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अख़लाक़ अहमद ज़ई की यह कहानी मानव जीवन की सभी समस्याओं को इबलीस के मत्थे मढ़कर इसकी विकरालता को पराकाष्ठा तक ले जाती है , जो हर दृष्टि से अनुचित है | अगर इबलीस के पास इतनी शक्ति है , तो क्या शैतान , ताग़ूत , याजूज माजूज निकम्मे और नाकारा हैं ? इनकी शक्तियों को यहाँ बताने का अवसर नहीं | इक़बाल ने ” जिब्राईल ओ इबलीस ” लिखकर कुछ संभालने और तलाफ़ी की कोशिश की है | वैसे अपनी दोनों रचनाओं को अपनी दार्शनिकता से जोड़ा है | वे इबलीस से सवाल करते हैं -इश्क़ क़ातिल से भी मक़्तूल से हमदर्दी भी / ये बता किस्से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा ? सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से कराना भी / हश्र में किससे अक़ीदत का सिला मांगेगा ?”
इबलीस की मजलिसे शूरा ” की चंद लाइनें इबलीस की शक्तिमत्ता पर-मैंने सिखलाया फ़िरंगी को मुलूकियत का ख़ाब / मैंने तोड़ा मस्जिदो दैरे कलीसा का फ़ुरुंमैंने नादारों को सिखलाया सबक़ तक़दीर का / मैंने मुन’इम को दिया सरमायादारी का जुनूं |
इक़बाल की तर्ज़ पर कैफ़ी आज़मी [ सैयद अतहर हुसैन रिज़वी ] की 1983 में ‘ इबलीस की मजलिसे शूरा ‘ आई , जिसमें दोषारोपण और रोने – धोने के सिवा अधिक कुछ नहीं | दूसरा इजलास बताना बेमानी है | साहित्यिक पुट ज़रूर है | ऐसी ही भाई अख़लाक़ इस कहानी में साहित्यिक रूप से सक्षम हैं | इसमें आंचलिक शब्दों की जगह उर्दू के शब्द उल्लेखनीय हैं | इसमें कहानीकार की असावधानियाँ और चूकें भी दृश्यमान हैं |
कहानी की शुरुआत बेरोज़गारी की समस्या है , जो शैतानों में पाई जाती है | कहानीकार शैतान और इबलीस को एक मानकर चलता है | इबलीस जिन्नों में से से था | कार्य की दृष्टि से इबलीस और शैतान ज़रूर एक हो सकते हैं | धार्मिक दृष्टि से मनुष्यों और जिन्नों में शैतान होते हैं | [ क़ुरआन 18 : 50, 6 : 112 ] जिन्नों और मनुष्यों में से जो ख़ुदा के आदेश का इन्कार करे उसको शैतान कहा जाता है |
क़ुरआन में है- ‘ याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा , ‘ आदम के सामने झुक जाओ ‘ तो इबलीस के अतिरिक्त सब झुक गए | वह जिन्नों में से था |’ [ 18 : 50 ] उसे आग से पैदा किया गया | इसका दंभ उसमें था , जबकि आदम मिट्टी से | [ क़ुरआन 7 : 12 , 38: 76 ]| इस कहानी का आग़ाज़ इन वाक्यों से होता है – ” शैतानों में बेरोज़गारी बढ़ रही है | यह समस्या दुनिया की समस्याओं में से सबसे ऊपरी दर्जे की समस्या है | हज़रत आदम – हौवा के ज़माने से ख़ुदा के सामानांतर इब्लीस इंसानों पर राज करने की कोशिशें करता आ रहा है , लेकिन इतनी विकट और विषम परिस्थितियों का सामना कभी नहीं करना पड़ा था | ” कथाकार ने यह लिखते हुए क़ुरआन की इन आयतों की ओर ध्यान नहीं दिया, जिसमें आया है – ” उसने [ इबलीस ने ] कहा , ‘ मेरे रब , जिस प्रकार तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित किया , अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूंगा और उन सबको बहकाकर रहूंगा , सिवाय उनके तेरे चुने हुए बन्दे होंगे | [ अल्लाह ने ] कहा , ‘ यही एक सीधा मार्ग है मुझ तक पहुँचता है | निःसंदेह मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा , सिवाय उन भटके हुए लोगों के जो तेरे पीछे हो लें | निश्चय ही जहन्नम [ नरक ] उन सबके वादे का स्थान है | ‘[ क़ुरआन 15 : 39 – 43 ]
