” असल में भारत यही है | भूखे – नंगों का देश ! जहाँ बहुसंख्यक आबादी जी – तोड़ मेहनत के बाद भी मूलभूत आवश्यकताओं तक की पूर्ति के लिए तरसती है और मुट्ठी भर ‘ बड़े ‘ लोग उनका शोषण करके विलासी जीवन जीते हुए भारत के सुपर पावर होने का दम भरते हैं , उसके विश्व – गुरु होने का ढिंढोरा पीटते हैं | असल में आज़ादी के बाद से ही नेताओं व नौकरशाहों के भ्रष्ट गठजोड़ ने भोली – भाली जनता को लूटना शुरू कर दिया था | हर बार चुनाव के वक्त उनसे लुभावने वादे किए जाते हैं , बड़े – बड़े सपने दिखाए जाते हैं , उम्मीदों के पुल बांधे जाते है , पर चुनाव के बाद लूट का नया दौर शुरू हो जाता है | इस भ्रष्ट गठजोड़ ने देश को इस क़द्र लूटा है कि अब तो गरीब आदमी की चड्ढी – बनियान से ज़्यादा की हैसियत ही नहीं बची | और यह लूट अब भी बदस्तूर जारी है |”
इंद्रा पब्लिशिंग हाउस , भोपाल द्वारा प्रकाशित पुस्तक ” मैं भी कभी भगवान था ” [ पृष्ठ 28 ] के ये अंश हमारे देश की इस हकीकत को बयान करने में सक्षम हैं कि देश की बदहाली के पमुख कारणों में भ्रष्टाचार अग्रणी है |
हमारे देश में भुखमरी के लिए यही कारण अधिक ज़िम्मेदार है | झारखंड के सिमडेगा ज़िले में पिछले दिनों भूख से हुई 11 वर्षीया संतोषी के इसी भ्रष्टाचार के चलते हुई मौत के बाद गत 21 अक्तूबर को झारखंड के ही झरिया [ धनबाद ] में 40 वर्षीय बैद्यनाथ दास नामक रिक्शाचालक की भूख की वजह से मौत हो गई | बैद्यनाथ दलित बिरादरी से ताल्लुक़ रखते थे | प्रशासन इस मौत को भी संतोषी की मौत कि तरह बीमारी से हुई मौत बता कर पल्ला झाड़ रहा है |
झरिया के भालगढ़ा इलाक़े की ताराबगान बस्ती में बैद्यनाथ की मौत का मामला लगातार भूख से उत्पन्न बीमारी से भी है | बीमारी की वजह से वह रिक्शा नहीं चला पा रहा था। रिक्शा चलाना बंद होने से उसकी कमाई बंद थी और पत्नी दूसरों के घरों में नौकरानी का काम करके घर का खर्च किसी तरह चला रही थी। मृतक का बड़ा बेटा रवि रांची में किसी प्राइवेट कंपनी में काम करता है और पिता की मौत की सूचना पर वह झरिया पहुंचा। रवि ने मीडिया को बताया कि उसके बड़े पिता के बड़े भाई के नाम पर परिवार का राशन कार्ड था, लेकिन दो साल पहले उनकी मौत के बाद राशन कार्ड रद्द कर दिया गया। रवि ने बताया कि उसके पिता ने भी राशन कार्ड बनाने का प्रयास किया, लेकिन कार्ड नहीं जारी हुआ | यहीं से उसकी बदहाली बढती गई |
सरकारी राशन बंद होने का कारण पांच सदस्यों के परिवार का भरण – पोषण मुश्किल हो गया था | भुखमरी के हालात पैदा हो गए | गाँव के मुखिया और सरकारी लोगों ने कोई खबर नहीं ली | अब ज़िला प्रशासन सफाई पर सफाई देने पर तुला है | उसकी यही सक्रियता राशन कार्ड को दोबारा निर्गत करने की होती , तो ज़ाहिर है उसकी सर्वत्र सराहना होती , मगर यह भी एक अहम बात है कि शासन – प्रशासन के हिस्से में सराहना कम ही आती है |
जिला प्रशासन ने दावा किया है कि बैद्यनाथ की मौत ‘भूख’ से नहीं बल्कि बीमारी की वजह से हुई है। हालांकि प्रशासन का कहना है कि 22 सितंबर 2017 को पहले बैद्यनाथ की पत्नी ने राशन कार्ड के लिए ऑन लाइन आवेदन किया है, लेकिन राशन कार्ड अभी जारी नहीं किया गया है। धनबाद के ज़िला जन संपर्क अधिकारी का कहना है कि ” गत एक वर्ष में धनबाद ज़िला में लगभग एक लाख अयोग्य लाभुकों को हटाकर अर्हता पूर्ण करनेवाले योग्य लाभुकों को जोड़ा गया है |” लेकिन इन अधिकारी महोदय ने नहीं बताया कि जोड़ा कितने लोगों को गया ? यहाँ कुछ अधिक गडबडी हुई लगती है , अन्यथा बैद्यनाथ की जान न जाती | क्या सरकार के पास ऐसा कोई मेकेनिज्म मौजूद है , जिसमें किसी ” लाभुक ” को उपेक्षित न फिरना पड़े , बल्कि उसका नाम से बिना भागदौड़ और बिना विलंब के राशनकार्ड कार्ड आदि निर्गत हो जाया करे ?
क्या हमारा देश अभी इस साधारण – सी चीज़ को करने में सक्षम नहीं हो सका है ? तो फिर ग्राम पंचायतों , ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात सरकारी अमला और विकास के नाम पर भारी – भरकम बजट और सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की बड़ी संख्या में नियुक्ति का क्या मतलब है ? यही ना जो इस आलेख के आरंभिक पुस्तकांश में बात कही गई है , वह सच है |
– Dr RP Srivastava