नहीं !”
” वाह साहब, जब मुसलमान गाय को मारते हैं तो ख़ून हो जाता है | ”
” यह ढंग ठीक नहीं है | जब अंग्रेज़ों के बूचडख़ाने में सैकड़ों ही गायों का प्रतिदिन वध होता है, तब आप कूछ नहीं करते !”
प्रेम चंद कलक्टर के पास पहुंचे और कहा, ” आपने मुझे याद किया ?”
”हाँ , यह गाय आपका है ?”
”हाँ, मेरी ही है |”
”यह हमारे अहाते में घुस आया है | हम इसको गोली से मार देगा |”
”यदि मारना हो था तो मुझे याद क्यों किया ? मार डालते ?”
”हाँ , हम मार सकता है, हम अंग्रेज़ है, कलक्टर है |”
”आप अंग्रेज़ हैं, कलक्टर हैं, ठीक है | मगर पब्लिक की राय भी तो एक चीज़ है |”
”आज हम इसे छोड़ देता है | अगर फिर आया तो मार डालेगा |”
” मगर अगली बार मुझे याद न कीजिएगा |”
[ ” भारतीय संवाद ” प्रस्तुति ]
खासमखास
मनोरम कल्पना और हृदयग्राही उपमाओं से सज्जित “प्रकृति के प्रेम पत्र”
संसार में प्रेम ही ऐसा परम तत्व है, जो जीवन का तारणहार है। यही मुक्ति और बाधाओं की गांठें खोलता है और नवजीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह अलभ्य एवं अप्राप्य भी नहीं, जगत Read more…