दरअसल इबलीस को शैतान प्रतीक / उपनाम माना सकता है | शैतान से बचने के लिए क़ुरआन उपाय बताता है | शराब , जुआ आदि बुराइयों को शैतानी काम क़रार देता है | इबलीस भी शैतानी काम करता है और अपने काम का मुखिया है | यह अरबी नाम नहीं है | यूनानी शब्द है , जो ‘दियाबूलिस’ से बना है, जिसका यूनानी में अर्थ , शत्रु , शैतान और चुग़ली करनेवाला होता है | जब यह शब्द अरबी में आया तो इबलीस हो गया | सबसे पहले यह शब्द बाइबल के अरबी अनुवाद में आया और अरबी में प्रचलित हो गया | अरबी के कुछ विद्वानों का विचार है कि यह ‘ बलस ‘ से बना है , जिसका अर्थ निराश होना है | क़ुरआन में भी ‘ बलस ‘ आया है [ 30 :12 , 6 : 44 ] | इससे इबलीस बनने का जवालीक़ी [ अरबी के शीर्ष विद्वान ] ने खंडन किया है | कहा है , अरबी मात्राएं इसे इबलीस नहीं बना सकतीं | इब्ने जरीर तबरी आदि ने अपनी क़ुरआन की तफ़्सीर [ भाष्य ] में इब्ने अब्बास के एक कथन के हवाले से इसका नाम ‘ अज़ाज़ील ‘ बताया है , जिसे आदम के सजदे से इन्कार के बाद इबलीस कहा जाने लगा |
अख़लाक़ अहमद ज़ई की यह कथा त्रुटियां लिए हुए है | कुछ आपत्तिकर है | उपर्युक्त वाक्यों के बाद वे आगे लिखते हैं – ” उसे [ इबलीस को ] तो इसी बात का गुमान था कि जब दुनिया में पैग़ंबरी के लिए ‘ द एंड ‘ का बोर्ड लटकाया जाएगा , तो ही सही मायने में उसका एकछत्र राज होगा , लेकिन उसके सोच का पासा ही उलट गया | ” अर्थात, यह मानें कि पैग़ंबरी के लिए ‘ द एंड ‘ का बोर्ड नहीं लगा | ऐसी कल्पना कुफ़्र है | इस्लाम ने मुहम्मद साहब पर पैग़ंबरी का ‘ द एंड ‘ कर दिया | इस्लाम के अनुसार मुहम्मद साहब के बाद कोई नया पैग़ंबर नहीं आनेवाला | इन्हीं पर नबूवत का सिलसिला ख़त्म हो जाता है | क़ुरआन की सूरह अल – अहज़ाब की 40 वीं आयत में इसकी घोषणा की गई है -‘ [ मुहम्मद ] ख़ुदा के पैग़ंबरों और नबियों [ की नबूवत ] की मुहर यानी इसको ख़त्म करनेवाले हैं | ‘ [ उर्दू तर्जमा – मौलाना फ़त्ह मुहम्मद ख़ान मरहूम जालंधरी , दारुल इशाअत क़ुरआन मजीद , मिशन प्रेस , नूरुल्लाह रोड , इलाहाबाद [ अब प्रयाग ], 1953 ई. , पृष्ठ 700 ] सैकड़ों तफ़्सीरों में यही अर्थापन है |
कथाकार उपर्युक्त वाक्यों के बाद लिखता है ,’ नतीजतन , कुछ समय से इब्लीस की तबीयत नासाज़ रहने लगी थी | लेकिन ‘ ज्यों ज्यों दवा की मर्ज़ बढ़ता गया ‘ इब्लीस पर मरहूम जनाब मिर्ज़ा असअदुल्लाह खां ग़ालिब चचा का शेर ही घूम – फिरकर चस्पा हो जाता था |’ कथाकार से यहाँ बड़ी चूक हुई है | मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा कि उन्होंने किस रिश्ते से ग़ालिब को चचा कहा, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि यह ग़ालिब के किसी शेअर का वाक्यांश नहीं है और संबंधित वाक्यांश भी यह नहीं है जिसे कथाकार ने उद्धरित किया | वास्तव में यह मीर तक़ी मीर का शेअर है , जो इस प्रकार है -मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की ,मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की |
