हमारे देश में कई महिला विरोधी अन्धविश्वास फैले हुए हैं | इनमें से कुछ ऐसे हैं , जो मनमाने ढंग से उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं | फिर भी पाखंड और अन्धविश्वास का तानाबाना बुनकर हत्यारे क़ानून से बचे रहकर नए अपराध की रूपरेखा तैयार करते हैं ! इन अन्धविश्वासों और कुप्रथाओं में एक है डायन बताकर महिलाओं की हत्या , जो अपने मूल कारणों में महिला की संपत्ति हड़पने जैसे घिनौने कृत्य को प्रदर्शित करती है | एसोसिएशन फार सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस (आशा) के अजय कुमार जायसवाल के अनुसार , झारखंड में 2016 में 79 महिलाओं की हत्या डायन होने के आरोप में कर दी गई | एक आंकड़े में यह बात सामने आई है कि झारखंड में पिछले 20 साल में करीब सोलह सौ महिलाएं डायन के नाम पर मारी जा चुकी हैं |

 

नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2014 में जारी आंकड़े के मुताबिक़ झारखंड में 2012 से 2014 के बीच 127 महिलाओं की हत्या डायन बताकर कर दी गई | राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री एचपी चौधरी ने ये आंकड़े बताए थे | उन्होंने कहा था कि झारखंड में 2014 में ही 47 महिलाओं की हत्या डायन बताकर कर दी गई | यह उस साल देशभर में डायन के नाम पर हुई हत्याओं का 30 फ़ीसद था | दूसरी ओर झारखंड सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2011 से 2013 के बीच 400 से भी ज्यादा की डायन होने का आरोप लगाकर हत्या की गई है। इसके अलावा 2854 मामले पुलिस में दर्ज हैं। झारखंड में डायन प्रथा विरोधी कानून साल 2001 से ही लागू है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कानून बनने के बाद भी ना तो उसे प्रभावी तरीके से लागू करने की कोशिश की गई है और न ही समाज में कोई खास बदलाव आया है। देश भर में यही गंभीर स्थिति बनी हुई है | विधि – विधान और नैतिकता को धता बताकर देश के गांव-देहातों और छोटे कस्बों में अब भी कोई ओझा, भोपा , गुनिया और तांत्रिक किसी सामान्य औरत को कभी भी डायन घोषित कर देता है | आम तौर पर औरत के घर , परिवार और रिश्तेदार अपने घिनौने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए करवाते हैं | देखा जाता है कि इस कुप्रथा के ख़िलाफ़ जनचेतना का घोर अभाव है | खाप पंचायतें तक अपना मुंह नहीं खोलतीं | महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकर्ता विनायक तावडे़ और उनका संगठन कई सालों से डायन प्रथा के विरुद्ध अभियान चला रहे है | तावडे़ के मुताबिक , आदिवासी इलाकों में ये प्रथा एक बड़ी समस्या बनी हुई है | वे बताते हैं कि कैसे एक ओझा गाव में एक महिला को डायन करार देने का उपक्रम करता है – “जैसे गांव में कोई बीमार हो गया,तो कुछ लोग जवार के दाने बीमार के ऊपर सात बार घुमाकर ओझा के पास ले जाते हैं |ओझा एक दाना इस तरफ, एक उस तरफ रख कर मन्त्र बोलना शुरू करता है | फिर कहता है – हाँ, .उसे डायन ने खाया है | उस डायन का घर नाले के पास है | उसमे पेड़ है, इतने जानवर है ,आम के पेड़ है | महू का पेड़ है ,इतने बच्चे है! ” मि . तावडे आगे बताते हैं, “इनमे जो बातें अनुमान से किसी पर लागू हो जाए , उस औरत को डायन करार दिया जाएगा | हमने ऐसे ही एक ओझा को गिरफतार करवाया है | ” राष्ट्रीय महिला आयोग से लंबे समय से जुड़ी रही निर्मला सावंत प्रभावलकर मानती हैं कि देश के पचास – साठ ऐसे जिले है जहाँ इस कुप्रथा के उदाहरण आये दिन मिल जाते हैं | महिला को डायन, कही डाकन, तेनी या टोनी, पनव्ती ,मनहूस और ऐसे ही नामों से लांछित कर उसे घर से निकाल दिया जाता है | यह समस्या शिक्षित वर्ग में भी है | कभी ऐसा भी होता है कि जब कोई महिला राजनीति में आती है ,तो लोग कहने लगते हैं कि वह जहां भी हाथ लगाएगी, नुकसान हो जायेगा | आप चुनाव हार जायेगे ,ऐसा कह कर लांछित किया जाता है | पीड़ित महिलाओं में ज्यादातर दलित, आदिवासी या पिछड़े वर्ग से है | सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलूवालिया ने राजस्थान में आदिवासी बहुल इलाकों में ऐसी पीड़ित महिलाओं की मदद की है | उनके अनुसार , “ लगभग 36 ऐसे मामले मेरे पास है जिनमें औरत को डायन घोषित कर दिया गया | मगर पुलिस ने कोई मदद नहीं की | इस गंभीर स्थिति में इस कुप्रथा पर कैसे लगाम लग पाएगी ? अहलूवालिया ने कहा, “ यह समय है जब डायन विरोधी कानून बनना चाहिए | अकेले भीलवाड़ा जिले में ही कोई ग्यारह स्थान ऐसे है जो औरत के शरीर से डायन निकालने के लिए जाने जाते है | वहां हर सप्ताह भीड़ लगती है. इन औरतों के साथ हर तरह की हिंसा होती है | ”रांची इंस्टीटयूट ऑफ़ न्यूरो साइकिएट्री एंड एलायड साइसेंज के निदेशक सह मनोवैज्ञानिक डॉ. अमूलरंजन सिंह कहते हैं , “किसी की बीमारी या मौत में भूत-प्रेत, ओझा-गुनी की कोई भूमिका नहीं होती , लेकिन गांवों में अब भी तरह-तरह की भ्रांतिया हैं | इसे जागरूकता के ज़रिए ही दूर किया जा सकता है | महिला कार्यकर्ता लखी दास डायन कुप्रथा के ख़िलाफ़ कोल्हान इलाक़े में काम करती हैं | उनका कहना है , “ इन मामलों में विधवाएं अधिक प्रताड़ित होती हैं | जनजाति बहुल गांवों में अब भी गहरा अंधविश्वास है |.” उन्होंने बताया कि अध्ययन में पाया गया है कि महिलाओं को सार्वजनिक तौर पर मैला पिलाया जाता है | उनके बाल काट दिए जाते हैं और उन्हें निर्वस्त्र कर घुमाया जाता है, लेकिन सुदूर इलाक़ों में होनेवाली प्रताड़ना की अधिकतर घटनाएं प्रकाश में नहीं आ पातीं | झारखंड सरकार ने डायन प्रथा उन्मूलन की जो योजना बनाई है , उस पर हर साल बीस लाख रुपए ख़र्च किए जाते हैं | मगर यह योजना कारगर नहीं साबित हुई है | इस कुप्रथा पर रोक के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की ज़रूरत है |
– Dr RP Srivastava

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