सत्कर्म तुम करते रहो जो कभी मिटता नहीं ,पाषाण पर रोपा गया पौधा कभी फलता नहीं .

उठो , हिम्मत – हौसले से निज कर्तव्य में लग जाओ

कुंठा ,निराशा , हताशा को पास कभी मत लाओ

जो है सच्चा इन्सान कभी पुरुषार्थ से डिगता नहीं ,

पाषाण पर …….

 

बनो पाषाण सत्य के , ईमानदारी को अपनाओ

दूषित वातावरण को असीम -स्वच्छता पहुँचाओ .

सुप्त अंतर्मन कभी अपने अभीष्ट को पाता नहीं ,

पाषाण पर ……

 

सूरज डूबता है इसलिए कि उसे है फिर उगना ,

अपमान सहकर इन्सान को सम्मान मिलता दुगना ,

संकल्प से इन्सान का सोचा हुआ टलता नहीं ,

पाषाण पर ……

 

चींटी को देखो वह कितनी अधिक है स्वावलम्बी,

बार -बार गिर – गिरकर भी चढ़ जाती है गगनचुंबी

.जो स्वाभिमानी है , वह दूसरों पर पलता नहीं ,

पाषाण पर …..

 

है राह जो सबके लिए , उस राह पर कांटे न बो

दो – चार दिन सुख के लिए इंसानियत अपनी न खो

.इन्सान सच्चा वह है ,जो इन्सान को छलता नहीं ,

पाषाण पर …….

– राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘

कृपया टिप्पणी करें