जैसे अन्य कुछ कहानियों में जल्दबाज़ी का रोग पाया जाता है, वैसे ही यह कहानी भी है | एक बानगी देता हूँ | कहानी के आरंभिक पृष्ठ के दूसरे पैरे की शुरुआत इन शब्दों से होती है – ‘ तुरन – फुरन मुनक़्क़िद हो गई | ‘ ‘ तुरन – फुरन ‘ को फ़ौरन छोड़िए , ‘ मुनक़्क़िद’ को ‘ मुनअक़िद’ करिए , नहीं तो मुनक़्क़िद ‘ नक़्क़ाद ‘ [ आलोचक ] हो जाएगा | मुनक़्क़िद का अर्थ आलोचक होता है | रही इसमें दूसरी ग़लती , तो वह यह है कि इजलास मुज़क्कर [ पुल्लिंग ] है, इसलिए वाक्य बनेगा – ‘ तुरन – फुरन इजलास मुनअक़िद हो गया |’ इस कहानी के बारे अभी इतना ही | फिर कभी …..अब ‘” लालटेनगंज ” पर आते हैं , जो बारहवीं कहानी है | यह अस्थाई ‘रेडलाइट एरिया ‘ बनता था मेले के दौरान | लालटेनगंज नाम से जाना जाता था | समय के साथ इसका भी सुधार हो गया | अब पहले जैसा मेला भी नहीं लगता , नाममात्र रह गया है | कथाकार ने ग़ज़ब का कथानक बांधा है , सफ़्फ़ू और मुंदारा के हवाले से | पूरी कथा बहुत ही मरबूत [ संयोजित ] है , बधाई |
प्रूफ़ की ग़लतियां अपनी जगह हैं , जो हर कहानी में विद्यमान हैं | एक दो शब्दों की ही ओर आता हूँ | इस कहानी के पृष्ठ 128 पर ‘मिजाज़पुरशी’ लिखा गया है , नुक़्ता भी दूसरे ‘ज ‘ पर रखा गया है | सही शब्द होगा = ‘ मिज़ाजपुर्सी ‘ | इसके अगले पृष्ठ पर ‘तवज्जुह ‘ आया है , सही होगा ‘ तवज्जोह ‘ |
सातवीं कहानी ‘ कोंडीबा का सच ‘ महाराष्ट्र के निम्नवर्गीय परिवार की कथा है | कोंडीबा के अरमानों का चित्रण है | उसका कोल्ड ड्रिंक के ढक्कन से ईनाम नहीं निकल पाया , उसे जो आशा जगी थी जीवन बनाने की , उसमें भी ग्रहण लग गया | एक सफल कथाकार की भांति अख़लाक़ अहमद ज़ई ने इन सारे मनोभावों को विस्तार देकर बख़ूबी चित्रण किया है मराठी शब्दों / वाक्यों के साथ | साधुवाद उनको | “
छठी कहानी ” सत्तवार ” कमाल की है | निम्नवर्गीय समाज जो शहरों में या उसके गिर्द बसता है, उसके दुःख – दर्द का बयान आसान नहीं | आजकल पेयजल की प्राप्ति सर्वत्र समस्या है | इन बस्तियों में पानी को लेकर टंटा आम है | ” सत्तवार ” इसी के गिर्द घूमती है | इन बस्तियों के रहनेवालों की समस्याओं , मनोव्यथा , दैनिक जीवन , सोच के आयामों आदि को कथा में उकेरने का काम विरले कहानीकार ही कर पाते हैं | अख़लाक़ अहमद ज़ई इसमें काफ़ी हद तक सफल हैं | कहानी का शब्द – चयन ख़ूबसूरत है , जैसे बमपुलुस | भूमंडलीकरण का छछूंदर , दहलीज़ , तीसरा रास्ता , पंजों के निशान भी उम्दा कहानियां हैं | अंतिन कहानी ” कँटीले तारों का प्रेम आलाप ” बड़ी मार्मिक प्रेम कथा है | प्रेम के सामने भारत और पाकिस्तान की सीमा मसनूई है | शीर्षक बहुत आकर्षक है | इस उम्दा कहानी के लिए मुबारकबाद | आशा की जानी चाहिए कि भविष्य के संस्करण में इसके प्रूफ़ की ग़लतियाँ दूर होंगी, नुक़्ते की ख़ामियां मिटेंगी और अन्य सुधार – परिवर्तन होंगे |
– Dr Ram Pal Srivastava
Editor -in – Chief, Bharatiya Sanvad